21 अप्रैल 2025
बीमारी से जूझने के बाद जब मरीज अस्पताल से छुट्टी पाते हैं,
तो उन्हें उम्मीद होती है कि अब राहत मिलेगी। लेकिन कई
बार राहत के बजाय उन्हें एक और परेशानी झेलनी पड़ती है — बीमा भुगतान में देरी और अस्पताल और बीमा कंपनियों के बीच की रस्साकशी।
इसी गंभीर समस्या पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, और बीमा कंपनियों को सख्त निर्देश दिए हैं।
हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने कहा:
“यह कोई नया या अनसुना दर्द नहीं है। हर दिन मरीज और उनके
परिजन इलाज से उबरने के बाद एक नई मानसिक पीड़ा से गुजरते हैं — बीमा क्लेम को
लेकर लंबा इंतजार, दस्तावेज़ों की खानापूर्ति,
और अस्पताल का
टालमटोल रवैया।”
कोर्ट का आदेश
हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह:
- बीमा
कंपनियों, मेडिकल काउंसिल और IRDA
(बीमा नियामक प्राधिकरण) के
साथ समन्वय करे
- मेडिकल
बिलों के निपटारे की प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध
बनाए
- मरीजों
को इस तरह की मानसिक प्रताड़ना से बचाए
क्या है मामला?
यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान की गई,
जिसे वकील शशांक गर्ग ने दाखिल किया था। उनका आरोप था:
- 2013 में दिल्ली के
मैक्स अस्पताल
(साकेत) में उनकी सर्जरी हुई
- कैशलेस
बीमा योजना के बावजूद उनसे ₹1.73 लाख एडवांस में वसूले गए
- बीमा
कंपनी ने कहा पूरा भुगतान किया गया, पर अस्पताल ने दावा किया कि कुछ रकम कम मिली
- ₹53,000 की कटौती मरीज की राशि से कर ली गई
शशांक गर्ग ने इसे धोखाधड़ी बताया और अस्पताल कर्मचारियों पर आपराधिक कार्रवाई की मांग की। हालांकि कोर्ट ने पर्याप्त साक्ष्य के अभाव
में याचिका खारिज कर दी, लेकिन पूरे मामले को एक बड़ी सामाजिक समस्या माना।
पहले भी आए हैं सुझाव, लेकिन...
हाईकोर्ट ने याद दिलाया कि:
- इस विषय
पर NHRC (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग)
ने भी
मरीज अधिकार
चार्टर की सिफारिश की थी
- लेकिन आज
तक कोई ठोस नियामक व्यवस्था
लागू नहीं हो पाई है
अदालत की चेतावनी
कोर्ट ने कहा:
“अब सरकार को सुझावों से आगे बढ़कर
ठोस कार्रवाई करनी
चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ
तो अदालत को खुद हस्तक्षेप करना पड़ेगा।”
निष्कर्ष
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र से जुड़ी एक
ज्वलंत समस्या
है। इलाज के बाद मरीजों को राहत नहीं,
बल्कि और तनाव झेलना पड़े – यह किसी भी
सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं। अब वक्त है कि बीमा और अस्पताल व्यवस्थाएं
उत्तरदायी और पारदर्शी
बनें।