सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) – धारा 26: वादों का संस्थापन (Institution of Suits)
अर्थ और उद्देश्य
धारा 26
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में वादों की
संस्थापन (Institution of Suits) से संबंधित प्रावधान करती
है। इस धारा के अनुसार, प्रत्येक वाद को वादी द्वारा एक
विधिवत रूप से तैयार वादपत्र (Plaint) के
माध्यम से संस्थापित किया जाना चाहिए, जो न्यायालय में
प्रस्तुत किया जाता है। वाद के संस्थापन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि
न्यायालय को वाद के तथ्यों, दावों और पक्षकारों की जानकारी
प्राप्त हो सके, ताकि वह उचित न्याय कर सके।
प्रावधान
1. वाद का
प्रारंभ (Commencement of Suit)
- वाद का प्रारंभ एक वादपत्र (Plaint)
दायर करने के साथ होता है।
- वादपत्र में वादी द्वारा किए गए
दावे और वाद का कारण स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया जाना चाहिए।
- वाद पत्र में प्रतिवादी का नाम,
पता और वाद के संबंध में सभी आवश्यक विवरण दर्ज किए जाने
चाहिए।
2. वादपत्र
का प्रारूप (Format of Plaint)
- वादपत्र को आदेश 6
और आदेश 7 के
नियमों के अनुसार तैयार किया जाता है।
- वादपत्र में दावे का आधार,
वादी की मांग, वाद का कारण और तथ्यात्मक
स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए।
- यदि वाद संपत्ति से संबंधित है तो
संपत्ति का उचित विवरण और मूल्य का उल्लेख किया जाना चाहिए।
3. शपथ पत्र
(Affidavit) का अनिवार्य समावेश:
- संशोधन (2002):
सिविल प्रक्रिया संहिता में वर्ष 2002 के
संशोधन के तहत धारा 26 में यह अनिवार्य किया गया कि
प्रत्येक वाद के साथ वादी को शपथ पत्र (Affidavit) भी संलग्न करना होगा।
- इस शपथ पत्र में वादी को यह
प्रमाणित करना होगा कि वाद में प्रस्तुत की गई जानकारी सत्य और उसके
सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही है।
महत्वपूर्ण नियम और प्रक्रिया
आदेश 4:
संस्थापन की प्रक्रिया (Institution of Suits)
- वाद का संस्थापन न्यायालय में वादपत्र
दायर करने के साथ होता है।
- वादपत्र में सभी आवश्यक दस्तावेज
और प्रमाण संलग्न किए जाते हैं।
- वादपत्र के साथ कोर्ट फीस (Court
Fees) और आवश्यक शुल्क जमा करना अनिवार्य
होता है।
आदेश 6:
वादपत्र में कथन (Pleadings)
- वादपत्र में स्पष्ट और संक्षिप्त
रूप से तथ्यों का उल्लेख किया जाना चाहिए।
- आरोपों को स्पष्ट रूप से व्यक्त
किया जाना चाहिए और कानूनी दावे को उचित ढंग से प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
आदेश 7:
वादपत्र का प्रारूप (Plaint Format)
- वादपत्र में वादी और प्रतिवादी के
नाम,
वाद का कारण और वादी द्वारा मांगी गई राहत का उल्लेख आवश्यक
है।
- वादपत्र में दावा मूल्यांकन (Valuation
of Suit) का स्पष्ट विवरण दिया
जाना चाहिए।
न्यायिक निर्णय
कुलदीप सिंह बनाम
राज्य, AIR 2005 SC 1246
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट
किया कि धारा 26 के तहत वाद की
संस्थापन के लिए वादपत्र का दायर किया जाना अनिवार्य है और बिना उचित वादपत्र
दायर किए गए वाद को न्यायालय द्वारा खारिज किया जा सकता है।
सूरज मल बनाम
फूलचंद, AIR 1976 SC 1541
- इस मामले में न्यायालय ने माना कि
वाद की संस्थापन के लिए वादी को सभी आवश्यक तथ्यों और दस्तावेजों के साथ उचित
वादपत्र प्रस्तुत करना चाहिए ताकि न्यायालय उचित सुनवाई कर सके।
शपथ पत्र की
अनिवार्यता (Amendment of 2002)
- 2002 के संशोधन के तहत
यह अनिवार्य कर दिया गया कि वादपत्र के साथ वादी को शपथ पत्र (Affidavit)
भी संलग्न करना होगा।
- शपथ पत्र में वादी यह प्रमाणित
करेगा कि वाद में प्रस्तुत की गई जानकारी सत्य है और झूठी सूचना के लिए वादी
को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
महत्व और उद्देश्य:
1. सत्यता
और पारदर्शिता: वादपत्र में प्रस्तुत की गई जानकारी
की सत्यता सुनिश्चित करना।
2. वाद
की स्पष्टता: वाद का आधार और कारण स्पष्ट होने से
न्यायालय के लिए निर्णय करना आसान हो जाता है।
3. दुरुपयोग
रोकना: गलत और झूठे वादों की रोकथाम करना।
4. उचित
न्याय सुनिश्चित करना: वादपत्र और शपथ पत्र के
माध्यम से उचित न्याय दिलाना।
निष्कर्ष
धारा 26
वादों की संस्थापन से संबंधित अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है,
जो न्यायालय में वाद दायर करने की प्रक्रिया और आवश्यकताओं को
निर्धारित करता है। 2002 के संशोधन के माध्यम से शपथ पत्र की
अनिवार्यता जोड़कर न्याय प्रणाली में पारदर्शिता और सत्यता को बढ़ावा दिया गया।
वादपत्र के उचित प्रारूप और आवश्यक तथ्यों की प्रस्तुति से न्यायालय को विवाद का
सही मूल्यांकन करने में सहायता मिलती है, जिससे निष्पक्ष और
त्वरित न्याय सुनिश्चित किया जाता है। यह प्रावधान न केवल वादी को उचित सुनवाई का
अधिकार देता है बल्कि प्रतिवादी को भी वाद की जानकारी और अपने बचाव का अवसर प्रदान
करता है।
FAQs: सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) – धारा 26: वादों का संस्थापन (Institution of Suits)
1. धारा 26
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का क्या अर्थ है?
उत्तर:
धारा 26 सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC),
1908 वादों के संस्थापन से संबंधित है। इसके अनुसार, प्रत्येक वाद को वादी द्वारा विधिवत रूप से वादपत्र (Plaint)
के माध्यम से दायर किया जाना चाहिए। वादपत्र में वादी द्वारा किए गए
दावे और वाद का कारण स्पष्ट रूप से उल्लेखित होना चाहिए।
2. वाद का
संस्थापन कैसे होता है?
उत्तर:
वाद का संस्थापन वादपत्र दायर करने के साथ होता है, जो न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है। वादपत्र में वादी का दावा,
प्रतिवादी का नाम और पता, और विवाद से संबंधित
सभी आवश्यक विवरण शामिल होने चाहिए।
3. वादपत्र
में कौन-कौन सी जानकारी होनी चाहिए?
उत्तर:
वादपत्र में निम्नलिखित जानकारी होनी चाहिए:
- वादी और प्रतिवादी का नाम और पता।
- वाद का आधार और कारण।
- वादी द्वारा मांगी गई राहत (Relief
Sought)।
- यदि वाद संपत्ति से संबंधित है तो
संपत्ति का विवरण और उसकी अनुमानित कीमत।
4. वादपत्र
का प्रारूप किसके अनुसार तैयार किया जाता है?
उत्तर:
वादपत्र का प्रारूप आदेश 6 और आदेश 7
के नियमों के अनुसार तैयार किया जाता है।
5. क्या
वादपत्र के साथ कोई अन्य दस्तावेज संलग्न करना आवश्यक है?
उत्तर:
हाँ, वादपत्र के साथ शपथ पत्र (Affidavit)
संलग्न करना आवश्यक है। 2002 के संशोधन के
अनुसार, वादपत्र के साथ वादी को यह प्रमाणित करना होता है कि
वाद में प्रस्तुत जानकारी सत्य है।
6. वादपत्र
में शपथ पत्र (Affidavit) का क्या महत्व है?
उत्तर:
शपथ पत्र यह प्रमाणित करता है कि वादपत्र में दी गई जानकारी वादी के
सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सत्य और सही है। इससे न्यायालय को सटीक और सत्य जानकारी
मिलती है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहती
है।
7. वादपत्र
में दावा मूल्यांकन (Valuation of Suit) क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
दावा मूल्यांकन से यह तय होता है कि वाद की सुनवाई किस श्रेणी के
न्यायालय में होगी। इसके अलावा, दावा मूल्यांकन के आधार पर
कोर्ट फीस का निर्धारण भी किया जाता है।
8. वादपत्र
दायर करने के बाद आगे की प्रक्रिया क्या होती है?
उत्तर:
वादपत्र दायर करने के बाद:
1. न्यायालय
वादपत्र और दस्तावेजों की जांच करता है।
2. यदि
वादपत्र सही पाया जाता है तो समन (Summons) जारी किया जाता है।
3. प्रतिवादी
को उत्तर देने का अवसर दिया जाता है।
9. आदेश 4
के तहत वाद की संस्थापन प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
आदेश 4 के तहत वाद की संस्थापन प्रक्रिया में:
- वादी द्वारा वादपत्र दायर किया
जाता है।
- वादपत्र के साथ सभी आवश्यक
दस्तावेज और प्रमाण संलग्न किए जाते हैं।
- कोर्ट फीस का भुगतान किया जाता
है।
10. धारा 26
के तहत वादपत्र में कथन (Pleadings) की क्या
आवश्यकता है?
उत्तर:
आदेश 6 के अनुसार वादपत्र में संक्षिप्त और
स्पष्ट रूप से तथ्यों का उल्लेख किया जाना चाहिए। आरोपों को सुस्पष्ट रूप से
व्यक्त करना और कानूनी दावे को उचित ढंग से प्रस्तुत करना आवश्यक है।
11. यदि
वादपत्र में कोई त्रुटि हो तो क्या वाद खारिज किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ, यदि वादपत्र में आवश्यक तथ्यों और
सूचनाओं का समावेश नहीं किया गया है या कानूनी आवश्यकताओं का पालन नहीं किया गया
है, तो न्यायालय वाद को खारिज कर सकता है।
12. वादपत्र
दायर करने के लिए कोर्ट फीस (Court Fees) का भुगतान अनिवार्य
क्यों है?
उत्तर:
कोर्ट फीस का भुगतान न्यायालय में वाद दायर करने की कानूनी शर्त है।
बिना उचित कोर्ट फीस के वाद को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
13. वादपत्र
में संशोधन की अनुमति कब दी जा सकती है?
उत्तर:
वादपत्र में संशोधन की अनुमति आदेश 6, नियम 17 के तहत दी जाती है, यदि न्यायालय को लगता है कि संशोधन आवश्यक है और इससे वाद के परिणाम पर
प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
14. क्या
वादपत्र की सामग्री झूठी होने पर वादी को दंडित किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ, यदि वादपत्र में प्रस्तुत जानकारी झूठी
पाई जाती है तो वादी को न्यायालय द्वारा दंडित किया जा सकता है।
15. 2002 के
संशोधन का वादपत्र पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
2002 के संशोधन के तहत वादपत्र के साथ शपथ पत्र (Affidavit)
को अनिवार्य कर दिया गया, जिससे वाद में
प्रस्तुत जानकारी की सत्यता सुनिश्चित हो सके और झूठे दावों को रोका जा सके।
16. क्या
बिना वादपत्र के वाद की संस्थापन संभव है?
उत्तर:
नहीं, धारा 26 के तहत
वाद की संस्थापन के लिए वादपत्र का दायर किया जाना अनिवार्य है। बिना वादपत्र के
वाद दायर नहीं किया जा सकता।
17. वाद की
संस्थापन में कितना समय लगता है?
उत्तर:
वाद की संस्थापन में समय न्यायालय में दस्तावेजों की जांच, कोर्ट फीस की भुगतान प्रक्रिया और समन जारी करने की प्रक्रिया पर निर्भर
करता है।
18. धारा 26
के तहत कौन-कौन से न्यायिक निर्णय महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
- कुलदीप सिंह बनाम राज्य (AIR
2005 SC 1246): वादपत्र के बिना वाद को
खारिज किया जा सकता है।
- सूरज मल बनाम फूलचंद (AIR
1976 SC 1541): वाद की संस्थापन के लिए
आवश्यक तथ्यों और दस्तावेजों का समावेश अनिवार्य है।
19. वादी को
वाद की संस्थापन के दौरान क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
उत्तर:
- वादपत्र में सभी आवश्यक तथ्य
स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करें।
- वाद का उचित मूल्यांकन और कोर्ट
फीस का भुगतान करें।
- वादपत्र के साथ शपथ पत्र को
संलग्न करना न भूलें।
20. धारा 26
का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
धारा 26 का उद्देश्य वादों की संस्थापन को एक
सुव्यवस्थित और पारदर्शी प्रक्रिया बनाना है ताकि न्यायालय को वाद के तथ्यों और
पक्षकारों की सही जानकारी प्राप्त हो और न्यायिक प्रक्रिया सुचारू रूप से चल सके।