भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) देश
के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आदर्शों को प्रतिबिंबित करती
है। इसमें उल्लिखित 'समता' (Equality) का
सिद्धांत भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद है। समता का अर्थ है - सभी नागरिकों को बिना
किसी भेदभाव के समान अवसर, अधिकार और न्याय प्रदान करना।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का उद्देश्य न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता पाना था,
बल्कि एक ऐसे समाज की स्थापना करना भी था जहाँ जाति, धर्म, लिंग, जन्मस्थान या भाषा
के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव न हो। संविधान निर्माताओं ने इस उद्देश्य को
ध्यान में रखते हुए 'समता' को भारतीय
संविधान की प्रस्तावना में महत्वपूर्ण स्थान दिया।
'समता'
का तात्पर्य केवल कानूनी या राजनीतिक समानता तक सीमित नहीं है,
बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक
समानता को भी अपने भीतर समाहित करता है। यह सिद्धांत व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने
का अधिकार देता है और समाज में एक ऐसे वातावरण का निर्माण करता है जहाँ कोई भी
व्यक्ति अपने जन्म या पृष्ठभूमि के कारण अवसरों से वंचित न रहे।
प्रस्तावना में समता का स्थान और महत्व
भारतीय संविधान की
प्रस्तावना में समता को एक मौलिक सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया गया है।
प्रस्तावना में कहा गया है:
“हम,
भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण
प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष,
लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, और उसके
समस्त नागरिकों को: न्याय, सामाजिक, आर्थिक
और राजनीतिक; विचार, अभिव्यक्ति,
विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता;
प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए; तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित
करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
प्रस्तावना में
समता को दो रूपों में परिभाषित किया गया है:
- अवसर की समता (Equality
of Opportunity): यह नागरिकों को बिना
किसी भेदभाव के समान अवसर उपलब्ध कराने की बात करती है ताकि वे अपने जीवन को
संवार सकें और राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकें।
- प्रतिष्ठा की समता (Equality
of Status): यह हर नागरिक को समान
सम्मान और गरिमा प्रदान करने का आश्वासन देती है ताकि समाज में सभी को समान
रूप से महत्व मिल सके।
संविधान में समता के विभिन्न पहलू
भारतीय संविधान में
समता का विचार केवल प्रस्तावना तक सीमित नहीं है। इसे मौलिक अधिकारों और नीति
निर्देशक सिद्धांतों में भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित किया गया है।
1. कानूनी समता (Equality Before Law):
अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि "राज्य किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से वंचित नहीं करेगा और भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि का समान संरक्षण प्राप्त होगा।"यह अनुच्छेद सभी नागरिकों को कानून की दृष्टि में समानता प्रदान करता है और किसी भी प्रकार के भेदभाव को अस्वीकार करता है।
2. अवसर की समता (Equality of Opportunity):
अनुच्छेद 16 में राज्य के अधीन सेवाओं में सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करने की बात की गई है। यह अनुच्छेद सरकारी नौकरियों में अवसर की समानता सुनिश्चित करता है और किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान या किसी अन्य आधार पर भेदभाव को रोकता है।
3. अस्पृश्यता का उन्मूलन (Abolition of Untouchability):
अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता का उन्मूलन कर दिया गया है और इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है। यह समाज में समानता और गरिमा को स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था।
4. शीर्ष पदों तक पहुँच की समता:
अनुच्छेद 18 में उपाधियों के उन्मूलन का प्रावधान है, ताकि समाज में कोई व्यक्ति जन्म या वंश के आधार पर विशेषाधिकार प्राप्त न कर सके।
5. स्त्रियों और कमजोर वर्गों के लिए विशेष प्रावधान:
अनुच्छेद 15(3) में महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए विशेष प्रावधान किए जा सकते हैं। इसके अलावा, अनुच्छेद 15(4) और 15(5) में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष सुविधाएँ और आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 325:
चुनावों में समता का सिद्धांत
अनुच्छेद 325
भारतीय संविधान में चुनावी समता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान
है, जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके धर्म,
जाति, लिंग, वंश या
जन्मस्थान के आधार पर मतदाता सूची में सम्मिलित होने या
न होने का दावा करने या वंचित किए जाने का अधिकार नहीं होगा। इसका उद्देश्य यह है
कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी नागरिकों को समान अवसर और अधिकार
प्राप्त हों। इस अनुच्छेद के तहत किसी भी व्यक्ति को मतदान के अधिकार से वंचित
नहीं किया जा सकता और मतदाता सूची में किसी भी प्रकार का भेदभाव अस्वीकार्य है।
अनुच्छेद 326:
वयस्क मताधिकार का अधिकार
अनुच्छेद 326
भारत में वयस्क मताधिकार (Universal Adult Suffrage) का प्रावधान करता है। इसके अनुसार, किसी भी व्यक्ति
को 21 वर्ष की आयु तक पहुंचने
पर चुनाव में मतदान का अधिकार होगा। हालांकि, 61वें संविधान
संशोधन अधिनियम, 1988 के माध्यम से इस आयु को घटाकर 18
वर्ष कर दिया गया। अब, भारत का हर नागरिक जो 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र का है, उसे बिना किसी भेदभाव के
मतदान का अधिकार प्राप्त है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य लोकतंत्र में सभी नागरिकों
की भागीदारी को सुनिश्चित करना और समाज में समानता और न्याय की भावना को
प्रोत्साहित करना है।
समता और लोकतांत्रिक मूल्य
अनुच्छेद 325
और 326 दोनों भारतीय लोकतंत्र में समता (Equality)
को मजबूत करने वाले महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। अनुच्छेद 325 चुनावी प्रक्रिया में किसी भी प्रकार के भेदभाव को रोकता है, जबकि अनुच्छेद 326 हर वयस्क नागरिक को मतदान का समान
अधिकार देता है। इन दोनों अनुच्छेदों के माध्यम से भारत में लोकतंत्र की
बुनियाद को मजबूत किया गया है, ताकि सभी नागरिक समान रूप
से राजनीतिक प्रक्रिया में भाग ले सकें।
अनुच्छेद 39:
समता का उद्देश्य
अनुच्छेद 39 भारतीय संविधान के राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों का हिस्सा है,
जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक
समता को सुनिश्चित करने के लिए राज्य को निर्देश देता
है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि सभी नागरिकों को समान अवसर मिले और समाज में
किसी भी प्रकार की आर्थिक और सामाजिक असमानता न हो।
आर्थिक संसाधनों का समान वितरण
अनुच्छेद 39(b)
में यह निर्देश दिया गया है कि सामुदायिक संसाधनों का
स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए जिससे समाज के सभी वर्गों को लाभ
मिल सके। यह समाज में सामाजिक न्याय और आर्थिक समता को बढ़ावा देने
के लिए आवश्यक है।
धन और साधनों का संकेन्द्रण रोकना
अनुच्छेद 39(c)
यह सुनिश्चित करता है कि देश की आर्थिक व्यवस्था ऐसी हो कि
धन और उत्पादन के साधनों का संकेन्द्रण कुछ व्यक्तियों या समूहों तक सीमित
न रहे। इसका उद्देश्य समाज में आर्थिक असमानता को रोकना है।
लैंगिक समानता का प्रावधान
अनुच्छेद 39(d)
में यह प्रावधान किया गया है कि पुरुषों और महिलाओं को समान
कार्य के लिए समान वेतन मिले। यह प्रावधान लैंगिक समानता को प्रोत्साहित
करता है और महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है।
श्रमिकों और बच्चों का संरक्षण
अनुच्छेद 39(e)
और 39(f) में यह प्रावधान किया गया है कि
श्रमिकों, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों
के स्वास्थ्य और शक्ति की रक्षा की जाए और उन्हें शोषण से बचाया जाए।
बच्चों को सुरक्षित वातावरण और विकास की सुविधाएं मिलनी चाहिए।
अनुच्छेद 39
भारतीय संविधान में समता और सामाजिक न्याय की स्थापना का
महत्वपूर्ण आधार है। इसके प्रावधान समाज के कमजोर वर्गों की रक्षा करते हैं और समानता
और न्यायपूर्ण व्यवस्था को साकार करने में मदद करते हैं।
भारतीय न्यायपालिका द्वारा समता की व्याख्या और संरक्षण
भारतीय न्यायपालिका
ने समता के अधिकार को समय-समय पर व्याख्यायित और सुरक्षित किया है। कई महत्वपूर्ण
मामलों में न्यायपालिका ने समता के सिद्धांत की पुष्टि की है और इसे संविधान की
मूल संरचना का हिस्सा माना है।
1. केशवानंद
भारती बनाम केरल राज्य (1973)
इस ऐतिहासिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह घोषित किया कि
संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित समता, स्वतंत्रता और
न्याय जैसे मूल्य संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं और इन्हें किसी भी प्रकार
के संशोधन द्वारा कमजोर नहीं किया जा सकता।
2. मिनर्वा
मिल्स बनाम भारत संघ (1980)
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि समता और न्याय संविधान का
आधार हैं और इन्हें कमजोर करना संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित करता है।
3. इंदिरा
साहनी बनाम भारत संघ (1992)
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की
संवैधानिकता को बरकरार रखा और यह स्पष्ट किया कि आरक्षण का उद्देश्य समाज में समता
स्थापित करना है, न कि किसी वर्ग को विशेषाधिकार देना।
4. नवतेज
सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018)
इस ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध
की श्रेणी से बाहर कर दिया और अनुच्छेद 14 और 21 के तहत सभी व्यक्तियों को समानता और गरिमा का अधिकार प्रदान किया।
समता और सामाजिक न्याय का संबंध
समता और सामाजिक
न्याय का घनिष्ठ संबंध है। सामाजिक न्याय का अर्थ है समाज के हर वर्ग को समान अवसर
और सम्मान देना ताकि वह समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सके। समता के बिना सामाजिक
न्याय की कल्पना अधूरी है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर
ने संविधान सभा में कहा था:
“समाज में समता और बंधुत्व तब तक स्थापित नहीं हो सकता जब तक
समाज में आर्थिक और सामाजिक समानता स्थापित नहीं हो जाती। समता का अर्थ केवल
राजनीतिक समानता नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक समानता
को भी अपने भीतर समाहित करती है।”
समता की सीमाएँ और चुनौतियाँ
भारतीय संविधान ने
समता को एक मौलिक अधिकार के रूप में सुनिश्चित किया है,
लेकिन समाज में व्याप्त असमानता और भेदभाव को समाप्त करना एक कठिन
कार्य रहा है।
1. जाति आधारित असमानता:
भारतीय समाज में जाति आधारित असमानता और भेदभाव अभी भी विद्यमान है, जो समता के सिद्धांत को कमजोर करता है।2. लैंगिक असमानता:
महिलाओं को अभी भी समान अवसर और अधिकार नहीं मिल पाते हैं। कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ भेदभाव, घरेलू हिंसा और समान वेतन की अनुपलब्धता समता के लक्ष्य को प्रभावित करती है।3. आर्थिक असमानता:
आर्थिक असमानता भी समता के सिद्धांत को कमजोर करती है। गरीब और अमीर के बीच की खाई समाज में असमानता को बढ़ावा देती है।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान के
प्रस्तावना में उल्लिखित 'समता' का
महत्व केवल कानूनी समानता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक
समावेशी और समतामूलक समाज की स्थापना का मार्गदर्शन करता है। समता का उद्देश्य सभी
नागरिकों को समान अवसर प्रदान करना और समाज में सभी वर्गों को गरिमा के साथ जीवन
जीने का अधिकार देना है। भारतीय न्यायपालिका ने समता को संविधान की मूल संरचना का
हिस्सा मानते हुए इसे विस्तृत रूप में परिभाषित किया है। समता के बिना लोकतंत्र और
सामाजिक न्याय का उद्देश्य अधूरा रह जाता है। संविधान का यह मूल्य तब ही सार्थक
होगा जब समाज में व्याप्त असमानताओं को समाप्त कर सभी को समान अवसर और सम्मान
प्रदान किया जाएगा।
भारतीय संविधान के
प्रस्तावना में 'समता' के
महत्व पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1:
भारतीय संविधान में 'समता' का क्या अर्थ है?
उत्तर:
'समता' का अर्थ है सभी नागरिकों को बिना किसी
भेदभाव के समान अवसर, अधिकार और न्याय प्रदान करना। यह
सिद्धांत केवल राजनीतिक समानता तक सीमित नहीं है, बल्कि
सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समानता को भी समाहित करता है।
प्रश्न 2:
भारतीय संविधान के किन अनुच्छेदों में 'समता'
का प्रावधान है?
उत्तर:
'समता' को संविधान में विभिन्न अनुच्छेदों के
माध्यम से लागू किया गया है:
- अनुच्छेद 14:
कानून के समक्ष समानता
- अनुच्छेद 15:
भेदभाव का निषेध
- अनुच्छेद 16:
सार्वजनिक सेवाओं में अवसर की समानता
- अनुच्छेद 17:
अस्पृश्यता का उन्मूलन
- अनुच्छेद 18:
उपाधियों का उन्मूलन
प्रश्न 3:
प्रस्तावना में 'समता' का
उल्लेख कैसे किया गया है?
उत्तर:
संविधान की प्रस्तावना में 'समता' को एक मौलिक मूल्य के रूप में शामिल किया गया है। इसमें "प्रतिष्ठा और अवसर की समता" प्रदान करने का
उल्लेख किया गया है ताकि समाज में सभी को समान अवसर और सम्मान मिल सके।
प्रश्न 4:
अनुच्छेद 325 और 326 का
समता से क्या संबंध है?
उत्तर:
- अनुच्छेद 325:
धर्म, जाति, लिंग,
वंश, जन्मस्थान आदि के आधार पर किसी को
मतदाता सूची से वंचित नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 326:
वयस्क मताधिकार का अधिकार देता है, जिससे
18 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को बिना भेदभाव
के मतदान का अधिकार मिलता है।
प्रश्न 5:
अनुच्छेद 39 में समता का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
अनुच्छेद 39 सामाजिक और आर्थिक समता को
सुनिश्चित करने के लिए राज्य को निर्देश देता है। इसके अंतर्गत:
- आर्थिक संसाधनों का समान वितरण
- धन और साधनों का संकेन्द्रण रोकना
- पुरुषों और महिलाओं को समान कार्य
के लिए समान वेतन
- श्रमिकों और बच्चों की सुरक्षा
प्रश्न 6:
भारतीय न्यायपालिका ने समता की व्याख्या कैसे की है?
उत्तर:
भारतीय न्यायपालिका ने विभिन्न फैसलों में समता के महत्व पर जोर
दिया है:
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973):
समता को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा माना।
- मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980):
समता और न्याय संविधान का आधार हैं।
- इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992):
आरक्षण का उद्देश्य समाज में समता स्थापित करना है।
प्रश्न 7:
समता का सामाजिक और आर्थिक समानता से क्या संबंध है?
उत्तर:
समता का अर्थ केवल राजनीतिक समानता तक सीमित नहीं है। इसमें सामाजिक
समानता का अर्थ जाति, धर्म, लिंग
और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव से मुक्ति और आर्थिक समानता का अर्थ धन और
संसाधनों का समान वितरण शामिल है।
प्रश्न 8:
क्या समता और सामाजिक न्याय में कोई संबंध है?
उत्तर:
हां, समता और सामाजिक न्याय एक-दूसरे
के पूरक हैं। सामाजिक न्याय का उद्देश्य समाज में सभी वर्गों को समान अवसर और
सम्मान प्रदान करना है, जो समता के बिना संभव नहीं है।
प्रश्न 9:
संविधान में महिलाओं और कमजोर वर्गों के लिए कौन से विशेष प्रावधान
हैं?
उत्तर:
- अनुच्छेद 15(3):
महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान।
- अनुच्छेद 15(4)
और 15(5): पिछड़े
वर्गों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण
और विशेष सुविधाएं।
प्रश्न 10:
समता की दिशा में भारतीय समाज को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता
है?
उत्तर:
- जाति आधारित असमानता
- लैंगिक असमानता
- आर्थिक असमानता
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक
असमान पहुंच
प्रश्न 11:
समता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है?
उत्तर:
सरकार ने समता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं और कानून लागू
किए हैं, जैसे:
- आरक्षण नीति
- बेटी बचाओ,
बेटी पढ़ाओ योजना
- मनरेगा (MGNREGA)
- प्रधानमंत्री जन धन योजना
प्रश्न 12:
डॉ. भीमराव अंबेडकर का समता पर क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
डॉ. अंबेडकर ने कहा था:
"समाज में समता और बंधुत्व तब तक स्थापित नहीं हो सकता जब
तक समाज में आर्थिक और सामाजिक समानता स्थापित नहीं हो जाती।" उन्होंने सामाजिक न्याय और समता को भारतीय लोकतंत्र का आधार माना।
प्रश्न 13:
समता की भावना को मजबूत करने के लिए नागरिकों की क्या भूमिका है?
उत्तर:
- समानता और न्याय का समर्थन करना
- जाति,
धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव का विरोध करना
- समान अवसर और अधिकारों के प्रति
जागरूकता फैलाना
- संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करना