बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट और भारत के प्रधान
न्यायाधीश पर एक तीखा बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा:
“अगर कानून बनाना सुप्रीम कोर्ट का ही काम है,
तो फिर संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।”
इस बयान को न्यायपालिका की प्रतिष्ठा पर हमला माना गया। इसी कारण सुप्रीम कोर्ट के वकील
नरेंद्र मिश्रा
ने लेटर पिटिशन (Letter
Petition) दाखिल कर कोर्ट से
आपराधिक अवमानना
(Criminal Contempt) का मामला शुरू
करने की अपील की।
क्या होती है अवमानना (Contempt of Court)?
अवमानना का अर्थ है – अदालत की गरिमा या न्यायिक प्रक्रिया का अपमान या
बाधा उत्पन्न करना।
भारत में दो प्रकार की अवमानना होती है:
1. नागरिक अवमानना (Civil Contempt)
– जब कोई व्यक्ति अदालत के आदेश
का पालन नहीं करता।
2. आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt)
– जब कोई व्यक्ति अदालत के प्रति
अपमानजनक भाषा बोलता है या न्याय प्रणाली को बदनाम करता है।
ध्यान दें: सांसद दुबे के मामले में आपराधिक अवमानना का सवाल उठाया गया है।
कानून क्या कहता है?
अवमानना से जुड़ा मुख्य कानून है –
Contempt of Courts Act, 1971
और इसका समर्थन मिलता है संविधान के
अनुच्छेद 129
और 215 से, जो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को अवमानना पर सजा देने की विशेष शक्ति
देते हैं।
क्या सांसदों को कुछ भी बोलने की आज़ादी है?
संविधान का अनुच्छेद 105 सांसदों को संसद के भीतर बोले गए शब्दों के लिए
विशेष सुरक्षा (Privilege) देता है, लेकिन संसद से बाहर दिए गए बयानों के लिए ये सुरक्षा
सीमित है।
यदि कोई सांसद न्यायपालिका को खुलेआम बदनाम करता है,
तो वह संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन
कर सकता है।
न्यायपालिका बनाम विधायिका – क्या है संतुलन?
भारत का संविधान तीन स्तंभों पर टिका है:
1. विधायिका (संसद/विधानसभा)
– कानून बनाती है
2. कार्यपालिका (सरकार) – कानून लागू करती है
3. न्यायपालिका (अदालतें)
– कानून की व्याख्या करती है और
नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है
👉 जब कोई अदालत सरकार या संसद द्वारा बनाए गए कानून पर
सवाल उठाती है या उसे रद्द करती है, तो वो संविधान की रक्षा करने वाले रोल
में होती है।
इसलिए यह कहना कि "सुप्रीम कोर्ट कानून बना रही है",
अधूरी और भ्रामक व्याख्या
है।
क्या सुप्रीम कोर्ट खुद संज्ञान ले सकती है?
हाँ।
अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि उसकी गरिमा पर हमला हुआ
है,
तो वो "Suo
Motu" यानी स्वयं
संज्ञान लेकर अवमानना का मामला चला सकती है।
इसीलिए वकील नरेंद्र मिश्रा ने “लेटर पिटिशन”
के जरिए कोर्ट से ऐसा करने की अपील की है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और बीजेपी का रुख
- बीजेपी
अध्यक्ष जेपी नड्डा
ने निशिकांत दुबे और दिनेश
शर्मा के बयानों से पार्टी को अलग बताया
- उन्होंने
कहा कि यह व्यक्तिगत टिप्पणियां
हैं,
पार्टी का इनसे कोई संबंध
नहीं है
- साथ ही
नेताओं को सावधानी बरतने की हिदायत
दी गई
निष्कर्ष: क्या सीखने की जरूरत है?
- सांसदों
और नेताओं को संविधान और संस्थाओं की मर्यादा बनाए रखनी चाहिए
- सुप्रीम
कोर्ट लोकतंत्र का प्रहरी है – आलोचना हो सकती है,
लेकिन
मर्यादा में
रहकर
- कोर्ट की
आलोचना अगर अपमानजनक और जानबूझकर की जाए, तो कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है