भारतीय न्याय
संहिता की धारा 16 क्या है?
“भारतीय न्याय
संहिता, 2023 का
अध्याय 3 साधारण अपवाद (General
Exceptions): धारा 16- न्यायालय के
निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य।
न्यायालय के निर्णय
या आदेश के अनुसरण में किया गया या उसके द्वारा समर्थित
कोई कार्य, यदि ऐसे निर्णय या आदेश के प्रवृत्त
रहने के दौरान किया गया हो, अपराध नहीं है, भले ही न्यायालय को ऐसा निर्णय या आदेश पारित करने का अधिकार न हो,
बशर्ते कि सद्भावपूर्वक कार्य करने वाला व्यक्ति यह विश्वास
करता हो कि न्यायालय को ऐसा अधिकार है।
संक्षिप्त विवरण
भारतीय न्याय संहिता,2023
की धारा 16
में प्रावधान है कि न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुपालन में या उसके द्वारा
अधिकृत किए गए किसी कार्य को अपराध नहीं माना जाता है,
भले ही न्यायालय के पास ऐसा निर्णय या आदेश जारी करने का अधिकार
क्षेत्र न हो। यह संरक्षण तब तक लागू होता है जब तक कि कार्य उस समय किया गया हो
जब निर्णय या आदेश अभी भी प्रभावी था और कार्य करने वाले व्यक्ति ने
सद्भावनापूर्वक ऐसा किया था, यह मानते हुए कि न्यायालय के
पास उचित अधिकार क्षेत्र है।
उदाहरण
यदि कोई न्यायालय
किसी निश्चित संपत्ति को जब्त करने का आदेश जारी करता है और कोई व्यक्ति इस आदेश
का पालन करता है, तो जब्ती का कार्य धारा 16
के अंतर्गत अपराध नहीं माना जाएगा, भले ही बाद
में यह पाया जाए कि न्यायालय को आदेश जारी करने का क्षेत्राधिकार नहीं था, बशर्ते कि व्यक्ति ने सद्भावनापूर्वक कार्य किया हो और कार्रवाई के समय
आदेश अभी भी वैध था।
भारतीय न्याय
संहिता धारा 16: न्यायालय के निर्णय या
आदेश के अनुसरण में किए गए कार्यों से संबंधित सामान्य प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1:
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 16 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
बीएनएस की धारा 16 यह प्रावधान करती है कि यदि
कोई कार्य न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुपालन में किया गया है, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा, भले ही बाद में यह
साबित हो कि न्यायालय को ऐसा आदेश देने का अधिकार नहीं था। यह सुरक्षा उन
व्यक्तियों के लिए लागू होती है जो सद्भावपूर्वक यह विश्वास रखते हैं कि न्यायालय
के पास ऐसा करने का अधिकार है और कार्य उस समय किया गया जब आदेश प्रभावी था।
प्रश्न 2:
क्या धारा 16 के तहत सुरक्षा तब भी लागू होगी
जब आदेश देने वाले न्यायालय का अधिकार क्षेत्र बाद में अमान्य पाया जाए?
उत्तर:
हाँ, यदि कोई व्यक्ति न्यायालय के आदेश का
पालन करते समय सद्भावपूर्वक यह विश्वास करता था कि आदेश वैध है और वह आदेश प्रभावी
था, तो वह इस धारा के तहत सुरक्षा का हकदार होगा, भले ही बाद में यह पाया जाए कि न्यायालय के पास आदेश जारी करने का अधिकार
नहीं था।
प्रश्न 3:
क्या कोई अदालती निर्णय धारा 16 के सिद्धांत
की पुष्टि करता है?
उत्तर:
हाँ, "एम. अब्दुल्ला बनाम स्टेट ऑफ
तमिलनाडु" (AIR 1982 SC 997) मामले में सर्वोच्च
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई कार्य न्यायालय के वैध आदेश के अनुपालन में
किया गया था, तो उसे अपराध नहीं माना जा सकता, भले ही आदेश देने वाले न्यायालय का अधिकार क्षेत्र बाद में अमान्य घोषित
कर दिया जाए। यह निर्णय न्यायालय के आदेशों का पालन करने वाले व्यक्तियों की
सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
प्रश्न 4:
धारा 16 के तहत सुरक्षा प्राप्त करने के लिए
किन दो आवश्यक शर्तों को पूरा करना जरूरी है?
उत्तर:
1. सद्भावनापूर्वक
कार्य किया गया हो – व्यक्ति को यह विश्वास
होना चाहिए कि न्यायालय के पास आदेश जारी करने की शक्ति थी।
2. आदेश
प्रभावी हो – कार्य उस समय किया गया हो जब आदेश अभी
भी लागू था।
प्रश्न 5:
धारा 16 का व्यावहारिक उदाहरण क्या हो सकता है?
उत्तर:
यदि एक न्यायालय किसी अधिकारी को किसी संपत्ति को जब्त करने का आदेश
देता है और अधिकारी इस आदेश का पालन करता है, तो यह कार्य
अपराध नहीं माना जाएगा, भले ही बाद में पता चले कि न्यायालय
के पास यह आदेश देने का अधिकार नहीं था। जब तक अधिकारी ने सद्भावनापूर्वक आदेश का
पालन किया और जब्ती का कार्य आदेश के प्रभावी रहने के दौरान किया गया, वह इस धारा के तहत सुरक्षित रहेगा।