14 अप्रैल 2025
इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला किया जिसमे कोर्ट ने कहा है कि कर्मचारियों की सेवा पुस्तिका (Service Book) में कोई भी बदलाव मूल रिकॉर्ड के आधार पर ही किया जाना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी कर्मचारी का पक्ष जाने बिना जन्मतिथि में बदलाव करना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
यह फैसला प्रयागराज
नगर निगम के छह कर्मचारियों द्वारा दाखिल याचिका पर आया,
जिनकी सेवा पुस्तिका में बिना सूचना और सहमति के जन्मतिथि बदल दी गई
थी, जिससे उनकी सेवा अवधि 1 से 8
वर्षों तक कम हो गई थी।
क्या है मामला?
रामनरेश,
शिवमूरत, सुभाष, संतलाल,
छोटे लाल और राममूरत – ये सभी कर्मचारी नगर निगम में दैनिक वेतनभोगी
के रूप में कार्यरत थे और 1 जून 1992 को
नियमित रूप से नियुक्त किए गए थे। उनके नियुक्ति के समय जो जन्मतिथि प्रमाणपत्र
प्रस्तुत किए गए थे, उन्हीं के आधार पर सेवा पुस्तिका तैयार
की गई थी।
लेकिन वर्ष 2010
में अचानक नगर निगम प्रशासन ने उनकी उम्र में एकतरफा बदलाव कर दिया।
कुछ समय बाद जब बायोमीट्रिक उपस्थिति प्रणाली लागू हुई, तो
नई जन्मतिथि से मेल न खाने के कारण उनकी उपस्थिति अमान्य कर दी गई। जब कर्मचारियों
ने दस्तावेज मांगे तो उन्हें ज्ञात हुआ कि बिना उनकी जानकारी के उनके सेवा रिकॉर्ड
में बदलाव कर दिया गया है।
कोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने इस
पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि:
- किसी भी कर्मचारी की सेवा
पुस्तिका में बदलाव करने से पहले उसका पक्ष सुनना अनिवार्य है।
- सरकारी सेवा में प्रवेश के समय
दर्ज जन्मतिथि ही मान्य मानी जाएगी।
- जन्मतिथि में बदलाव की कोई
प्रक्रिया सिर्फ अधिकारी की मनमानी से नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने इस बदलाव
को अवैध ठहराते हुए उसे रद्द कर दिया और कर्मचारियों को मूल रिकॉर्ड के
अनुसार सभी लाभ देने का आदेश दिया।
फैसले का महत्व
यह निर्णय न केवल
इन छह कर्मचारियों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि
हजारों कर्मचारियों के लिए भी एक दिशा तय करता है, जिन्हें
सेवा पुस्तिका से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह फैसला साफ करता है
कि:
- किसी भी प्रकार का प्रशासनिक
निर्णय न्याय और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए।
- कर्मचारियों के अधिकारों की
अनदेखी अब प्रशासन पर भारी पड़ सकती है।
यह निर्णय एक बार
फिर यह सिद्ध करता है कि न्यायपालिका कर्मचारियों और आम नागरिकों के अधिकारों की
रक्षा में सजग है। अब जरूरी है कि सभी सरकारी विभाग इस आदेश का पालन करते हुए सेवा
पुस्तिकाओं को मूल रिकॉर्ड के आधार पर दुरुस्त करें,
ताकि भविष्य में ऐसे विवाद उत्पन्न न हों।