दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर किसी व्यक्ति पर साक्ष्य से छेड़छाड़ करने की सिर्फ आशंका हो, लेकिन कोई ठोस सबूत न हो, तो सिर्फ इसी आधार पर जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह टिप्पणी दिल्ली जल बोर्ड (DJB) में रिश्वत और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान दी।
इस
केस में ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) जांच कर रही थी और जांच पूरी हो चुकी है। कोर्ट
के सामने पूर्व चीफ इंजीनियर जयदीश कुमार अरोड़ा और एक अन्य आरोपी अनिल कुमार
अग्रवाल की जमानत याचिका थी। कोर्ट ने पाया कि दोनों के खिलाफ साक्ष्य से छेड़छाड़
करने का कोई पक्का प्रमाण नहीं है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसी कोई आशंका हो
भी,
तो उस पर कुछ शर्तें लगाकर जमानत दी जा सकती है।
अदालत
ने दोनों आरोपियों को 50-50 हजार रुपये के निजी
मुचलके और इतनी ही राशि के जमानती पर रिहा करने का आदेश दिया।
ईडी
ने जमानत का विरोध करते हुए आरोप लगाया था कि अरोड़ा गवाहों को धमका रहे हैं और
उन्होंने कुछ सबूतों जैसे लैपटॉप, मोबाइल और पैसों के
लेन-देन से जुड़े दस्तावेजों को नष्ट भी किया है। लेकिन कोर्ट ने पाया कि ऐसी
बातें साबित नहीं हो सकीं।
अंततः
हाई कोर्ट ने यह साफ किया कि बिना ठोस प्रमाण के सिर्फ साक्ष्य से छेड़छाड़ की
आशंका पर किसी को जेल में रखना उचित नहीं है।