11 अप्रैल 2025
दिल्ली हाईकोर्ट ने
वैवाहिक मामलों में वकीलों की भूमिका को लेकर एक अहम और सशक्त टिप्पणी की है।
कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि शादी से जुड़े विवादों में वकील अपने मुवक्किलों
को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काने या आरोप लगाने के लिए नहीं,
बल्कि विवाद को सुलझाने और समझदारी से समाधान निकालने के लिए
प्रोत्साहित करें। कोर्ट ने वकीलों को समाज और न्याय व्यवस्था के प्रति अपनी
जिम्मेदारी का स्मरण कराया।
क्या कहा कोर्ट ने?
जस्टिस प्रतिभा एम.
सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा:
“वैवाहिक
विवादों में भावनाएं बहुत तेज होती हैं, इसलिए इस तरह के
मामलों में शांति, सौहार्द और संवेदनशीलता जरूरी है। वकीलों
को चाहिए कि वे अपने मुवक्किलों को कानूनी दायरे में रखते हुए सुलह की सलाह दें,
न कि टकराव की।”
कोर्ट ने यह भी कहा
कि ऐसे मामलों में मुवक्किल अक्सर भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं,
और ऐसे समय में अगर उन्हें गलत दिशा में प्रेरित किया गया, तो इससे विवाद और बढ़ सकता है।
किस मामले में आई
यह टिप्पणी?
यह टिप्पणी एक ऐसे
मामले में आई जिसमें पति ने कुटुंब अदालत में अपनी पत्नी के वकील के खिलाफ अभद्र
भाषा का इस्तेमाल किया था। पति ने सिर्फ वकील ही नहीं,
बल्कि अदालत के न्यायाधीश के खिलाफ भी आपत्तिजनक शब्द बोले थे।
इस मामले में पत्नी
ने हाईकोर्ट में आपराधिक अवमानना की याचिका दायर की थी। हालांकि कोर्ट ने पति की
ओर से दिखाए गए पछतावे और उसके पिता की बीमारी को ध्यान में रखते हुए जेल की सजा
टाल दी,
लेकिन उसे कड़ी फटकार लगाई और पत्नी को एक लाख रुपये देने का
निर्देश दिया।
अदालत की चेतावनी और निर्देश
- अदालत ने कहा कि वकीलों का आचरण
अदालत और समाज दोनों के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए।
- पक्षकारों को कानूनी मर्यादा में
रहकर ही कोई शिकायत दर्ज करनी चाहिए।
- अदालत में गाली-गलौज और अभद्र
व्यवहार किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं है।
- पति को अपने किए पर सार्वजनिक रूप
से पत्नी के वकील से माफी मांगने को कहा गया।
- साथ ही उसे बच्चों के पालन-पोषण
और स्कूल की फीस का भुगतान नियमित रूप से करने का आदेश दिया गया।
निष्कर्ष
दिल्ली हाईकोर्ट का
यह फैसला न सिर्फ वकीलों के लिए एक चेतावनी है, बल्कि
पूरे समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश है कि “कानूनी लड़ाई
को व्यक्तिगत दुश्मनी में न बदला जाए”। वकीलों को चाहिए
कि वे कानून का उपयोग शांति और समाधान के लिए करें, न कि
संघर्ष और बढ़ती कटुता के लिए।
इस फैसले ने वकीलों
की भूमिका को पुनः परिभाषित किया है—एक गाइड, एक
सुलहकर्ता और एक जिम्मेदार सामाजिक सहयोगी के रूप में।