राज्य सूची (सूची II) – भारतीय संविधान के तहत राज्यों की विधायी शक्तियाँ। State List (List II) – Legislative powers of the states under the Indian Constitution

 

State List (List II) – Legislative powers of the states under the Indian Constitution

राज्य सूची (सूची II) – भारतीय संविधान के तहत राज्यों की विधायी शक्तियाँ

 

परिचय

भारतीय संविधान ने देश में संघीय शासन प्रणाली को अपनाया है, जहाँ केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है। यह विभाजन संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है –
1.संघ सूची (Union List - सूची I)इस पर केवल केंद्र सरकार कानून बना सकती है।
2.राज्य सूची (State List - सूची II)इस पर केवल राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं।
3.समवर्ती सूची (Concurrent List - सूची III)इस पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।

इस लेख में हम राज्य सूची (State List - सूची II) पर विस्तार से चर्चा करेंगे और इससे जुड़े संवैधानिक अनुच्छेद, न्यायिक निर्णय, तथा राज्य सरकारों की शक्तियों को समझेंगे।

 

राज्य सूची का संवैधानिक आधार

 

अनुच्छेद 246(3)राज्य विधानमंडल को राज्य सूची में उल्लिखित विषयों पर विधायी अधिकार प्रदान करता है।
राज्य सूची के विषय स्थानीय प्रशासन, कृषि, पुलिस, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था, और भूमि प्रबंधन से जुड़े होते हैं।
इन विषयों पर केवल राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं, जब तक कि कोई विशेष परिस्थिति उत्पन्न न हो।
अनुच्छेद 162राज्य सरकारों की कार्यकारी शक्तियों को परिभाषित करता है, जो राज्य सूची के विषयों पर केंद्रित होती हैं।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:


🔹 State of Bombay v. F.N. Balsara (1951): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सूची के विषयों पर राज्य विधानमंडल का सर्वोच्च अधिकार है और केंद्र सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

 

राज्य सूची के प्रमुख विषय (66 विषय)

 

भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची में 66 विषय सूचीबद्ध हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण विषय निम्नलिखित हैं –

 

1. कानून व्यवस्था और पुलिस (Law & Order & Police)

 

राज्य सरकारें कानून व्यवस्था बनाए रखने और अपराधों को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार हैं।
पुलिस बलों की नियुक्ति, प्रशिक्षण और प्रशासन राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
राज्य सरकारें जेलों, सुधारगृहों और अपराध निवारण योजनाओं पर कानून बना सकती हैं।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:


🔹 Prakash Singh v. Union of India (2006): सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया और राज्यों को स्वतंत्र पुलिस आयोग गठित करने के निर्देश दिए।

 

2. कृषि और भूमि सुधार (Agriculture & Land Reforms)

 

कृषि उत्पादन, सिंचाई, भूमि उपयोग और फसल बीमा से जुड़े कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को प्राप्त है।
राज्य सरकारें कृषक कल्याण योजनाएँ, सिंचाई परियोजनाएँ और जैविक कृषि को बढ़ावा देने वाले कानून बना सकती हैं।
भूमि सुधार और भू-अधिग्रहण से संबंधित कानून राज्यों द्वारा बनाए जाते हैं।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:


🔹
Keshavananda Bharati v. State of Kerala (1973): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों को कृषि और भूमि सुधार से जुड़े कानून बनाने का पूरा अधिकार है।

 

3. स्थानीय प्रशासन और नगर निगम (Local Administration & Municipalities)

 

नगरपालिका, ग्राम पंचायत, जिला परिषद, और अन्य स्थानीय निकायों का संचालन राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आता है।
राज्य सरकारें नगर विकास, स्वच्छता, सीवेज सिस्टम, और जल आपूर्ति योजनाएँ लागू करती हैं।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:


🔹
A.B. Krishna v. State of Karnataka (1998): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थानीय निकायों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।

 

4. स्वास्थ्य और जनसंख्या नियंत्रण (Health & Public Health)

 

राज्य सरकारें सरकारी अस्पतालों, दवा नियमन, और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित कानून बना सकती हैं।
पानी की गुणवत्ता, स्वच्छता अभियान, और रोग नियंत्रण का कार्य राज्य सरकारों के अंतर्गत आता है।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:


🔹
Paschim Banga Khet Mazdoor Samity v. State of West Bengal (1996): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाएँ देना राज्य सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है।

 

5. सार्वजनिक आदेश और सार्वजनिक त्यौहार (Public Order & Public Celebrations)

 

धार्मिक स्थलों की सुरक्षा, सार्वजनिक स्थलों का प्रबंधन और सामाजिक शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है।
राज्य सरकारें धार्मिक स्थलों से जुड़े कानून, सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन और सांप्रदायिक हिंसा नियंत्रण कानून बना सकती हैं।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:


🔹
Hussainara Khatoon v. State of Bihar (1979): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों को सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रभावी उपाय अपनाने चाहिए।

 

राज्य सूची पर केंद्र सरकार का हस्तक्षेप

 

कुछ विशेष परिस्थितियों में संसद को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की अनुमति दी गई है:

🔹 राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352): यदि राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जाता है, तो केंद्र सरकार को राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
🔹 राज्यसभा का विशेष प्रस्ताव (अनुच्छेद 249): यदि राज्यसभा विशेष परिस्थितियों में किसी राज्य सूची के विषय को राष्ट्रीय हित में मानकर संसद को कानून बनाने की अनुमति दे, तो केंद्र सरकार उस पर कानून बना सकती है।
🔹 राज्यों की सहमति (अनुच्छेद 252): यदि दो या अधिक राज्य केंद्र से अनुरोध करें कि वह उनके लिए कोई विशेष कानून बनाए, तो संसद उन राज्यों के लिए कानून बना सकती है।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:


🔹
S.R. Bommai v. Union of India (1994): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संघीय ढाँचे को बनाए रखने के लिए केंद्र को कुछ परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बनाने की शक्ति दी जा सकती है।

 

विशेष तथ्य

 

राज्य सूची भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, जो राज्यों को स्वायत्तता प्रदान करती है।
यह राज्यों को स्थानीय शासन, कृषि, पुलिस, स्वास्थ्य और भूमि सुधार जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर कानून बनाने की शक्ति देती है।
हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में केंद्र सरकार को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार मिल सकता है।
संविधान राज्य और केंद्र के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए विभिन्न संवैधानिक अनुच्छेदों के माध्यम से राज्य सूची को सुरक्षित करता है।

📌 "राज्य सूची संघीय व्यवस्था की आत्मा है। यह भारत के राज्यों को अपने नागरिकों की भलाई के लिए स्वतंत्र रूप से कानून बनाने की शक्ति प्रदान करती है।"

 

राज्य सूची (सूची II) की संवैधानिक महत्ता
 

संघीय ढाँचे की रीढ़

 

राज्य सूची भारतीय संघीय प्रणाली की आत्मा है, जो राज्यों को स्वायत्तता और स्वतंत्रता प्रदान करती है। यह सुनिश्चित करती है कि स्थानीय प्रशासन, कृषि, कानून-व्यवस्था, स्वास्थ्य और भूमि सुधार जैसे विषयों पर राज्य सरकारों को नीतियाँ बनाने और उन्हें लागू करने का संपूर्ण अधिकार मिले

अनुच्छेद 246(3) के तहत राज्य विधानमंडल को राज्य सूची के विषयों पर पूर्ण विधायी अधिकार प्राप्त हैं।
अनुच्छेद 162 राज्य सरकारों की कार्यकारी शक्तियों को परिभाषित करता है।
राज्य सूची में 66 विषय शामिल हैं, जो राज्य सरकारों के शासन और प्रशासन को मजबूत बनाते हैं।

 

केंद्र सरकार का सीमित हस्तक्षेप

 

हालाँकि, भारतीय संविधान ने कुछ विशेष परिस्थितियों में केंद्र सरकार को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति दी है
🔹 राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352): जब देश पर युद्ध, बाहरी आक्रमण, या सशस्त्र विद्रोह का खतरा हो।
🔹 राज्यसभा का विशेष प्रस्ताव (अनुच्छेद 249): यदि राष्ट्रीय हित में आवश्यक हो, तो केंद्र सरकार को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की अनुमति मिल सकती है।
🔹 राज्यों की सहमति (अनुच्छेद 252): यदि दो या अधिक राज्य केंद्र से अनुरोध करें, तो केंद्र उन राज्यों के लिए कानून बना सकता है।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:


🔹
S.R. Bommai v. Union of India (1994): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संघीय ढाँचे को बनाए रखने के लिए केंद्र को कुछ परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति दी जा सकती है, लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

 

राज्य सूची की चुनौतियाँ और सुधार की आवश्यकता

 

राज्य सरकारों की स्वतंत्रता के बावजूद, कई बार केंद्र सरकार हस्तक्षेप करती है, जिससे राज्यों की स्वायत्तता पर प्रश्न उठते हैं।
पुलिस और कानून-व्यवस्था जैसे विषय राज्य सूची में होने के बावजूद, कई बार केंद्र सरकार विशेष कानूनों (जैसे UAPA, NIA अधिनियम) के माध्यम से नियंत्रण रखती है।
राज्यों को वित्तीय स्वायत्तता बढ़ाने की आवश्यकता है, जिससे वे स्वतंत्र रूप से विकास योजनाएँ लागू कर सकें।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:


🔹
State of West Bengal v. Union of India (1963): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का संघीय ढाँचा राज्यों को विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान करता है और केंद्र सरकार इन शक्तियों को अपने अधिकार क्षेत्र में नहीं ले सकती।

 

निष्कर्ष

 

राज्य सूची संघीय व्यवस्था को मजबूत करती है और यह सुनिश्चित करती है कि राज्यों को स्थानीय प्रशासन और विकास कार्यों में स्वतंत्रता मिले।
हालाँकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में केंद्र को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की अनुमति दी गई है, लेकिन इसका दुरुपयोग रोकने के लिए न्यायपालिका को सतर्क रहना चाहिए।
राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता और प्रशासनिक अधिकार दिए जाने चाहिए, ताकि वे स्थानीय मुद्दों का बेहतर समाधान निकाल सकें।
संविधान का मूल सिद्धांत संघीयता और विकेंद्रीकरण है, जिसे बनाए रखना राज्य सूची का प्रमुख उद्देश्य है।

📌 "राज्य सूची संघीय प्रणाली का आधार है। यह भारत के राज्यों को अपने नागरिकों की भलाई के लिए स्वतंत्र रूप से कानून बनाने की शक्ति प्रदान करती है।"

 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – राज्य सूची (सूची II)
 

1. राज्य सूची (State List) क्या है?

भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है।
अनुच्छेद 246(3) के तहत, राज्य सूची में शामिल विषयों पर केवल राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं।
राज्य सूची में कुल 66 विषय हैं, जिनमें पुलिस, कृषि, स्वास्थ्य, स्थानीय प्रशासन और भूमि सुधार जैसे विषय शामिल हैं।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 State of Bombay v. F.N. Balsara (1951): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सूची के विषयों पर राज्य विधानमंडल का सर्वोच्च अधिकार है और केंद्र इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

 

2. राज्य सूची में कौन-कौन से प्रमुख विषय शामिल हैं?

राज्य सूची में वे विषय शामिल हैं जो स्थानीय प्रशासन और राज्यों की भलाई से जुड़े होते हैं। कुछ प्रमुख विषय इस प्रकार हैं –

🔹 पुलिस और कानून व्यवस्था (Law & Order & Police)
🔹 कृषि और भूमि सुधार (Agriculture & Land Reforms)
🔹 स्वास्थ्य सेवाएँ और अस्पताल (Health & Public Health)
🔹 स्थानीय प्रशासन और नगर निगम (Local Administration & Municipalities)
🔹 राज्य परिवहन (State Transport)
🔹 जमींदारी उन्मूलन और भूमि राजस्व (Land Revenue & Tenancy Rights)
🔹 जल आपूर्ति, सिंचाई और नहरें (Water Supply & Irrigation)

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 Keshavananda Bharati v. State of Kerala (1973): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों को कृषि और भूमि सुधार से जुड़े कानून बनाने का पूरा अधिकार है।

 

3. क्या केंद्र सरकार राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है?

सामान्य रूप से, राज्य सूची के विषयों पर केवल राज्य सरकार कानून बना सकती है।
हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में केंद्र सरकार को भी राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की अनुमति दी गई है:

🔹 राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352): जब देश पर युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह का खतरा हो।
🔹 राज्यसभा का विशेष प्रस्ताव (अनुच्छेद 249): यदि राष्ट्रीय हित में आवश्यक हो, तो संसद को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की अनुमति मिल सकती है।
🔹 राज्यों की सहमति (अनुच्छेद 252): यदि दो या अधिक राज्य केंद्र से अनुरोध करें, तो केंद्र उन राज्यों के लिए कानून बना सकता है।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 S.R. Bommai v. Union of India (1994): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संघीय ढाँचे को बनाए रखने के लिए केंद्र को कुछ परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति दी जा सकती है, लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

 

4. क्या राज्य सरकारें स्वतंत्र रूप से सभी विषयों पर कानून बना सकती हैं?

हाँ, राज्य सरकारें राज्य सूची में शामिल विषयों पर स्वतंत्र रूप से कानून बना सकती हैं।
लेकिन कुछ विषयों पर संविधान ने केंद्र सरकार को हस्तक्षेप का अधिकार दिया है, जैसे –
🔹 अंतरराज्यीय व्यापार और वाणिज्य (Inter-State Trade & Commerce)
🔹 राज्य की सीमाओं को प्रभावित करने वाले विषय
🔹 संविधान के अनुच्छेद 252 के तहत कुछ विशेष परिस्थितियाँ

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 State of West Bengal v. Union of India (1963): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का संघीय ढाँचा राज्यों को विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान करता है और केंद्र सरकार इन शक्तियों को अपने अधिकार क्षेत्र में नहीं ले सकती।

 

5. क्या राज्य सूची के विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं?

नहीं, राज्य सूची के विषयों पर सिर्फ राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं।
हालाँकि, समवर्ती सूची (Concurrent List) में ऐसे विषय आते हैं जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
यदि किसी विषय पर राज्य और केंद्र के कानूनों में टकराव होता है, तो केंद्रीय कानून ही प्रभावी होगा।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 Hoechst Pharmaceuticals Ltd. v. State of Bihar (1983): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समवर्ती सूची के विषयों पर यदि राज्य और केंद्र सरकार दोनों कानून बनाते हैं, तो केंद्र का कानून प्रभावी होगा।

 

6. क्या राज्य सरकारें कराधान (Taxation) से जुड़े कानून बना सकती हैं?

राज्य सरकारों को कुछ कर लगाने की अनुमति दी गई है, जैसे –
🔹 संपत्ति कर, वाहन कर, मनोरंजन कर।
🔹 भूमि और कृषि से जुड़े कर।
🔹 राज्य के भीतर माल और सेवाओं पर कर।

लेकिन कुछ कर केवल केंद्र सरकार ही लगा सकती है, जैसे –
🔹 आयकर, सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क।
🔹 GST (वस्तु एवं सेवा कर) केंद्र और राज्यों के बीच साझा किया जाता है।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 Gannon Dunkerley v. State of Rajasthan (1993): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यों को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लगाने का पूरा अधिकार है, लेकिन वे केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए करों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।

 

7. क्या राज्य सरकारों को पूरी तरह से स्वायत्तता प्राप्त है?

संविधान ने राज्य सरकारों को व्यापक शक्तियाँ दी हैं, लेकिन वे पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हैं।
कुछ विशेष परिस्थितियों में केंद्र सरकार का हस्तक्षेप संभव है, जैसे –
🔹 राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356): जब राज्य सरकार संवैधानिक रूप से कार्य करने में असमर्थ हो।
🔹 राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352): जब देश की सुरक्षा को खतरा हो।
🔹 संविधान के अनुच्छेद 249 और 252 के तहत संसद को विशेष शक्ति दी गई है।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का "मूल ढाँचा" सिद्धांत संघीय व्यवस्था की रक्षा करता है और केंद्र सरकार अनावश्यक रूप से राज्य सरकारों की शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

 

विशेष तथ्य

राज्य सूची भारतीय संविधान की संघीय व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो राज्यों को स्वायत्तता और स्वतंत्रता प्रदान करती है।
राज्यों को अपने स्थानीय प्रशासन, पुलिस, कृषि, भूमि सुधार और स्वास्थ्य जैसे विषयों पर कानून बनाने की स्वतंत्रता मिली हुई है।
हालाँकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में केंद्र सरकार को भी हस्तक्षेप का अधिकार है, लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
न्यायपालिका ने संविधान की संघीयता को बनाए रखने के लिए कई ऐतिहासिक फैसले दिए हैं।
राज्यों को अधिक वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता दी जानी चाहिए, जिससे वे स्थानीय मुद्दों का बेहतर समाधान निकाल सकें।

📌 "राज्य सूची संघीय व्यवस्था की आत्मा है। यह भारत के राज्यों को अपने नागरिकों की भलाई के लिए स्वतंत्र रूप से कानून बनाने की शक्ति प्रदान करती है।" 

 

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