सम्पत्ति अंतरण
अधिनियम, 1882 की धारा 4 अनुबंधों
से संबंधित अधिनियमों को अनुबंध अधिनियम के भाग तथा पंजीकरण अधिनियम के अनुपूरक के
रूप में समझ जाएगा।
अनुबंधों से
संबंधित अधिनियमों को अनुबंध अधिनियम के भाग तथा पंजीकरण अधिनियम के अनुपूरक के
रूप में समझ जाएगा--इस
अधिनियम के वे अध्याय और धाराएं, जो संविदाओं से
संबंधित हैं, भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) के भाग माने जाएंगे:
1. और धारा 54,
पैराग्राफ 2 और 3, 59, 107 और 123 को भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम,2[1908
(1908 का 16)] के अनुपूरक के रूप में पढ़ा
जाएगा।
आइये यहाँ सम्पत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 4
“अनुबंधों से संबंधित अधिनियमों को अनुबंध अधिनियम के भाग तथा
पंजीकरण अधिनियम के अनुपूरक के रूप में समझ जाएगा” को आसान और सरल भाषा में समझने का प्रयास करें--
पृष्ठभूमि (Background):
भारत में कई कानून
ऐसे हैं जो संपत्ति, अनुबंध (contracts),
और उनके रजिस्ट्रेशन (registration) से
संबंधित हैं। लेकिन इनमें से कुछ कानून एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और जब उनका
इस्तेमाल किया जाता है, तो उन्हें एक साथ पढ़ना और समझना
पड़ता है।
अनुबंध अधिनियम और
पंजीकरण अधिनियम का संबंध
i. अनुबंध
अधिनियम (Indian Contract Act, 1872):
यह कानून यह बताता
है कि एक वैध (valid) और कानूनी अनुबंध क्या होता है।
इसमें यह भी बताया गया है कि दो या दो से अधिक पक्ष (parties) जब किसी चीज़ पर आपस में सहमति (agreement) करते हैं,
और वो कानूनी रूप से लागू किया जा सकता है, तो
वह अनुबंध कहलाता है।
ii. पंजीकरण
अधिनियम (Indian Registration Act, 1908):
यह कानून बताता है
कि कौन-कौन से दस्तावेज़ (जैसे बिकी हुई संपत्ति के कागज़,
किराये के समझौते, आदि) पंजीकरण के लिए ज़रूरी
हैं और कैसे उन्हें रजिस्ट्री ऑफिस में दर्ज किया जाता है।
कानून में जोड़ा गया स्पष्टीकरण
अब,
जिस नियम की आप बात कर रहे हैं, उसमें यह साफ
किया गया है कि:
- कुछ धाराएं और अध्याय ऐसे
हैं जो अनुबंध से संबंधित हैं, तो
उन्हें भारतीय संविदा अधिनियम का हिस्सा माना जाएगा।
- और कुछ धाराएं,
जैसे:
- धारा 54
का पैराग्राफ 2 और 3
(जो संपत्ति की बिक्री और कब्जे से जुड़ा है),
- धारा 59
(जो लिखित दस्तावेज़ों के प्रभाव से संबंधित है),
- धारा 107
(जो पट्टों यानी lease से जुड़ा है),
- धारा 123
(जो गिफ्ट यानी उपहार से जुड़ा है)—
इन सभी को भारतीय
रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 के साथ जोड़ा जाएगा यानी ये रजिस्ट्रीकरण कानून को पूरक रूप से सहयोग
करेंगी।
इसका उद्देश्य क्या
है? (What is the purpose?)
इस व्यवस्था का
मकसद यह है कि जब कोई न्यायालय (court) या अधिकारी किसी
मामले की सुनवाई कर रहा हो, और वहां ये धाराएं सामने आएं,
तो उन्हें यह निर्णय लेने में स्पष्टता रहे कि उस धारा को किस
अधिनियम के संदर्भ में पढ़ना है — अनुबंध के तहत या पंजीकरण के तहत।
इससे:
- कानूनों की व्याख्या में सरलता
आती है।
- कानूनों के आपसी संबंध बेहतर
तरीके से समझे जा सकते हैं।
- कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता
आती है।
एक सरल उदाहरण
मान लीजिए,
राम और श्याम के बीच जमीन की बिक्री का एक अनुबंध हुआ है। अब:
- अगर ये मौखिक अनुबंध है,
तो इसे भारतीय संविदा अधिनियम के तहत देखा जाएगा।
- अगर यह लिखित दस्तावेज़ है
और उसमें कब्जे का हस्तांतरण (possession) भी हो रहा है, तो इसमें धारा 54
का दूसरा और तीसरा पैरा लागू हो सकता
है, जिसे पंजीकरण अधिनियम के साथ भी जोड़ कर देखा
जाएगा।
“इस कानून में यह
स्पष्ट कर दिया गया है कि जब हम किसी कानूनी प्रक्रिया में इन खास धाराओं का
प्रयोग करेंगे, तो हमें यह समझकर चलना होगा
कि वे अनुबंध अधिनियम या रजिस्ट्री अधिनियम का हिस्सा मानी जाएंगी, जिससे उनकी सही कानूनी व्याख्या की जा सके।“
FAQs: सम्पत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 4 के बारे में
प्रश्न 1:
धारा 4 में क्या कहा गया है?
उत्तर:
धारा 4 यह बताती है कि संपत्ति अंतरण अधिनियम
की कुछ धाराओं को अनुबंध अधिनियम (Indian Contract Act, 1872)
का हिस्सा माना जाएगा, और कुछ धाराओं को पंजीकरण
अधिनियम (Indian Registration Act, 1908) के पूरक
(supplementary) के रूप में समझा जाएगा।
प्रश्न 2:
किन धाराओं को पंजीकरण अधिनियम के पूरक के रूप में देखा जाएगा?
उत्तर:
इन धाराओं को पंजीकरण अधिनियम, 1908 के पूरक के रूप में पढ़ा जाएगा:
- धारा 54
के पैरा 2 और 3 (संपत्ति
की बिक्री और कब्जा),
- धारा 59
(बंधक),
- धारा 107
(पट्टा/लीज),
- धारा 123
(उपहार/गिफ्ट)।
प्रश्न 3:
इसका उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जब कोर्ट या कोई
अधिकारी इन धाराओं की व्याख्या करे, तो उसे यह स्पष्ट हो कि
वह किस अधिनियम से संबंधित है — अनुबंध अधिनियम या पंजीकरण अधिनियम।
इससे कानूनी प्रक्रिया में सपष्टता, पारदर्शिता और
एकरूपता बनी रहती है।
प्रश्न 4:
यह व्यवस्था कब काम आती है?
उत्तर:
जब किसी संपत्ति से जुड़े विवाद में ये धाराएं सामने आती हैं (जैसे
बिक्री, गिफ्ट, लीज आदि से जुड़े मामले
में), तो न्यायालय यह तय करता है कि कौन सा कानून लागू होगा
— अनुबंध से संबंधित कानून या दस्तावेजों के पंजीकरण से जुड़ा कानून।
प्रश्न 5:
क्या आप कोई आसान उदाहरण दे सकते हैं?
उत्तर:
हाँ, मान लीजिए राम और श्याम के बीच जमीन
बेचने का एक लिखित अनुबंध होता है:
- अगर यह केवल सहमति (agreement)
है, तो उसे संविदा अधिनियम के
अंतर्गत देखा जाएगा।
- लेकिन अगर वह दस्तावेज पंजीकृत
है और कब्जा देने से जुड़ा है, तो धारा
54 (2)(3) लागू होगी, जिसे
पंजीकरण अधिनियम के तहत भी देखा जाएगा।
प्रश्न 6:
यह क्यों जरूरी था कि इन धाराओं को अन्य अधिनियमों के पूरक के रूप
में माना जाए?
उत्तर:
इसलिए ताकि जब संपत्ति का कोई मामला कानूनी रूप से सामने आए,
तो यह स्पष्ट हो कि उसे किस कानून के तहत पढ़ा और लागू किया
जाएगा। इससे विवाद सुलझाना आसान होता है और कानूनों में भ्रम की स्थिति नहीं
बनती।