विधि का शासन: ए. वी. डायसी का मत विधि के समक्ष समता का विचार और विधि के शासन के सिद्धांत का मूल तत्व है। What is Rule of Law?

 

Rule of Law, www.legalmitra.in


विधि का शासन: ए
. वी. डायसी का मत विधि के समक्ष समता का विचार और विधि के शासन के सिद्धांत का मूल तत्व है।

 

परिचय

 

"विधि का शासन" (Rule of Law) एक ऐसा सिद्धांत है, जो यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है। यह लोकतंत्र और न्यायिक व्यवस्था की नींव है। इस सिद्धांत की सबसे प्रभावशाली व्याख्या ब्रिटिश न्यायविद ए. वी. डायसी (A. V. Dicey) ने की थी। उन्होंने "विधि के शासन" को तीन प्रमुख सिद्धांतों के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण था "विधि के समक्ष समता" (Equality before Law)

भारतीय संविधान ने भी इस सिद्धांत को अपनाया और इसे अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के तहत शामिल किया। न्यायपालिका ने भी कई ऐतिहासिक फैसलों में इसे भारतीय विधि व्यवस्था की आत्मा बताया है।

 

ए. वी. डायसी का विधि के शासन का सिद्धांत


ए. वी. डायसी ने "विधि के शासन" के तीन प्रमुख तत्व बताए, जो किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए आवश्यक माने जाते हैं:

1. विधि की सर्वोच्चता (Supremacy of Law)


इसका अर्थ यह है कि राज्य में कानून ही सर्वोच्च होता है और कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है।

2. विधि के समक्ष समता (Equality Before Law)


सभी व्यक्तियों को समान रूप से कानून के अधीन होना चाहिए। इसका मतलब यह है कि किसी को भी विशेष अधिकार या छूट नहीं मिलनी चाहिए।

3. न्यायिक निर्णयों की प्रधानता (Predominance of Legal Spirit)


न्यायिक प्रणाली का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकार के सभी कार्य विधि के अनुसार हों और किसी भी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन न हो।

 

 

विधि के समक्ष समता: विधि के शासन का मूल तत्व

 

ए. वी. डायसी के अनुसार, विधि का शासन तभी प्रभावी हो सकता है जब कानून सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू हो, चाहे वे आम नागरिक हों या कोई सरकारी अधिकारी।

 

विधि के समक्ष समता का महत्व:


यह सरकार को मनमानी करने से रोकता है।
यह सभी नागरिकों को समान अधिकारों और अवसरों की गारंटी देता है।
यह लोकतंत्र को मजबूत करता है और एक निष्पक्ष समाज की स्थापना करता है।
यह सरकार और प्रशासन को नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनाता है।

 

भारतीय संविधान और विधि के समक्ष समता

 

भारतीय संविधान में विधि के शासन और विधि के समक्ष समता की अवधारणा को अनुच्छेद 14 के तहत शामिल किया गया है।

 

संविधान में विधि के शासन से संबंधित अनुच्छेद:

 

अनुच्छेद 14: "विधि के समक्ष समानता"सभी नागरिक कानून की नजर में समान हैं और उन्हें समान कानूनी सुरक्षा मिलेगी।
अनुच्छेद 15: "भेदभाव का निषेध"धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 21: "जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार"कानून के बिना किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता को छीना नहीं जा सकता।

 

भारतीय न्यायपालिका और विधि के समक्ष समता
 

भारतीय न्यायपालिका ने विधि के समक्ष समता की अवधारणा को मजबूती प्रदान करते हुए कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
 

🔹 केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)


सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान की "मूल संरचना" को बदला नहीं जा सकता और विधि के समक्ष समता इसका अभिन्न हिस्सा है।

 

🔹 ई.पी. रॉयप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य (1974)


न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 14 का दायरा केवल भेदभाव को समाप्त करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मनमानी और अनुचित व्यवहार को भी रोकता है।

 

🔹 मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)


इस फैसले में न्यायालय ने कहा कि विधि के शासन का सिद्धांत सरकार को मनमानी करने से रोकता है।

 

🔹 शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017)


सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया, क्योंकि यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता था।

 

विधि के समक्ष समता के लाभ

 

लोकतंत्र की रक्षा:


विधि के समक्ष समता सरकार को मनमानी करने से रोकती है और लोकतंत्र को मजबूत करती है।

 

मौलिक अधिकारों की सुरक्षा:


यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक नागरिक को अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का अवसर मिले।

 

न्यायिक स्वतंत्रता:


न्यायपालिका को सरकार के प्रभाव से मुक्त रखता है, जिससे निष्पक्ष न्याय संभव हो पाता है।

 

भ्रष्टाचार पर रोक:


जब कानून सबके लिए समान होता है, तो इससे सरकार और प्रशासन में पारदर्शिता बनी रहती है।

 

विधि के समक्ष समता से संबंधित कुछ चुनौतियाँ

 

न्याय में देरी:


भारत में मामलों का लंबा लंबित रहना विधि के शासन की प्रभावशीलता को कम कर सकता है।

 

प्रशासनिक पक्षपात:


कई बार सरकारी अधिकारियों को कानून से छूट मिल जाती है, जिससे विधि के समक्ष समता का उल्लंघन होता है।

 

सामाजिक असमानता:


जाति, लिंग और आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव विधि के समक्ष समता के सिद्धांत को कमजोर करता है।

 

पुलिस और कानूनी एजेंसियों का दुरुपयोग:


कई बार सरकारें पुलिस और जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर कानून को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश करती हैं।

 

निष्कर्ष

 

"विधि के समक्ष समता" केवल एक कानूनी सिद्धांत नहीं, बल्कि लोकतंत्र का आधार है। यह सुनिश्चित करता है कि हर नागरिक को कानून के समक्ष समान अवसर मिले और कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर न हो।

भारतीय संविधान में इसे अनुच्छेद 14, 15, 21 और 32 के माध्यम से मजबूत किया गया है और भारतीय न्यायपालिका ने कई ऐतिहासिक फैसलों के द्वारा इसे और अधिक प्रभावी बनाया है।

हालांकि, न्याय में देरी, प्रशासनिक पक्षपात और सामाजिक असमानता जैसी समस्याएँ विधि के समक्ष समता को कमजोर करती हैं, लेकिन एक जागरूक समाज और स्वतंत्र न्यायपालिका इसे मजबूत बना सकते हैं।

 

सामान्य प्रश्न (FAQs)

 

प्रश्न 1: ए. वी. डायसी के अनुसार विधि के शासन के मुख्य तत्व क्या हैं?

  • उत्तर: ए. वी. डायसी ने विधि के शासन को तीन मुख्य तत्वों में बांटा है:

1.   विधि की सर्वोच्चता: कानून ही सर्वोच्च है, और कोई भी व्यक्ति इससे ऊपर नहीं हो सकता।

2.   विधि के समक्ष समता: सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समान माना जाता है।

3.   न्यायिक निर्णयों की प्रधानता: न्यायपालिका के फैसले कानून की आत्मा हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि सरकार के कार्य विधि के अनुसार हों।


प्रश्न 2: विधि के समक्ष समता का महत्व क्या है?

  • उत्तर:
    • यह सरकार को मनमानी करने से रोकता है।
    • यह सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर प्रदान करता है।
    • यह लोकतंत्र को मजबूत करता है और एक निष्पक्ष समाज की स्थापना करता है।
    • यह सरकार और प्रशासन को जवाबदेह बनाता है।


प्रश्न 3: भारतीय संविधान में विधि के समक्ष समता का उल्लेख कहाँ है?

  • उत्तर:
    • अनुच्छेद 14: यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिक कानून की नजर में समान हैं।
    • अनुच्छेद 15: यह किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
    • अनुच्छेद 21: यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, जिसमें कानून के अनुसार कार्य करना शामिल है।


प्रश्न 4: भारतीय न्यायपालिका ने विधि के समक्ष समता को कैसे मजबूत किया है?

  • उत्तर:
    • Kesavananda Bharati vs State of Kerala (1973): इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की मूल संरचना की रक्षा की, जिसमें विधि के समक्ष समता भी शामिल है।
    • Maneka Gandhi vs Union of India (1978): इस फैसले में न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 14 का दायरा केवल कानूनी समानता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मनमानी और अनुचित व्यवहार को भी रोकता है।
    • Shayara Bano vs Union of India (2017): इस फैसले में तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया गया, क्योंकि यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता था।


प्रश्न 5: विधि के समक्ष समता के लाभ क्या हैं?

  • उत्तर:
    • लोकतंत्र की रक्षा: यह सरकार को मनमानी करने से रोकता है।
    • मौलिक अधिकारों की सुरक्षा: यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक नागरिक को अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का अवसर मिले।
    • न्यायिक स्वतंत्रता: यह न्यायपालिका को सरकार के प्रभाव से मुक्त रखता है।
    • भ्रष्टाचार पर रोक: यह सरकार और प्रशासन में पारदर्शिता बनाए रखता है।


प्रश्न 6: विधि के समक्ष समता के चुनौतियाँ क्या हैं?

  • उत्तर:
    • न्याय में देरी: मामलों का लंबा लंबित रहना विधि के शासन की प्रभावशीलता को कम करता है।
    • प्रशासनिक पक्षपात: कई बार सरकारी अधिकारियों को कानून से छूट मिल जाती है।
    • सामाजिक असमानता: जाति, लिंग और आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव विधि के समक्ष समता को कमजोर करता है।
    • पुलिस और कानूनी एजेंसियों का दुरुपयोग: सरकारें कभी-कभी पुलिस और जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करती हैं।

 

विशेष तथ्य

विधि के समक्ष समता केवल एक कानूनी सिद्धांत नहीं, बल्कि लोकतंत्र का आधार है। यह सुनिश्चित करता है कि हर नागरिक को कानून के समक्ष समान अवसर मिले। भारतीय संविधान और न्यायपालिका ने इस सिद्धांत को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, न्याय में देरी, प्रशासनिक पक्षपात और सामाजिक असमानता जैसी समस्याएँ अभी भी बाकी हैं। एक जागरूक समाज और स्वतंत्र न्यायपालिका के साथ, हम इस सिद्धांत को और अधिक प्रभावी बना सकते हैं।

 

"समानता केवल कानून का विषय नहीं, बल्कि एक न्यायपूर्ण समाज की नींव है।"

 

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