कर्नाटक के गृह
मंत्री जी. परमेश्वर एक महिला से छेड़छाड़ की घटना पर दिए गए गैर-जिम्मेदार
बयान को लेकर विवादों में घिर गए हैं। उन्होंने कहा कि "बेंगलुरु जैसे
बड़े शहरों में इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं," जिससे लोगों में नाराजगी फैल गई है।
परमेश्वर की इस
टिप्पणी के बाद राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया। भाजपा ने इस बयान को
महिला विरोधी बताते हुए कड़ी आलोचना की और मांग की कि राहुल गांधी व
प्रियंका गांधी को इस बयान पर संज्ञान लेते हुए मंत्री से इस्तीफा मांगना
चाहिए।
इधर,
राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस मामले में
स्वतः संज्ञान लेते हुए आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी और तीन दिनों के भीतर
कार्यवाही की रिपोर्ट मांगी है। आयोग ने मंत्री के बयान को गंभीर और
असंवेदनशील करार दिया।
परमेश्वर ने सफाई
में कहा कि उन्होंने पुलिस आयुक्त और डिप्टी कमिश्नर को गश्त और निगरानी
व्यवस्था मजबूत करने के निर्देश पहले से दे रखे हैं। लेकिन जब उन्होंने यह कहा कि
“बड़े शहरों में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं,” तो इस पर
जनता और विपक्ष ने गहरा ऐतराज़ जताया।
घटना का संक्षेप:
तीन अप्रैल की सुबह, बेंगलुरु के
सुदुगुंटेपल्या इलाके में दो महिलाएं टहल रही थीं। उसी
दौरान एक व्यक्ति आया और एक महिला से जबरदस्ती छेड़छाड़ करने लगा। महिला के
विरोध के बाद वह व्यक्ति भाग गया। यह पूरी घटना सीसीटीवी कैमरे में कैद हो
गई।
भाजपा प्रवक्ता
शहजाद पूनावाला ने मंत्री पर पहले भी ऐसे बयान देने
का आरोप लगाते हुए उन्हें "सीरियल अपराधी
मानसिकता" का बताया। उन्होंने कहा,
“2017 में भी इन्होंने ऐसे ही बयान दिए थे। कांग्रेस को ऐसे नेताओं
पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।”
कानून क्या कहता है
छेड़छाड़ एक दंडनीय
अपराध है (BNS की धारा 74 के तहत):
किसी
महिला से जबरन अश्लील हरकतें करना, छूना या
यौन इरादे से परेशान करना, भारतीय न्याय संहिता,2023 (BNS) की धारा 74, 75, 76 आदि के तहत अपराध है, जिसकी
सजा 1 से 7 साल तक की हो सकती है,
साथ में जुर्माना भी।
कानून कहता है –
‘संवेदनशीलता और सुरक्षा’ दोनों ज़रूरी:
जब
कोई जनप्रतिनिधि (विशेषकर गृह मंत्री) ऐसे मामलों पर ‘यह तो बड़े शहरों में होता ही रहता है’ जैसे
बयान देता है, तो यह न सिर्फ पीड़िता की गरिमा को
ठेस पहुँचाता है, बल्कि समाज में सुरक्षा के प्रति
उदासीनता का संदेश भी देता है।
सुप्रीम कोर्ट की
टिप्पणी (Tehseen S. Poonawalla v. Union of India,
2018):
कोर्ट ने कहा था कि –
"पदाधिकारियों को अपने शब्दों और बयानों में अत्यंत सावधानी
बरतनी चाहिए, क्योंकि उनके वक्तव्य सार्वजनिक विश्वास को
प्रभावित करते हैं।"
गृह मंत्री का बयान इस दृष्टि से गैर-जिम्मेदाराना और संवैधानिक
मूल्यों के विरुद्ध माना जा सकता है।
राष्ट्रीय महिला
आयोग की भूमिका:
आयोग ने स्वतः संज्ञान लेकर इस मामले में तीन दिन में रिपोर्ट और
कार्रवाई की माँग की है। यह उनके संवैधानिक कर्तव्य और महिला-सुरक्षा के प्रति
जवाबदेही को दर्शाता है।
सामाजिक विश्लेषण:
बयान से उत्पन्न
सामाजिक संदेश:
जब कोई वरिष्ठ मंत्री छेड़छाड़ को "बड़ी शहरों की सामान्य
बात" कहता है, तो यह समाज में संवेदनशीलता की जगह
सामान्यीकरण को बढ़ावा देता है। इसका प्रभाव यह हो सकता है कि लोग ऐसे अपराधों
को ‘सामान्य’ मानने लगें और पीड़ित की पीड़ा को नजरअंदाज करें।
महिलाओं की सुरक्षा
के प्रति लापरवाही का संकेत:
यदि
प्रशासनिक स्तर पर ही सुरक्षा के बजाय अपराध को सामान्य बताया जाए,
तो पुलिसिंग, निगरानी और शिकायतों
की गंभीरता पर असर पड़ता है। महिलाएं सहमी हुई और
असहाय महसूस करती हैं, जो कि समतामूलक समाज के लिए खतरा
है।
राजनीतिक
प्रतिक्रिया और जवाबदेही:
विपक्ष ने मंत्री से इस्तीफे की मांग की है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। यह बताता है कि समाज अब ऐसे
बयानों को अनदेखा नहीं करता, बल्कि जवाबदेही की माँग
करता है – जो जनचेतना और महिला अधिकारों में बढ़ते बदलाव का संकेत है।
अंत कहे तो गृह
मंत्री द्वारा दिए गए इस प्रकार के असंवेदनशील बयान को केवल एक 'टिप्पणी' मानना सही नहीं होगा। यह कानून,
नैतिकता और सामाजिक चेतना — तीनों
के लिए चुनौती है।
यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि अपराध पर प्रतिक्रिया नहीं,
रोकथाम ज़रूरी है और पद पर बैठे हर
व्यक्ति को बोलने से पहले संविधान, समाज और
संवेदनशीलता की कसौटी पर खुद को परखना चाहिए।