वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: एक संवैधानिक और कानूनी विश्लेषण।
🟩 भारत
एक लोकतांत्रिक देश है, और वाक् एवं अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression) इस
लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a)
के तहत प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार प्राप्त है, जिससे वह अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकता है। यह
स्वतंत्रता केवल मौखिक रूप से विचार प्रकट करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें लेखन, चित्रकला, फिल्म, संगीत, इंटरनेट,
प्रेस, और अन्य माध्यमों से अपनी राय व्यक्त
करने का अधिकार भी शामिल है।
हालांकि,
यह अधिकार पूर्ण रूप से निरंकुश नहीं है। अनुच्छेद 19(2)
के तहत सरकार कुछ परिस्थितियों में इस अधिकार पर सीमाएँ लगा सकती
है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का
दुरुपयोग न हो और यह समाज के हितों को नुकसान न पहुँचाए। इस लेख में हम भारतीय
संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की स्थिति, इस पर लागू
सीमाओं, न्यायिक दृष्टिकोण और ऐतिहासिक फैसलों का विश्लेषण
करेंगे।
वाक् और अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता: संविधान में प्रावधान
📜 अनुच्छेद 19(1)(a):
मौलिक अधिकार के रूप में स्वतंत्रता
✅ भारतीय संविधान का अनुच्छेद
19(1)(a) प्रत्येक भारतीय नागरिक को वाक् और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
✅ यह अधिकार जनता
को सरकार की नीतियों की आलोचना करने, मीडिया के
माध्यम से सूचना साझा करने, कला व संस्कृति के माध्यम से
विचार व्यक्त करने और जन आंदोलनों को आगे बढ़ाने का अवसर देता है।
✅ यह अधिकार लोकतांत्रिक
व्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह
नागरिकों को सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने का अवसर प्रदान करता है।
🔹 1. बोलने
और लिखने की स्वतंत्रता
बोलने और लिखने की
स्वतंत्रता (Freedom of Speech & Writing) लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह नागरिकों को अपनी सोच,
राय और विचारों को खुलकर व्यक्त करने की
अनुमति देता है, जिससे समाज में सूचना का आदान-प्रदान और
बौद्धिक विकास संभव होता है।
✅ इसका महत्व:
- लोग सरकार,
प्रशासन, नीतियों, सामाजिक
मुद्दों, और अन्य महत्वपूर्ण विषयों
पर खुलकर अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं।
- यह चुनावों में निष्पक्षता
को बनाए रखने में सहायक होता है, क्योंकि
नागरिक स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं।
- यह शोध, साहित्य, विज्ञान और इतिहास के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
✅ महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🟢 Romesh Thappar v. State of Madras (1950) – इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्र विचार व्यक्त करना
लोकतंत्र के लिए आवश्यक है और इसे अनुचित रूप से सीमित नहीं किया जा सकता।
🟢 Bennett
Coleman & Co. v. Union of India (1973) – इस मामले में
प्रेस की स्वतंत्रता को व्यक्तित्व की स्वतंत्रता से जोड़ा गया और सरकार के
हस्तक्षेप को अस्वीकार किया गया।
✅ सीमाएँ (अनुच्छेद 19(2))
हालांकि, बोलने की स्वतंत्रता असीमित नहीं
है। हेट स्पीच (घृणास्पद भाषण), राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ, झूठी अफवाहें और
सांप्रदायिक हिंसा भड़काने वाली बातें इस अधिकार के
अंतर्गत नहीं आतीं।
🔹 2. प्रेस
और मीडिया की स्वतंत्रता
मीडिया को लोकतंत्र
का चौथा स्तंभ कहा जाता है, क्योंकि यह जनता और
सरकार के बीच सूचना का मुख्य स्रोत है। एक स्वतंत्र मीडिया नागरिकों को निष्पक्ष
सूचना प्रदान करता है और सरकार को जवाबदेह बनाता है।
✅ इसका महत्व:
- लोकतंत्र में पारदर्शिता
बनाए रखने के लिए एक स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है।
- नागरिकों को सरकार की नीतियों
और फैसलों के बारे में जागरूक करता है।
- भ्रष्टाचार, अन्याय और सामाजिक बुराइयों को उजागर करने में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
✅ महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🟢 Indian Express Newspapers v. Union of India (1985)
– इस फैसले में प्रेस की स्वतंत्रता को वाक् और अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता का एक अभिन्न हिस्सा माना गया।
🟢 Sakal Papers
v. Union of India (1962) – इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सरकार
प्रेस पर अनुचित प्रतिबंध नहीं लगा सकती।
✅ सीमाएँ (अनुच्छेद 19(2))
मीडिया को झूठी खबरें, भ्रामक सूचना,
राष्ट्रविरोधी सामग्री और समाज में घृणा फैलाने वाले कंटेंट को प्रकाशित करने से रोका जा सकता है।
🔹 3. इंटरनेट
और सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
आज के डिजिटल युग
में इंटरनेट और सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का सबसे प्रभावशाली माध्यम बन चुके
हैं। इंटरनेट ने सूचना साझा करने और विचारों को व्यक्त करने की प्रक्रिया को
तेज और आसान बना दिया है।
✅ इसका महत्व:
- आम नागरिक बिना किसी मध्यस्थ
(मीडिया) के सीधे अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं।
- सरकार और प्रशासन की जवाबदेही
सुनिश्चित करने के लिए सोशल मीडिया एक महत्वपूर्ण माध्यम बन चुका है।
- जन आंदोलनों, जागरूकता अभियानों और सामाजिक न्याय की पहल को बढ़ावा देने में सहायक है।
✅ महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🟢 Shreya Singhal v. Union of India (2015) – इस ऐतिहासिक मामले में आईटी एक्ट की धारा 66A को असंवैधानिक घोषित किया गया, जो इंटरनेट पर की
गई पोस्ट के आधार पर गिरफ्तारी की अनुमति देता था।
🟢 Faheema Shirin
v. State of Kerala (2019) – इस मामले में अदालत ने कहा कि इंटरनेट
तक पहुँच भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है।
✅ सीमाएँ (अनुच्छेद 19(2))
- फेक न्यूज़,
हेट स्पीच, राष्ट्रविरोधी सामग्री,
साइबर अपराध, ट्रोलिंग और ऑनलाइन
उत्पीड़न को रोकने के लिए कुछ
कानूनी प्रतिबंध लगाए गए हैं।
- आईटी नियम 2021
के तहत सोशल मीडिया कंपनियों को अवैध और गलत सूचना को हटाने
के लिए सख्त दिशानिर्देशों का पालन करना होता है।
🔹 4. चित्रकला,
संगीत, सिनेमा आदि के माध्यम से विचार प्रकट
करने की स्वतंत्रता
कला,
साहित्य, और सिनेमा भी अभिव्यक्ति का सशक्त
माध्यम हैं, जो समाज के विभिन्न मुद्दों
को उजागर करने और परिवर्तन लाने में सहायक होते हैं।
✅ इसका महत्व:
- सामाजिक और राजनीतिक आलोचना
को चित्रकला, कविता, नाटक और फिल्मों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
- कला और संगीत के माध्यम से अलग-अलग
सांस्कृतिक परंपराएँ और सामाजिक मुद्दे सामने लाए जाते हैं।
- फिल्में और साहित्य समाज में जागरूकता फैलाने का प्रभावी माध्यम हैं।
✅ महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🟢 KA Abbas v. Union of India (1970) – इसमें अदालत ने कहा कि सिनेमा को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत
सुरक्षा प्राप्त है।
🟢 S. Rangarajan
v. P. Jagjivan Ram (1989) – इसमें कहा गया कि अगर कोई फिल्म
समाज को नुकसान नहीं पहुँचाती, तो उसे प्रतिबंधित
नहीं किया जा सकता।
✅ सीमाएँ (अनुच्छेद 19(2))
- अश्लील सामग्री,
धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले कंटेंट और राष्ट्रविरोधी
संदेशों को रोकने के लिए सेंसरशिप
लागू की जाती है।
- CBFC (Central Board of Film
Certification) फिल्मों की समीक्षा
करता है और उन्हें वर्गीकृत करता है।
🔹 5. शांतिपूर्ण
प्रदर्शन और विरोध करने का अधिकार
लोकतंत्र में
नागरिकों को सरकार के फैसलों का शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने और प्रदर्शन
करने का अधिकार दिया गया है।
✅ इसका महत्व:
- जनता सरकार की गलत नीतियों का
विरोध करने के लिए धरना, रैली
और प्रदर्शन का सहारा ले सकती है।
- यह अधिकार सरकार को नागरिकों
की समस्याओं को सुनने के लिए बाध्य करता है।
- कई ऐतिहासिक आंदोलनों (जैसे, चिपको आंदोलन, जेपी आंदोलन, शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन) ने लोकतंत्र में परिवर्तन लाने में मदद की है।
✅ महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🟢 Ramlila Maidan Protest Case (2012) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में शांतिपूर्ण विरोध
करना एक मौलिक अधिकार है।
🟢 Mazdoor Kisan
Shakti Sangathan v. Union of India (2018) – इसमें कहा गया कि सरकार
विरोध प्रदर्शनों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा सकती।
✅ सीमाएँ (अनुच्छेद 19(2))
- विरोध प्रदर्शन हिंसक नहीं
होना चाहिए।
- प्रदर्शन से सार्वजनिक संपत्ति
को नुकसान नहीं पहुँचना चाहिए।
“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक लोकतांत्रिक समाज की आधारशिला है, जो नागरिकों को अपने विचारों को व्यक्त करने और सरकार को जवाबदेह बनाने का अवसर देती है। हालाँकि, इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए, और इसके दायरे में रहकर ही इस अधिकार का उपयोग किया जाना चाहिए।“
अनुच्छेद 19(2):
वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीमाएँ
हालाँकि,
किसी भी मौलिक अधिकार के साथ कुछ प्रतिबंध भी होते हैं, ताकि समाज में संतुलन बना रहे। अनुच्छेद 19(2) के तहत सरकार कुछ परिस्थितियों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीमाएँ
लगा सकती है। ये सीमाएँ निम्नलिखित हैं:
✅ राष्ट्रीय सुरक्षा: कोई भी बयान या अभिव्यक्ति जो देश की संप्रभुता, एकता या अखंडता को खतरे में डालती है, उसे
प्रतिबंधित किया जा सकता है।
✅ सार्वजनिक
शांति और व्यवस्था: अगर कोई अभिव्यक्ति सामाजिक शांति
भंग करती है या सांप्रदायिक हिंसा को भड़काती है, तो उस
पर रोक लगाई जा सकती है।
✅ न्यायपालिका
की अखंडता: न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने
वाली अभिव्यक्ति को भी सीमित किया जा सकता है।
✅ अमर्यादित
एवं अश्लील अभिव्यक्ति: अश्लीलता या अनैतिक सामग्री पर
भी पाबंदी लगाई जा सकती है।
✅ मौलिक
अधिकारों का उल्लंघन: यदि किसी की अभिव्यक्ति किसी दूसरे
व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन करती है, तो उसे सीमित
किया जा सकता है।
न्यायपालिका
की दृष्टि से वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
भारत के सर्वोच्च
न्यायालय ने विभिन्न ऐतिहासिक मामलों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की
व्याख्या की है और इसकी सीमाओं को स्पष्ट किया है। नीचे कुछ महत्वपूर्ण मामलों का
विवरण दिया गया है:
1️. Romesh Thappar v.
State of Madras (1950)
✅ इस मामले में सर्वोच्च
न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर केवल वही प्रतिबंध लगाए जा
सकते हैं, जो अनुच्छेद 19(2) में
दिए गए हैं।
✅ न्यायालय
ने स्पष्ट किया कि किसी भी समाचार पत्र या प्रकाशन को केवल सरकार की आलोचना के
आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।
2️. Shreya Singhal v.
Union of India (2015)
✅ इस मामले में आईटी एक्ट
की धारा 66A को असंवैधानिक घोषित किया गया,
जो ऑनलाइन सामग्री को सेंसर करने का अधिकार देती थी।
✅ न्यायालय
ने कहा कि इंटरनेट भी अभिव्यक्ति का एक माध्यम है और इस पर बिना उचित कारण के
पाबंदी नहीं लगाई जा सकती।
3️. इंडियन
एक्सप्रेस बनाम भारत संघ (1985)
✅ इस मामले में सर्वोच्च
न्यायालय ने प्रेस की स्वतंत्रता को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक अभिन्न
हिस्सा माना।
✅ न्यायालय
ने कहा कि मीडिया की स्वतंत्रता को बिना उचित कारण के बाधित नहीं किया जा सकता।
4️. विनायक
दामोदर सावरकर बनाम भारत संघ (2021)
✅ इस मामले में न्यायालय ने
दोहराया कि राष्ट्रवाद और देश की आलोचना के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
✅ न्यायालय
ने कहा कि किसी भी नागरिक को सरकार की आलोचना करने का अधिकार है,
जब तक कि वह हिंसा भड़काने या देशद्रोह में शामिल न हो।
ऑनलाइन और डिजिटल
मीडिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
आज के डिजिटल युग
में,
इंटरनेट और सोशल मीडिया अभिव्यक्ति के
सबसे प्रभावशाली माध्यम बन चुके हैं। हालाँकि, सरकार कई बार फेक
न्यूज़, सांप्रदायिक दुष्प्रचार, और साइबर अपराधों को रोकने के लिए इंटरनेट पर
कुछ नियंत्रण लगाती है।
✅ Shreya Singhal v. Union of India
(2015) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऑनलाइन पोस्ट
या टिप्पणी को केवल तभी हटाया जा सकता है, जब वह जनता
के हित के खिलाफ हो।
✅ हाल के
वर्षों में सरकार ने आईटी नियम 2021 लागू किए,
जिनके तहत डिजिटल मीडिया पर निगरानी और फेक न्यूज़ पर नियंत्रण
का प्रावधान किया गया है।
निष्कर्ष
🔹 वाक् और अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है, और यह नागरिकों को
अपनी राय रखने का अधिकार देता है।
🔹 हालाँकि,
यह अधिकार पूर्ण नहीं है, और अनुच्छेद 19(2)
के तहत कुछ सीमाएँ लगाई गई हैं, ताकि समाज में
शांति और सुरक्षा बनी रहे।
🔹 भारतीय
न्यायपालिका ने कई ऐतिहासिक फैसलों के माध्यम से इस अधिकार को संरक्षित किया है और यह सुनिश्चित किया है कि सरकार इस पर अनुचित पाबंदियाँ न लगाए।
🔹 डिजिटल
मीडिया और इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए,
इस अधिकार की सुरक्षा और उसके उचित उपयोग के लिए संतुलन बनाए
रखना आवश्यक है।
🔹 अंततः,
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उद्देश्य विचारों के मुक्त प्रवाह
को बनाए रखना है, लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
💬 “अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता लोकतंत्र की नींव है, लेकिन इसे ज़िम्मेदारी
के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि समाज में संतुलन बना
रहे और प्रत्येक नागरिक को न्याय मिले।“
अक्सर पूछे जाने
वाले प्रश्न (FAQs)
1. वाक् और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या अर्थ है?
🔹 वाक् और अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता का अर्थ है कि हर नागरिक को अपने विचारों को बोलने, लिखने, प्रकाशित करने, फिल्म,
संगीत, कला, और इंटरनेट
के माध्यम से व्यक्त करने का अधिकार है। यह लोकतंत्र
का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिससे नागरिक अपनी राय
सरकार और समाज के सामने रख सकते हैं।
2. क्या
वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण रूप से असीमित है?
🔹 नहीं, यह स्वतंत्रता पूर्ण रूप से असीमित नहीं है। संविधान के अनुच्छेद
19(2) के तहत सरकार कुछ परिस्थितियों में इस
अधिकार पर सीमाएँ लगा सकती है, जैसे:
- राष्ट्रीय सुरक्षा
- सार्वजनिक व्यवस्था
- न्यायपालिका की अवमानना
- मानहानि (Defamation)
- अश्लीलता और नैतिकता का उल्लंघन
3. न्यायपालिका
ने वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर क्या फैसले दिए हैं?
🔹 भारतीय न्यायपालिका ने
इस अधिकार को संरक्षित और स्पष्ट करने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं:
- Romesh Thappar v. State of Madras
(1950): अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता लोकतंत्र के लिए आवश्यक है और इसे अनुचित रूप से सीमित नहीं किया
जा सकता।
- Shreya Singhal v. Union of India
(2015): इंटरनेट पर अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता को संरक्षित किया गया और आईटी एक्ट की धारा 66A को असंवैधानिक घोषित किया गया।
- Bennett Coleman & Co. v. Union of
India (1973): प्रेस की स्वतंत्रता को
वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ा गया।
4. क्या
सोशल मीडिया पर किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति की जा सकती है?
🔹 सोशल मीडिया पर वाक्
और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लागू होती है, लेकिन इसकी कुछ
सीमाएँ भी हैं। किसी भी व्यक्ति को फेक न्यूज़,
हेट स्पीच, सांप्रदायिक हिंसा भड़काने वाले
बयान या राष्ट्रविरोधी सामग्री पोस्ट करने की अनुमति
नहीं है।
🔹 Shreya Singhal
v. Union of India (2015) के फैसले के अनुसार, ऑनलाइन पोस्ट को केवल तभी हटाया जा सकता है जब वह जनता के हित के खिलाफ हो।
5. क्या
सरकार प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकती है?
🔹 भारतीय संविधान मीडिया
और प्रेस को स्वतंत्रता प्रदान करता है, लेकिन कुछ
सीमाओं के तहत। सरकार प्रेस की स्वतंत्रता को राष्ट्रीय सुरक्षा,
सार्वजनिक व्यवस्था, या न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा के लिए सीमित कर सकती है।
🔹 Indian Express
Newspapers v. Union of India (1985) फैसले में कहा गया कि मीडिया
की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आधारशिला है और इसे बिना उचित कारण के बाधित नहीं किया
जा सकता।
“वाक्
और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है,
लेकिन इसका प्रयोग जिम्मेदारीपूर्वक और संविधान द्वारा निर्धारित
सीमाओं के भीतर किया जाना चाहिए।“