सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 09-04-2025 दिन वुधवार को पैकेज्ड फूड (डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों) पर
चेतावनी लेबल लगाने की दिशा में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को
निर्देश दिया है कि वह इस संबंध में तीन महीनों के भीतर जरूरी सिफारिशें लागू करे
और नियमों में बदलाव करे।
यह
फैसला 'थ्रीएस एंड अवर हेल्थ सोसायटी' नामक संस्था की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया।
याचिका में मांग की गई थी कि नागरिकों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे जो खाद्य
उत्पाद खरीदते हैं, उनकी पोषण संबंधी जानकारी (जैसे – नमक,
चीनी, वसा की मात्रा) स्पष्ट रूप से दिखाई दे।
सुनवाई
के दौरान सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जेबी पारडिवाला और आर. महादेवन की पीठ ने
कहा कि यह जरूरी है कि नागरिक खाने के उत्पादों की सही जानकारी के आधार पर निर्णय
लें। इसलिए कोर्ट ने एक विशेषज्ञ समिति को सिफारिशें तैयार करने के लिए तीन महीने
का समय दिया है।
सरकार
ने क्या कहा?
केंद्र
सरकार ने बताया कि इस मुद्दे पर उसे देशभर से करीब 14,000
सुझाव और टिप्पणियां प्राप्त
हुई हैं। सरकार ने ये भी कहा कि वह वॉर्निंग लेबलिंग और डिस्प्ले रेगुलेशन,
2020
में बदलाव करने पर विचार कर रही है ताकि जनता को सेहत से जुड़ी
स्पष्ट जानकारी मिल सके।
क्यों
ज़रूरी है चेतावनी लेबल?
याचिका
में कहा गया कि आजकल के कई पैकेज्ड फूड में अत्यधिक मात्रा में नमक,
चीनी और वसा होती है,
जो मधुमेह (डायबिटीज), मोटापा,
हृदय रोग और कुछ कैंसर जैसी बीमारियों का
कारण बन सकती है।
रिपोर्ट्स के अनुसार हर चार में से एक भारतीय इन बीमारियों
से प्रभावित है।
आगे
क्या?
सुप्रीम
कोर्ट ने अब इस मामले में याचिका को निपटाते हुए सरकार को कार्रवाई का समय तो दे
दिया है,
लेकिन साथ ही संकेत भी दिया है कि जनस्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी
ढिलाई को अदालत नजरअंदाज नहीं करेगी।
निष्कर्ष
पैकेज्ड
फूड पर चेतावनी लेबल को लेकर सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश एक महत्वपूर्ण
जनस्वास्थ्य पहल है, जो नागरिकों के 'जानकारी के अधिकार' और 'स्वस्थ
जीवन' को सशक्त करता है। जब बढ़ती जीवनशैली संबंधी
बीमारियाँ जैसे मधुमेह, मोटापा और हृदय रोग देश की बड़ी
आबादी को प्रभावित कर रही हों, तब खाने-पीने की वस्तुओं में पोषण
संबंधी पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक हो जाती है।
कोर्ट
का यह फैसला सरकार और नीतिनिर्माताओं के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि खाद्य
सुरक्षा केवल एक विकल्प नहीं बल्कि अनिवार्यता है। यदि सरकार समय पर सिफारिशें
लागू करती है, तो यह कदम भारत को एक जागरूक और
स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदार समाज की दिशा में ले जा सकता है।