11 अप्रैल 2025
केरल हाईकोर्ट में
हाल ही में एक ऐसा अनोखा मामला सामने आया जिसने लोगों का ध्यान खींचा। यह मामला 91
वर्षीय बुजुर्ग थेवन और उनकी 88 वर्षीय पत्नी
कुंजली से जुड़ा है। आरोप था कि बुजुर्ग पति ने गुस्से में आकर अपनी पत्नी पर चाकू
से हमला कर दिया। वजह थी – पत्नी का बार-बार पति पर अवैध संबंधों का आरोप लगाना।
क्या है मामला?
घटना 21
मार्च की है। थेवन और कुंजली के बीच बहस हुई, जिसमें
कुंजली ने अपने पति पर अन्य महिलाओं से संबंध रखने का आरोप लगाया। यह बात 91
साल के थेवन को इतनी नागवार गुज़री कि उन्होंने गुस्से में आकर चाकू
से हमला कर दिया। कुंजली गंभीर रूप से घायल हो गईं।
पुलिस ने मौके पर
पहुंचकर थेवन को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद मामला केरल हाईकोर्ट में पहुंचा,
जहां थेवन की ओर से जमानत की अर्जी दाखिल की गई।
कोर्ट ने क्या कहा?
केरल हाईकोर्ट के
न्यायाधीश पी. वी. कुन्हिकृष्णन ने 10 अप्रैल
को फैसला सुनाते हुए भावनात्मक आधार पर थेवन को जमानत दे दी। जज ने कहा –
"मैं
इस मामले पर अधिक कानूनी टिप्पणी नहीं करना चाहता। बुढ़ापे में दोनों को शांति और
प्यार के साथ रहने दिया जाना चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा
कि थेवन को यह समझना चाहिए कि उनकी पत्नी कुंजली ही इस जीवन की अंतिम साथी हैं और
कुंजली को भी यह महसूस करना चाहिए कि थेवन उनके जीवन का सहारा हैं।
जज की भावनात्मक टिप्पणी
जज ने मशहूर मलयालम
कवि एन. एन. कक्कड़ की कविता का ज़िक्र करते हुए कहा –
"विवाह तब महान बनता है, जब एक
दंपती मतभेदों को भी प्रेमपूर्वक अपनाना सीख जाता है।"
उन्होंने कहा कि
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, प्यार की गहराई और बढ़ जाती
है। कुंजली आज भी अपने पति से बेहद प्यार करती हैं, तभी तो
वह अब भी उनकी गतिविधियों पर नज़र रखती हैं।
समाजिक एवं न्यायिक दृष्टिकोण से निष्कर्ष
यह मामला केवल एक
आपराधिक घटना नहीं, बल्कि वृद्धावस्था में
उत्पन्न होने वाले सामाजिक तनाव, वैवाहिक जटिलताओं और
न्यायिक संवेदनशीलता का गहरा उदाहरण है। 91 वर्षीय थेवन
द्वारा अपनी 88 वर्षीय पत्नी पर हमला करना कानून की दृष्टि
से अस्वीकार्य और दंडनीय कृत्य है, लेकिन इस परिपक्व उम्र
में दोनों के बीच का रिश्ता, भावनाएं और मानसिक स्थितियां भी
उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा
सकता।
न्यायिक दृष्टिकोण
से देखा जाए तो केरल उच्च न्यायालय का निर्णय यह दर्शाता है कि कानून केवल अपराध
और सज़ा के गणित तक सीमित नहीं होता, बल्कि
उसमें मानवीय संवेदना की गुंजाइश भी होती है। न्यायाधीश पी. वी. कुन्हिकृष्णन ने
जमानत देते हुए यह माना कि वृद्धावस्था में उत्पन्न परिस्थितियां पारंपरिक कानूनी
मूल्यांकन से हटकर विवेक और सहानुभूति की मांग करती हैं।
सामाजिक दृष्टिकोण
से यह प्रकरण वृद्ध दंपत्ति के जीवन में आई भावनात्मक असुरक्षा,
संदेह, और अकेलेपन की ओर इशारा करता है।
अविश्वास और संदेह जैसे मुद्दे किसी भी उम्र में गंभीर हो सकते हैं, लेकिन बुढ़ापे में जब सहारे की ज़रूरत सबसे अधिक होती है, तब ये तनाव और अधिक खतरनाक रूप ले सकते हैं।
यह मामला यह भी
स्पष्ट करता है कि वृद्धावस्था में केवल शारीरिक देखभाल ही नहीं,
बल्कि मानसिक और भावनात्मक सहयोग भी उतना ही जरूरी है। वैवाहिक जीवन
में संवाद की कमी, मनोवैज्ञानिक दबाव, और
सामाजिक अलगाव जैसे कारक वृद्धजन के लिए मानसिक रूप से हानिकारक सिद्ध हो सकते
हैं।
निष्कर्षतः,
यह फैसला भारत की न्याय व्यवस्था की मानवीयता को उजागर करता है,
जिसमें कठोर कानूनों के साथ-साथ करुणा और सामाजिक समझदारी को भी
महत्व दिया जाता है। यह मामला समाज के लिए भी एक संदेश है कि वृद्ध दंपत्तियों को
केवल सेवा का पात्र नहीं, बल्कि संवेदना, सम्मान और समझदारी के साथ जीवन के अंतिम पड़ाव में जीने का अधिकार मिलना
चाहिए।
यह दृष्टिकोण न केवल न्याय को मानवीय बनाता है, बल्कि समाज में रिश्तों की गरिमा और प्रेम की निरंतरता को भी संरक्षित करता हैं।