सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम टिप्पणी में कहा कि अगर निचली अदालत ने किसी आरोपी को बरी कर दिया है, तो अपीलीय अदालतें उस फैसले को तभी पलटें जब उसमें कोई साफ और गंभीर गलती हो। कोर्ट ने साफ किया कि सिर्फ शक के आधार पर निचली अदालत के फैसले को पलटना न्यायसंगत नहीं है।
यह टिप्पणी सुप्रीम
कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के एक फैसले को रद्द करते हुए दी। हाई कोर्ट ने
जयदीप गौड़ नामक व्यक्ति को उसकी पत्नी की हत्या के आरोप में दोषी ठहराकर सजा
सुनाई थी,
जबकि निचली अदालत ने उसे सबूतों की कमी के चलते बरी कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को गलत ठहराते हुए निचली अदालत का फैसला बहाल
कर दिया।
फैसला लिखने वाले
जस्टिस चंद्रन ने कहा कि जयदीप के खिलाफ कोई ठोस और स्पष्ट सबूत नहीं था। ऐसे में
उसे दोषी ठहराना और निचली अदालत के फैसले को पलटना कानून के मापदंडों पर खरा नहीं
उतरता।
कोर्ट ने यह भी कहा
कि जब निचली अदालत के निर्णय में कोई बड़ी गलती या पक्षपात न हो,
तो अपीलीय अदालतों को उस पर दोबारा विचार नहीं करना चाहिए। दो अलग
नजरिए हो सकते हैं, लेकिन अगर एक अदालत ने आरोपी को बरी किया
है और उसमें तर्कसंगतता है, तो उसे बदलना आसान नहीं होना
चाहिए।
इस फैसले से यह
स्पष्ट संदेश गया है कि अदालतों को निष्पक्षता और ठोस साक्ष्यों के आधार पर ही काम
करना चाहिए, ताकि न्याय प्रणाली में लोगों का
विश्वास बना रहे।