"सड़क
हादसे के पीड़ितों को "गोल्डन ऑवर" में इलाज दिलाने की योजना अब तक
कागज़ों में ही, सुप्रीम कोर्ट सख़्त"
सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों को तुरंत और कैशलेस इलाज दिलाने के
लिए सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही केंद्र सरकार को निर्देश दिए थे, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराज़गी
जताई है। अदालत ने सड़क परिवहन मंत्रालय के सचिव को 28 अप्रैल को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया है।
क्या
है मामला?
8
जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को
आदेश दिया था कि एक ऐसी कैशलेस इलाज योजना तैयार की जाए, जिससे सड़क हादसों के पीड़ितों को ‘गोल्डन ऑवर’ के भीतर मुफ्त और त्वरित इलाज मिल सके।
‘गोल्डन ऑवर’ उस पहले एक घंटे को कहा
जाता है, जब दुर्घटना के बाद अगर सही इलाज मिल जाए तो मरीज
की जान बचाई जा सकती है।
कोर्ट
ने कहा था कि यह योजना 14 मार्च 2025 तक लागू हो जानी चाहिए। लेकिन अब
अप्रैल आ चुका है और योजना अब भी शुरू नहीं हुई है।
"सरकार ही अपने कानून को गंभीरता से नहीं ले रही" - सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई
के दौरान जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने
कहा कि यह कोर्ट के आदेश की सीधी अवहेलना है। यह केवल अदालत की अवमानना
नहीं,
बल्कि जनहित के कानून को टालने जैसा है।
कोर्ट
ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी से सवाल पूछते हुए कहा,
“यह तो आपका खुद का कानून है, फिर भी आप इसे लागू
नहीं कर पा रहे हैं? ज़रा सोचिए, इस
देरी से कितनी ज़िंदगियां खतरे में पड़ सकती हैं।”
कैशलेस
इलाज क्यों ज़रूरी है?
भारत
में हर साल लाखों सड़क हादसे होते हैं। इनमें से बड़ी संख्या में लोग सिर्फ इसलिए
दम तोड़ देते हैं क्योंकि समय पर इलाज नहीं मिल पाता।
अगर कैशलेस इलाज की सुविधा अस्पतालों में तुरंत उपलब्ध हो,
तो पीड़ित को अस्पताल में भर्ती करने में देर नहीं होगी, और उनकी जान बच सकती है।
यह
योजना सरकारी और निजी दोनों अस्पतालों में लागू होनी थी। इससे बीमा कंपनियां इलाज
का खर्च वहन करेंगी और मरीज को जेब से कुछ नहीं देना होगा।
आगे
क्या?
अब
कोर्ट ने 28 अप्रैल को मंत्रालय के सचिव को तलब
किया है। अगर तब भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं
मिला,
तो संभव है कि कोर्ट आगे कड़ी कार्रवाई करे।
टिप्पणी
सड़क
दुर्घटनाएं हर वर्ष हजारों परिवारों को गहरे दुख में डाल देती हैं। इसमें सबसे
अधिक तकलीफदेह वह क्षण होता है जब पीड़ित को समय पर इलाज नहीं मिल पाता—कभी पैसों
के अभाव में, तो कभी व्यवस्था की ढिलाई के कारण।
सुप्रीम
कोर्ट ने जिस कैशलेस चिकित्सा योजना को अनिवार्य बताया,
वह केवल एक सरकारी योजना नहीं, बल्कि हज़ारों
ज़िंदगियों को बचाने की उम्मीद है। यदि इसे समय पर लागू किया गया होता,
तो शायद कई जानें बचाई जा सकती थीं।
सरकार
की भूमिका केवल घोषणाएं करना नहीं, बल्कि नीतियों
को जमीन पर उतारना और उनके प्रभाव को सुनिश्चित करना भी है।
यह योजना महज काग़ज़ पर नहीं, एम्बुलेंस से
लेकर अस्पताल तक हकीकत में दिखनी चाहिए।
यह
विषय केवल कानून और अदालत तक सीमित नहीं है, यह मानवता
का प्रश्न है।
हमें उम्मीद है कि सरकार इसे समझेगी और इसे जल्द से जल्द
क्रियान्वित कर जनहित में एक संवेदनशील उदाहरण पेश करेगी।