17 अप्रैल 2025
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस), द्वारका को फीस न देने पर छात्रों के साथ अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार के
मामले में सख्त फटकार लगाई है। अदालत ने साफ कहा कि फीस नहीं देने वाले बच्चों को
कक्षाओं और स्कूल की अन्य सुविधाओं से वंचित करना पूरी तरह गलत है, और यह किसी भी स्कूल को करने का अधिकार नहीं है।
क्या है मामला?
एक छात्र की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि स्कूल प्रबंधन ने फीस न देने वाले छात्रों को पुस्तकालय में बंद कर दिया और उन्हें कक्षाओं में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई। इस पर अदालत ने गहरी नाराजगी जताई और कहा कि "फीस न देने का मतलब यह नहीं कि छात्रों को नीचा दिखाया जाए।"अदालत ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा,"ऐसा
व्यवहार किसी स्कूल को करने का लाइसेंस नहीं देता। स्कूल पैसे कमाने की मशीन नहीं
हैं। बच्चों के साथ गुलामों जैसा बर्ताव करने वालों के स्कूल बंद कर देने
चाहिए।"
छात्रों की परेशानियों को सुना
सुनवाई के दौरान कुछ छात्र अपनी यूनिफॉर्म और किताबों के साथ अदालत पहुंचे और बताया कि उन्हें कक्षाओं में बैठने नहीं दिया गया। इस पर अदालत ने स्कूल को फटकार लगाते हुए आदेश दिया कि छात्रों को न तो अलग-थलग किया जाए, न ही किसी भी सुविधा से वंचित किया जाए।जांच रिपोर्ट में खुलासा
दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में बनी आठ
सदस्यीय समिति की रिपोर्ट भी अदालत में पेश हुई, जिसमें
स्कूल में बच्चों के साथ भेदभाव और दबाव की स्थिति उजागर की गई। रिपोर्ट में बताया
गया कि स्कूल प्रबंधन ने अनधिकृत शुल्क न भरने पर बच्चों को परेशान किया।
सरकार ने भेजा कारण बताओ नोटिस
दिल्ली
सरकार के शिक्षा निदेशालय ने स्कूल को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और सात दिन के
भीतर जवाब देने को कहा है कि क्यों न उसकी मान्यता रद्द की जाए।
निष्कर्ष
यह मामला केवल फीस से जुड़ा नहीं है, बल्कि
शिक्षा की गरिमा और बच्चों के अधिकारों से भी जुड़ा है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया
है कि शिक्षा एक सेवा है, न कि व्यापार — और बच्चों का अपमान
किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।