समवर्ती सूची (सूची III) – केंद्र और राज्य सरकारों की साझा विधायी शक्तियाँ।
परिचय
भारतीय संविधान में
केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन सातवीं अनुसूची में किया गया
है। इसमें तीन सूची शामिल हैं –
1. संघ सूची (Union List - सूची I): केवल केंद्र सरकार कानून बना सकती है।
2. राज्य सूची (State List - सूची II):
केवल राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं।
3. समवर्ती सूची (Concurrent List - सूची III): इस पर केंद्र और राज्य दोनों
सरकारें कानून बना सकती हैं।
👉 समवर्ती सूची भारत
की संघीय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि
यह उन विषयों से संबंधित है जिन पर केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का
अधिकार प्राप्त है।
समवर्ती सूची का संवैधानिक आधार
✅ अनुच्छेद 246(2):
यह स्पष्ट करता है कि समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर केंद्र
और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
✅ अनुच्छेद
254: यदि किसी विषय पर राज्य और केंद्र सरकारों
द्वारा बनाए गए कानूनों में टकराव होता है, तो केंद्र
सरकार का कानून प्रभावी माना जाएगा।
✅ संविधान
के मूल रूप से 47 विषय समवर्ती सूची में थे, जिन्हें बाद में बढ़ाकर 52 कर दिया गया।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 Hoechst
Pharmaceuticals Ltd. v. State of Bihar (1983): सुप्रीम कोर्ट
ने कहा कि यदि समवर्ती सूची के किसी विषय पर राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने
कानून बनाया है, तो केंद्र का कानून प्रभावी होगा,
जब तक कि राष्ट्रपति द्वारा राज्य कानून को मंजूरी न दी जाए।
समवर्ती सूची के
प्रमुख विषय (52 विषय)
समवर्ती सूची के
अंतर्गत वे विषय आते हैं जिन पर राज्यों को नीति निर्माण का अधिकार दिया गया है,
लेकिन यदि केंद्र सरकार को आवश्यक लगे, तो वह
भी इन विषयों पर कानून बना सकती है। कुछ
प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं –
1. आपराधिक कानून और दंड प्रक्रिया (Criminal Law & Procedure)
✅ आपराधिक कानूनों के संबंध
में केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
✅ भारतीय
दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), और साक्ष्य अधिनियम केंद्र द्वारा बनाए गए हैं, लेकिन
राज्यों को भी इनके क्रियान्वयन में भूमिका मिलती है।
✅ पुलिस,
न्यायिक प्रक्रिया, और सुधार गृहों के संचालन
में राज्य सरकारें हस्तक्षेप कर सकती हैं।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 Kartar Singh
v. State of Punjab (1994): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आतंकवाद
से जुड़े कानून बनाना केंद्र सरकार का विशेषाधिकार है, लेकिन अपराधों की रोकथाम के लिए राज्य भी अपने स्तर पर कानून बना सकते
हैं।
2. शिक्षा और विश्वविद्यालय (Education & Universities)
✅ 42वें संविधान संशोधन (1976)
के तहत, शिक्षा को राज्य सूची से हटाकर
समवर्ती सूची में रखा गया।
✅ केंद्र
सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति बना सकती है, जबकि राज्य
सरकारें अपने राज्य में शिक्षा प्रणाली का प्रबंधन कर सकती हैं।
✅ उच्च
शिक्षा और तकनीकी शिक्षा से जुड़े संस्थानों को केंद्र और राज्य दोनों नियंत्रित
कर सकते हैं।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 T.M.A Pai
Foundation v. State of Karnataka (2002): सुप्रीम कोर्ट ने कहा
कि राज्यों को शिक्षा के क्षेत्र में नीतियाँ बनाने का अधिकार है,
लेकिन केंद्र सरकार भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू कर सकती है।
3. श्रम कानून और कर्मचारी कल्याण (Labour Laws & Welfare)
✅ श्रम कानून केंद्र और
राज्यों दोनों द्वारा बनाए जा सकते हैं।
✅ राज्य
सरकारें न्यूनतम वेतन अधिनियम, श्रमिकों के अधिकार, और औद्योगिक विवाद अधिनियम पर कानून बना सकती हैं।
✅ केंद्र
सरकार श्रमिक कल्याण, यूनियन प्रबंधन, और सामाजिक सुरक्षा कानूनों पर कानून बना सकती है।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 State of Tamil
Nadu v. K. Shyam Sunder (2011): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य
सरकारों को श्रमिक कल्याण से जुड़े कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन ये राष्ट्रीय श्रम नीतियों से मेल खाने चाहिए।
4. विवाह, तलाक और परिवार कानून (Marriage, Divorce & Family Law)
✅ हिंदू विवाह अधिनियम और
मुस्लिम पर्सनल लॉ जैसे विषय समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं।
✅ केंद्र
सरकार समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) पर कानून बना सकती है, लेकिन राज्य सरकारें भी अपने
व्यक्तिगत कानूनों को लागू कर सकती हैं।
✅ विवाह,
तलाक, दत्तक ग्रहण, और
उत्तराधिकार से जुड़े कानूनों पर केंद्र और राज्य दोनों का अधिकार है।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 Shah Bano Case
(1985): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44
के तहत समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए, जिससे विवाह और तलाक कानूनों में समानता आए।
5. वन और पर्यावरण संरक्षण (Forests & Environment Protection)
✅ 42वें संविधान संशोधन (1976)
के तहत, वन और पर्यावरण संरक्षण को राज्य
सूची से हटाकर समवर्ती सूची में शामिल किया गया।
✅ केंद्र
सरकार पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986) जैसे
राष्ट्रीय कानून बना सकती है, जबकि राज्य अपने स्तर पर वन
संरक्षण कानून लागू कर सकते हैं।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 M.C. Mehta v.
Union of India (1987): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण
संरक्षण राष्ट्रीय महत्व का विषय है, इसलिए केंद्र
सरकार इस पर कानून बना सकती है, लेकिन राज्य सरकारें भी
इसमें योगदान दे सकती हैं।
समवर्ती सूची पर कानून बनाने में टकराव का समाधान
✅ अनुच्छेद 254(1):
यदि राज्य और केंद्र द्वारा बनाए गए कानूनों में टकराव होता है,
तो केंद्र सरकार का कानून प्रभावी होगा।
✅ अनुच्छेद
254(2): यदि राज्य सरकार केंद्र सरकार की अनुमति से कोई
विशेष कानून बनाती है, तो वह कानून उस राज्य के लिए लागू
होगा, भले ही वह केंद्र सरकार के कानून से अलग क्यों न हो।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 M. Karunanidhi
v. Union of India (1979): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि
राज्य और केंद्र दोनों किसी विषय पर कानून बनाते हैं, तो केंद्र का कानून प्राथमिकता प्राप्त करेगा, जब तक
कि राज्य कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी न मिल जाए।
विशेष तथ्य
✅ समवर्ती सूची भारतीय
संविधान में लचीलापन प्रदान करती है और केंद्र तथा राज्यों को साझा कानून बनाने की
अनुमति देती है।
✅ केंद्र
सरकार को समवर्ती सूची के विषयों पर राष्ट्रीय नीति बनाने की शक्ति प्राप्त होती
है, जबकि राज्यों को अपने स्थानीय जरूरतों के अनुसार कानून
बनाने की छूट होती है।
✅ संविधान
के अनुच्छेद 254 के तहत टकराव की स्थिति में केंद्र के कानून
को प्राथमिकता दी जाती है।
✅ समवर्ती
सूची का उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय स्थापित करना है, जिससे नीतियों में एकरूपता बनी रहे और लोकतांत्रिक संघीय ढाँचे को मजबूत
किया जा सके।
📌 "समवर्ती सूची
भारतीय संघवाद और सहकारी शासन प्रणाली की पहचान है, जो
केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखती है।" 🚩
समवर्ती सूची (सूची
III)
की संवैधानिक महत्ता
संविधान का संतुलनकारी तत्व
समवर्ती सूची भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच सहकारी
संघवाद (Cooperative Federalism) का सबसे अच्छा
उदाहरण है। यह उन विषयों से संबंधित है जिन पर दोनों सरकारें कानून बना सकती
हैं, जिससे राष्ट्रीय एकता बनी रहे और राज्यों की
स्वायत्तता भी सुनिश्चित हो।
✅ अनुच्छेद 246(2)
केंद्र और राज्य दोनों को समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर कानून
बनाने की शक्ति देता है।
✅ अनुच्छेद
254 यह सुनिश्चित करता है कि यदि केंद्र और राज्य के
कानूनों में टकराव होता है, तो केंद्र का कानून प्रभावी
रहेगा।
✅ संविधान
में 42वें संशोधन (1976) के बाद शिक्षा,
वन, पर्यावरण, और श्रम
कानूनों को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में जोड़ा गया।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 Hoechst
Pharmaceuticals Ltd. v. State of Bihar (1983): सुप्रीम कोर्ट
ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार के बनाए गए कानूनों को समवर्ती सूची के विषयों
पर प्राथमिकता दी जाएगी, जब तक कि राज्य का कानून
राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित न हो।
केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन
समवर्ती
सूची संघीय और एकात्मक शासन प्रणाली के बीच संतुलन बनाए रखने का कार्य करती है।
यह सुनिश्चित करती है कि राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर केंद्र और राज्य मिलकर
कार्य करें, जिससे नीति निर्माण में अधिक
प्रभावशीलता आए।
✅ राज्य सरकारें स्थानीय
आवश्यकताओं के अनुसार कानून बना सकती हैं।
✅ केंद्र
सरकार यदि आवश्यक समझे, तो राष्ट्रीय नीति के तहत समवर्ती
सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
✅ संविधान
ने टकराव की स्थिति में न्यायिक समाधान का मार्ग भी प्रदान किया है।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 S.R. Bommai v.
Union of India (1994): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के
संघीय ढाँचे को बनाए रखने के लिए समवर्ती सूची महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और
केंद्र को राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।
भविष्य की चुनौतियाँ और सुधार की आवश्यकता
✅ कई बार केंद्र
सरकार अपने कानूनों को राज्यों पर थोपने की कोशिश करती है, जिससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित होती है।
✅ समवर्ती
सूची में राज्यों को अधिक स्वतंत्रता देने के लिए कानूनी सुधार की आवश्यकता है।
✅ राज्यों
के कानूनों को प्रभावी बनाने के लिए, केंद्र को उनकी जरूरतों
के अनुरूप नीतियाँ बनानी चाहिए।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 State of West
Bengal v. Union of India (1963): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान
में संघीय ढाँचे का सम्मान किया जाना चाहिए और केंद्र सरकार को राज्यों के
अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।
निष्कर्ष
✅ समवर्ती सूची भारतीय संविधान
के संघीय ढाँचे और सहकारी शासन प्रणाली का प्रतिबिंब है।
✅ यह राज्यों
को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार कानून बनाने की स्वतंत्रता देती है, लेकिन केंद्र सरकार को भी नीति निर्धारण में अधिकार प्रदान करती है।
✅ संविधान
का अनुच्छेद 254 यह सुनिश्चित करता है कि यदि किसी विषय पर
केंद्र और राज्य के कानूनों में टकराव हो, तो केंद्र सरकार
का कानून प्रभावी होगा।
✅ न्यायपालिका
के मार्गदर्शन में समवर्ती सूची का प्रभावी क्रियान्वयन किया जाना चाहिए, ताकि राज्यों और केंद्र के बीच शक्ति संतुलन बना रहे।
📌 "समवर्ती सूची
भारत के लोकतंत्र और संघीय प्रणाली की आत्मा है। यह राज्यों और केंद्र सरकार के
बीच संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।" 🚩
अक्सर पूछे जाने
वाले प्रश्न (FAQs)
1. समवर्ती
सूची (Concurrent List) क्या है और इसका संवैधानिक आधार क्या
है?
✅ समवर्ती सूची भारतीय संविधान
की सातवीं अनुसूची में उल्लिखित तीन सूचियों में से एक है, जिसमें
वे विषय शामिल हैं जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
✅ अनुच्छेद
246(2) के तहत, केंद्र और राज्य
दोनों को समवर्ती सूची के विषयों पर विधायी अधिकार प्राप्त होता है।
✅ अनुच्छेद
254 यह स्पष्ट करता है कि यदि राज्य और केंद्र के
कानूनों में कोई टकराव होता है, तो केंद्र सरकार का कानून
प्रभावी माना जाएगा, जब तक कि राज्य कानून को राष्ट्रपति की
मंजूरी न मिली हो।
📌 महत्वपूर्ण
न्यायिक निर्णय:
🔹 Hoechst
Pharmaceuticals Ltd. v. State of Bihar (1983): सुप्रीम कोर्ट
ने कहा कि केंद्र के कानून को प्राथमिकता दी जाएगी, जब
तक कि राज्य का कानून राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत न हो।
2. समवर्ती
सूची में कुल कितने विषय हैं?
✅ मूल संविधान में 47
विषय समवर्ती सूची में शामिल थे, लेकिन 42वें संविधान संशोधन (1976) के बाद इसमें 5
और विषय जोड़े गए, जिससे कुल विषयों की
संख्या 52 हो गई।
✅ इनमें
प्रमुख विषय शिक्षा, वन, आपराधिक
कानून, विवाह और तलाक, श्रम कानून,
सामाजिक सुरक्षा, व्यापार, अनुबंध, जनसंख्या नियंत्रण, और
पर्यावरण संरक्षण शामिल हैं।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 State of
Karnataka v. Union of India (1977): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समवर्ती
सूची का उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच सहकारी संघवाद (Cooperative
Federalism) को बढ़ावा देना है।
3. यदि
राज्य और केंद्र दोनों एक ही विषय पर कानून बना दें, तो कौन
सा कानून मान्य होगा?
✅ अनुच्छेद 254(1)
के अनुसार, यदि किसी विषय पर राज्य और केंद्र
सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों में विरोधाभास होता है, तो केंद्र
सरकार का कानून प्रभावी माना जाएगा।
✅ हालांकि,
अनुच्छेद 254(2) के तहत, यदि राज्य सरकार किसी विशेष कानून को लागू करना चाहती है और उसे
राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाती है, तो वह कानून केवल उस
राज्य के लिए प्रभावी रहेगा, भले ही वह केंद्र के कानून से
अलग क्यों न हो।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 M. Karunanidhi
v. Union of India (1979): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि
राज्य सरकार का कानून केंद्र सरकार के कानून से मेल नहीं खाता, तो राज्य का कानून राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना अमान्य होगा।
4. समवर्ती
सूची में शिक्षा को क्यों जोड़ा गया?
✅ शिक्षा मूल रूप से राज्य
सूची का विषय था, लेकिन 42वें
संविधान संशोधन (1976) द्वारा इसे समवर्ती सूची में
स्थानांतरित कर दिया गया।
✅ इस संशोधन
का उद्देश्य यह था कि पूरे देश में शिक्षा प्रणाली में एकरूपता बनी रहे और
राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके।
✅ केंद्र
सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) जैसी
योजनाएँ लागू कर सकती है, जबकि राज्य सरकारें अपनी आवश्यकता
के अनुसार शिक्षा व्यवस्था को संचालित कर सकती हैं।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 T.M.A. Pai
Foundation v. State of Karnataka (2002): सुप्रीम कोर्ट ने कहा
कि राज्यों को शिक्षा संबंधी नीतियाँ बनाने का अधिकार है, लेकिन केंद्र सरकार भी शिक्षा के मानकों को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय
नीति बना सकती है।
5. समवर्ती
सूची में पर्यावरण और वन संरक्षण को क्यों शामिल किया गया?
✅ वन और पर्यावरण संरक्षण
पहले राज्य सूची में था, लेकिन 42वें संविधान संशोधन (1976) के बाद इसे समवर्ती
सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
✅ इसका
उद्देश्य यह था कि पर्यावरणीय समस्याएँ केवल राज्यों तक सीमित नहीं होतीं,
बल्कि उनका प्रभाव राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी होता है।
✅ केंद्र
सरकार पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और अन्य
राष्ट्रीय नीतियाँ बना सकती है, जबकि राज्य सरकारें अपने
स्तर पर पर्यावरण सुरक्षा के उपाय लागू कर सकती हैं।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 M.C. Mehta v.
Union of India (1987): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण
संरक्षण केवल राज्यों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि
केंद्र सरकार को भी इसमें सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
6. क्या
केंद्र सरकार समवर्ती सूची के विषयों पर राज्यों की सहमति के बिना कानून बना सकती
है?
✅ हाँ, केंद्र सरकार समवर्ती सूची के किसी भी विषय पर सीधे कानून बना सकती है,
लेकिन यदि राज्य सरकार पहले से किसी विषय पर कानून बना चुकी है और
वह केंद्र के कानून से टकराता है, तो अनुच्छेद 254(1)
के अनुसार केंद्र का कानून ही प्रभावी होगा।
✅ हालाँकि,
यदि कोई राज्य केंद्र से अलग कानून बनाना चाहता है, तो उसे राष्ट्रपति की मंजूरी (अनुच्छेद 254(2)) लेनी होगी।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 State of West
Bengal v. Union of India (1963): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान
केंद्र को कुछ विशेष अधिकार देता है, जिससे वह
राष्ट्रीय महत्व के मामलों में कानून बना सके।
7. समवर्ती
सूची के महत्व को न्यायपालिका ने कैसे व्याख्यायित किया है?
✅ भारतीय न्यायपालिका ने कई
मामलों में स्पष्ट किया है कि समवर्ती सूची भारत में संघीय ढाँचे और सहकारी
शासन (Cooperative Governance) का प्रतीक है।
✅ सुप्रीम
कोर्ट ने माना है कि समवर्ती सूची केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संतुलन बनाए
रखने का एक प्रभावी साधन है।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 S.R. Bommai v.
Union of India (1994): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के
संघीय ढाँचे को बनाए रखने के लिए समवर्ती सूची महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और
केंद्र को राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।
8. क्या
समवर्ती सूची में संशोधन किया जा सकता है?
✅ हाँ, भारतीय संसद संविधान संशोधन के माध्यम से समवर्ती सूची में विषयों को जोड़
या हटा सकती है।
✅ 42वें
संविधान संशोधन (1976) के जरिए शिक्षा,
वन, पर्यावरण, और श्रम
कानूनों को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में शामिल किया गया था।
✅ संसद संविधान
के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन करके नए विषयों को समवर्ती सूची में जोड़ सकती है।
📌 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🔹 Kesavananda
Bharati v. State of Kerala (1973): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद
संविधान संशोधन कर सकती है, लेकिन वह संविधान के
"मूल संरचना सिद्धांत" (Basic Structure Doctrine) को नहीं बदल सकती।
समवर्ती सूची का महत्व
✅ समवर्ती सूची भारतीय
संविधान का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो सहकारी संघवाद (Cooperative
Federalism) को बढ़ावा देती है।
✅ यह राज्यों
को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार कानून बनाने की स्वतंत्रता देती है, लेकिन केंद्र सरकार को भी नीति निर्धारण में अधिकार प्रदान करती है।
✅ संविधान का
अनुच्छेद 254 यह सुनिश्चित करता है कि यदि किसी
विषय पर केंद्र और राज्य के कानूनों में टकराव हो, तो केंद्र
सरकार का कानून प्रभावी होगा।
✅ न्यायपालिका
के मार्गदर्शन में समवर्ती सूची का प्रभावी क्रियान्वयन किया जाना चाहिए,
ताकि राज्यों और केंद्र के बीच शक्ति संतुलन बना रहे।
📌 "समवर्ती सूची
भारत के लोकतंत्र और संघीय प्रणाली की आत्मा है। यह राज्यों और केंद्र सरकार के
बीच संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।"