सुप्रीम कोर्ट ने
एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा है कि आजकल जैसे ही रिश्तों में खटास आती है,
लोग एक-दूसरे पर आपराधिक मामले दर्ज कराने लगते हैं, भले ही मामला केवल भावनात्मक या निजी विवाद का ही क्यों न हो। अदालत ने
चेताया कि यह प्रवृत्ति न्याय व्यवस्था का दुरुपयोग है और इससे झूठे मुकदमों की
संख्या बढ़ रही है।
यह टिप्पणी तब आई
जब पूर्व न्यायिक अधिकारी की याचिका पर सुनवाई हो रही थी। उन्होंने कलकत्ता
हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें
उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (FIR) को रद्द करने से मना कर
दिया गया था।
क्या था मामला?
- शिकायतकर्ता (महिला) ने आरोप
लगाया था कि आरोपी (पूर्व न्यायिक अधिकारी) ने शादी का झांसा देकर शारीरिक
संबंध बनाए और बाद में शादी से इनकार कर दिया।
- लेकिन कोर्ट ने पाया कि जब यह
रिश्ता बना, तब शिकायतकर्ता पहले
से विवाहित थी और उसी दौरान उसने अपने पति से तलाक की प्रक्रिया शुरू की
थी।
- आरोपी ने कुछ समय बाद उससे संपर्क
बंद कर दिया और कहा कि वे अब कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
- कोर्ट ने माना कि
यह दावा करना कि केवल शादी का वादा करके संबंध बनाए गए और फिर मुकर गए,
प्रथम दृष्टया साबित नहीं होता।
- यह असंभव लगता है
कि शिकायतकर्ता ने पति से अलग होते ही किसी और से इतने जल्दी शारीरिक संबंध
बना लिए।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि FIR
और आरोप पत्र पढ़ने से ऐसा कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता जिससे
लगे कि कोई अपराध हुआ है।
- ऐसे मामलों में अगर शुरुआत से ही
शादी की मंशा नहीं हो, तभी यह धोखाधड़ी या
बलात्कार माना जा सकता है। केवल रिश्ता टूट जाने से BNS (पूर्व में IPC) की आपराधिक धाराएं नहीं लगाई जा
सकतीं।
प्रासंगिक कानून और केस लॉ:
1. भारतीय
न्याय संहिता की धारा 64 (बलात्कार)
और 318
(धोखाधड़ी):
शादी का झूठा वादा कर संबंध बनाना तभी अपराध माना जाएगा, जब यह साबित हो कि शुरुआत से ही शादी की कोई मंशा नहीं थी।
2. Pramod
Suryabhan Pawar v. State of Maharashtra (2019)
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि शादी का वादा अगर सच्चे इरादे से किया
गया हो लेकिन बाद में टूट गया हो, तो वह बलात्कार नहीं
माना जा सकता।
3. Deepak
Gulati v. State of Haryana (2013)
यह निर्णय बताता है कि भावनात्मक रिश्तों को जबरदस्ती आपराधिक
मुकदमे में नहीं बदला जा सकता।
निष्कर्ष:
- हर टूटा रिश्ता अपराध नहीं होता।
- अदालतें ऐसे मामलों में तथ्य और
मंशा (intent) को बहुत गंभीरता से परखती
हैं।
- यदि शादी की असली मंशा थी,
लेकिन रिश्ता चल नहीं पाया, तो उसे अपराध
की श्रेणी में नहीं डाला जा सकता।
- सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई
कोर्ट के 2024 के आदेश को रद्द
करते हुए FIR और आरोप पत्र को रद्द
कर दिया।