“जीवन में लाख मुश्किलें आएं, लेकिन जो डटकर उनका सामना करता है, वही कामयाबी की मिसाल बनता है।”
महाराष्ट्र के अनिकेत कोकरे की कहानी इसी सोच को सच साबित करती है।
महाराष्ट्र के
हिंगोली जिले के छोटे से गांव कलमनुरी में जन्मे अनिकेत ने गरीबी और संघर्ष के बीच
भी कभी हार नहीं मानी। 28 साल के अनिकेत ने महाराष्ट्र
लोक सेवा आयोग की न्यायिक सेवा परीक्षा (सिविल जज परीक्षा 2022)
में शानदार 26वीं रैंक हासिल कर सबको चौंका दिया है। अब वह जज बन चुके हैं।
पहला ही प्रयास और बन गए जज
अनिकेत के लिए ये
सफलता इसलिए भी खास है क्योंकि यह उनका पहला ही प्रयास था। पहली बार में ही
जज बन जाना उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इस परीक्षा का फाइनल रिजल्ट 29
मार्च 2025 को जारी
हुआ था।
मां के साथ की
मजदूरी, पढ़ाई भी जारी रखी
अनिकेत का बचपन
बेहद कठिन था। उनके पिता नहीं थे और मां दिहाड़ी मजदूर के रूप में परिवार
का खर्च चलाती थीं। पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए
अनिकेत को भी मां के साथ मजदूरी करनी पड़ी। फिर भी उन्होंने अखाड़ा बालापुर
जिला परिषद स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की और आगे की पढ़ाई के लिए नांदेड़ के
नारायणराव चव्हाण लॉ कॉलेज से LLB और LLM की डिग्री ली।
पुणे जाकर की
तैयारी, दोस्तों ने बढ़ाया हौसला
LLM के बाद
अनिकेत साल 2021 में पुणे चले गए और वहां प्रतियोगी
परीक्षाओं की तैयारी शुरू की। सुबह से रात तक बस पढ़ाई करते थे। जब सिविल जज की
परीक्षा आई, तो उन्होंने फार्म भर दिया। प्रीलिम्स तो पास हो
गया, लेकिन मेंस की तैयारी के लिए किताबें खरीदने तक के पैसे
नहीं थे। ऐसे में दोस्तों ने मदद की, यहां तक कि खाने
का खर्च भी उठाया।
मां,
गुरु और दोस्तों को दिया श्रेय
कठिन हालातों के
बावजूद अनिकेत ने न सिर्फ मेंस क्लियर किया, बल्कि
इंटरव्यू भी पास कर लिया। आज वे अपने इस मुकाम का श्रेय अपनी मां, गुरुओं और मित्रों को देते हैं, जिन्होंने हर मोड़ पर उनका साथ दिया।
निष्कर्ष
अनिकेत कोकरे की
जीवनगाथा केवल एक व्यक्ति की सफलता की कहानी नहीं है,
बल्कि यह उस अथक संघर्ष, अडिग संकल्प और अपार
विश्वास की मिसाल है, जो हर उस इंसान के भीतर छिपा होता है
जो हालातों से हार मानने की जगह उनसे लड़ना चुनता है।
एक साधारण से गांव
में जन्मा लड़का, जो बचपन में अपनी मां के
साथ खेतों और मजदूरी स्थलों पर पसीना बहाता था, आज न्याय की
कुर्सी पर बैठने जा रहा है। ये परिवर्तन सिर्फ उसकी मेहनत का नहीं, बल्कि उन अनगिनत सपनों का भी है जो गरीबी की छांव में पलते हैं और अवसर की
धूप में खिलना चाहते हैं।
अनिकेत की यह
यात्रा यह सिखाती है कि सीमित संसाधन कभी किसी का भविष्य तय नहीं करते। असली
संपत्ति होती है – इच्छाशक्ति, समर्पण और सही
मार्गदर्शन। जब एक बेटा अपनी मां की मजदूरी को अपनी प्रेरणा बना लेता है, जब दोस्त सिर्फ साथ नहीं बल्कि संबल बन जाते हैं, तब
असंभव भी संभव हो उठता है।
यह कहानी उन तमाम
युवाओं के लिए प्रेरणा है जो संघर्षों से थक चुके हैं। अनिकेत की तरह यदि वे भी
निरंतर प्रयास करें, तो कोई भी बाधा उन्हें रोक
नहीं सकती। अनिकेत ने साबित कर दिया कि “संघर्ष भले ही जन्म से मिले, लेकिन सफलता हमेशा कर्म से मिलती है।”
अंततः,
अनिकेत की कहानी समाज के लिए भी एक संदेश है—कि अगर हम एक-दूसरे का
सहारा बनें, सहयोग करें, और विश्वास
बनाए रखें, तो सबसे कठिन राह भी मंज़िल तक पहुंचा सकती है।
यह कहानी एक दीपक की तरह है, जो अंधेरे में भी उम्मीद की
रोशनी देता है।