शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए आरक्षण: 93वां संविधान संशोधन, 2005 और क्रीमी लेयर सिद्धांत Reservation for Other Backward Classes (OBCs) in Educational Institutions: 93rd Constitutional Amendment, 2005 and Creamy Layer Principle

Reservation for Other Backward Classes (OBCs) in Educational Institutions:

 


शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए आरक्षण: 93वां संविधान संशोधन, 2005 और क्रीमी लेयर सिद्धांत


परिचय



🔷भारत एक बहुजातीय और बहुसांस्कृतिक देश है, जहाँ सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए सरकार द्वारा कई संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं। संविधान का 93वां संशोधन (2005) अनुच्छेद 15(5) को जोड़कर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था करता है। इसके तहत, गैर-अल्पसंख्यक निजी शिक्षण संस्थानों सहित सभी शैक्षणिक संस्थानों में OBC को आरक्षण प्रदान किया गया।

इसके अलावा, "क्रीमी लेयर सिद्धांत" यह सुनिश्चित करता है कि आरक्षण का लाभ केवल वास्तव में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों तक पहुँचे, न कि उन लोगों तक जो आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुके हैं। इस लेख में, हम 93वें संविधान संशोधन, क्रीमी लेयर सिद्धांत और न्यायिक फैसलों का गहन विश्लेषण करेंगे।


अनुच्छेद 15(5) और 93वां संविधान संशोधन (2005) क्या है?

 

संविधान का अनुच्छेद 15(5):


यह प्रावधान राज्य को अधिकार देता है कि वह शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों (OBC), अनुसूचित जाति (SC), और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सके।
यह सरकारी और निजी सहायता प्राप्त संस्थानों पर लागू होता है, लेकिन अल्पसंख्यक संस्थानों (अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षित) पर लागू नहीं होता।

 

93वां संविधान संशोधन (2005):


भारतीय संविधान में अनुच्छेद 15(5) को जोड़कर OBC के लिए शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को संवैधानिक वैधता दी गई।
यह संशोधन मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर लागू किया गया था, ताकि OBC को उच्च शिक्षा में समान अवसर मिल सके।

 

मुख्य उद्देश्य:


OBC को उच्च शिक्षा में समान अवसर देना।
सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को आगे बढ़ाना।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण का लाभ सुनिश्चित करना।

 

क्रीमी लेयर सिद्धांत (Creamy Layer Concept) क्या है?

 

भारतीय संविधान सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण प्रदान करता है। लेकिन क्या आरक्षण का लाभ उन्हीं लोगों को मिलता है जो वास्तव में जरूरतमंद हैं? यही सवाल "क्रीमी लेयर सिद्धांत" की अवधारणा को जन्म देता है।

"क्रीमी लेयर" का अर्थ है OBC वर्ग के वे लोग, जो आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से समृद्ध हो चुके हैं और जिन्हें आरक्षण की आवश्यकता नहीं है। इस सिद्धांत के तहत, यदि कोई OBC परिवार एक निश्चित आर्थिक और सामाजिक स्थिति से ऊपर पहुँच चुका है, तो उसे आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाता।

सरल शब्दों में – क्रीमी लेयर वे लोग हैं जो OBC वर्ग से तो आते हैं, लेकिन वे आर्थिक और सामाजिक रूप से समृद्ध हो चुके हैं, इसलिए वे आरक्षण के पात्र नहीं हैं।

 

क्रीमी लेयर सिद्धांत का कानूनी आधार

 

🔹 इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) – मंडल आयोग मामला
इस ऐतिहासिक फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने OBC को 27% आरक्षण देने को सही ठहराया, लेकिन यह भी कहा कि आरक्षण का लाभ केवल "वास्तविक पिछड़े वर्गों" को मिलना चाहिए।
न्यायालय ने निर्देश दिया कि OBC के "क्रीमी लेयर" को आरक्षण से बाहर रखा जाए
इसके आधार पर, केंद्र सरकार ने 1993 में क्रीमी लेयर की पहचान के लिए दिशानिर्देश जारी किए।

🔹 अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ (2008)


न्यायालय ने कहा कि क्रीमी लेयर सिद्धांत "शिक्षा और सरकारी नौकरियों" दोनों में लागू होना चाहिए।
अनुच्छेद 15(5) और 93वें संविधान संशोधन को वैध ठहराया गया।

 

🔹 नवीन श्रम संस्थान बनाम भारत संघ (2015)


न्यायालय ने कहा कि OBC के आर्थिक रूप से समृद्ध वर्ग (क्रीमी लेयर) को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए।

 

🔹 जनहित अभियान बनाम भारत संघ (2022)


न्यायालय ने EWS (Economically Weaker Section) आरक्षण को वैध ठहराया, लेकिन OBC क्रीमी लेयर सिद्धांत को बरकरार रखा

 

 

क्रीमी लेयर की परिभाषा और मापदंड

 

📌 "क्रीमी लेयर" का अर्थ उन OBC व्यक्तियों से है जो आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से सक्षम हो चुके हैं और आरक्षण के लाभ के पात्र नहीं हैं।

📌 OBC क्रीमी लेयर की पहचान के लिए सरकार द्वारा निर्धारित मानदंड:

 

(1) आर्थिक स्थिति:


यदि किसी OBC परिवार की वार्षिक आय ₹8 लाख या उससे अधिक है, तो वे क्रीमी लेयर में आते हैं और आरक्षण नहीं मिलेगा।
यह आय सीमा केवल माता-पिता की आय पर लागू होती है, स्वयं के वेतन पर नहीं।

 

(2) सरकारी नौकरी:


यदि माता-पिता केंद्र या राज्य सरकार के ग्रुप A (Class I) अधिकारी हैं, तो उनके बच्चे क्रीमी लेयर में आएंगे।
यदि माता-पिता दो पीढ़ियों से ग्रुप B (Class II) अधिकारी हैं, तो उनके बच्चे भी क्रीमी लेयर में आएंगे।

 

(3) पेशेवर और व्यावसायिक स्थिति:


बड़े व्यापारी, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, उद्योगपति, या अन्य समृद्ध पेशेवर क्रीमी लेयर में आते हैं
यदि परिवार के पास बड़ी भूमि, फैक्टरी, होटल, अस्पताल या अन्य संपत्ति है, तो वे क्रीमी लेयर में गिने जाते हैं।

 

(4) सामाजिक स्थिति:


यदि कोई व्यक्ति उच्च पदस्थ सामाजिक स्थिति में है और उसे कोई भेदभाव या पिछड़ापन नहीं झेलना पड़ता, तो उसे आरक्षण से बाहर रखा जाता है।

 

महत्वपूर्ण अपवाद:


अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए "क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू नहीं होता"
छोटे किसानों, मजदूरों और छोटे व्यवसायियों को क्रीमी लेयर से बाहर रखा गया है

 

 निष्कर्ष

93वें संविधान संशोधन (2005) ने OBC के लिए शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की।
"क्रीमी लेयर सिद्धांत" यह सुनिश्चित करता है कि आरक्षण का लाभ केवल वास्तविक पिछड़े वर्गों को मिले।
अनुच्छेद 15(5) के तहत OBC को सरकारी और निजी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में आरक्षण मिलता है
न्यायपालिका ने समय-समय पर OBC आरक्षण और क्रीमी लेयर सिद्धांत को सही ठहराया और इसकी सीमाओं को निर्धारित किया।

 

शैक्षिक संस्थानों में OBC के लिए आरक्षण: 93वां संविधान संशोधन (2005) और क्रीमी लेयर सिद्धांत – महत्वपूर्ण FAQs

 

1. 93वां संविधान संशोधन (2005) क्या है और यह OBC आरक्षण से कैसे जुड़ा है?

93वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान में अनुच्छेद 15(5) जोड़ा गया, जो राज्य को यह अधिकार देता है कि वह अन्य पिछड़े वर्गों (OBC), अनुसूचित जाति (SC), और अनुसूचित जनजाति (ST) को शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण प्रदान कर सके।
यह प्रावधान सरकारी और गैर-सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों पर लागू होता है, लेकिन अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों (अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षित) पर लागू नहीं होता
इस संशोधन का उद्देश्य OBC और अन्य वंचित वर्गों को उच्च शिक्षा में समान अवसर प्रदान करना था

📌 संवैधानिक अनुच्छेद:
🔹 अनुच्छेद 15(5) – OBC, SC और ST के लिए शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण की संवैधानिक गारंटी।

 

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ (2008)सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 15(5) और 93वें संशोधन को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया।


 

2. क्रीमी लेयर सिद्धांत (Creamy Layer Concept) क्या है?

 

क्रीमी लेयर सिद्धांत का अर्थ यह है कि OBC वर्ग के वे लोग जो आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से समृद्ध हो चुके हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
यह सुनिश्चित करता है कि आरक्षण का लाभ केवल जरूरतमंद और वास्तविक रूप से पिछड़े वर्गों तक पहुँचे
"क्रीमी लेयर" में आने वाले व्यक्ति OBC प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) – मंडल आयोग मामला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "OBC आरक्षण में क्रीमी लेयर को बाहर रखा जाना चाहिए", ताकि केवल जरूरतमंदों को लाभ मिले।

 

3. क्रीमी लेयर की पहचान के लिए क्या मापदंड हैं?

 

(1) आर्थिक स्थिति:
OBC क्रीमी लेयर की वर्तमान आय सीमा ₹8 लाख प्रति वर्ष है
यह सीमा माता-पिता की आय पर लागू होती है, स्वयं के वेतन पर नहीं

 

(2) सरकारी नौकरी:
यदि माता-पिता केंद्र या राज्य सरकार के ग्रुप A (Class I) अधिकारी हैं, तो उनके बच्चे क्रीमी लेयर में आएंगे और उन्हें आरक्षण नहीं मिलेगा
यदि माता-पिता दो पीढ़ियों से ग्रुप B (Class II) अधिकारी हैं, तो उनके बच्चे भी क्रीमी लेयर में आएंगे।

 

(3) व्यावसायिक स्थिति:
बड़े व्यापारी, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, उद्योगपति, या अन्य समृद्ध पेशेवर OBC क्रीमी लेयर में आते हैं
यदि परिवार के पास बड़ी भूमि, फैक्टरी, होटल, अस्पताल या अन्य संपत्ति है, तो वे क्रीमी लेयर में गिने जाते हैं।

 

(4) सामाजिक स्थिति:
यदि कोई व्यक्ति उच्च पदस्थ सामाजिक स्थिति में है और उसे कोई भेदभाव या पिछड़ापन नहीं झेलना पड़ता, तो उसे आरक्षण से बाहर रखा जाता है

 

महत्वपूर्ण अपवाद:
अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए "क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू नहीं होता"
छोटे किसानों, मजदूरों और छोटे व्यवसायियों को क्रीमी लेयर से बाहर रखा गया है

 

4. क्या OBC के सभी लोगों को आरक्षण मिलता है?

 

नहीं, OBC में केवल "नॉन-क्रीमी लेयर" व्यक्तियों को आरक्षण का लाभ मिलता है।
"क्रीमी लेयर" में आने वाले OBC व्यक्ति आरक्षण के पात्र नहीं होते

 

न्यायिक संदर्भ:
🔹 इंदिरा साहनी केस (1992)सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि OBC क्रीमी लेयर को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए

 

5. क्या क्रीमी लेयर सिद्धांत SC/ST पर भी लागू होता है?

 

नहीं, अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) पर "क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू नहीं होता"
SC/ST के सभी व्यक्तियों को आरक्षण का लाभ मिलता है, चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।

 

न्यायिक संदर्भ:
🔹 एम. नागराज बनाम भारत संघ (2006) – SC/ST को पदोन्नति में आरक्षण देने पर विचार किया गया, लेकिन क्रीमी लेयर सिद्धांत उन पर लागू नहीं हुआ।


6. क्या OBC क्रीमी लेयर को EWS (Economically Weaker Section) आरक्षण मिल सकता है?

 

नहीं, यदि कोई व्यक्ति OBC क्रीमी लेयर में आता है, तो वह EWS आरक्षण के लिए पात्र नहीं होगा
EWS आरक्षण केवल सामान्य वर्ग (General Category) के लिए है

 

न्यायिक संदर्भ:
🔹 जनहित अभियान बनाम भारत संघ (2022)सुप्रीम कोर्ट ने EWS आरक्षण को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया, लेकिन OBC क्रीमी लेयर को इससे बाहर रखा।

 

7. क्या क्रीमी लेयर सिद्धांत को समाप्त किया जा सकता है?

 

नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमी लेयर सिद्धांत को संवैधानिक रूप से आवश्यक बताया है और इसे जारी रखने का आदेश दिया है।
यदि OBC क्रीमी लेयर को आरक्षण दिया जाता है, तो यह वास्तविक पिछड़े वर्गों के साथ अन्याय होगा

 

न्यायिक संदर्भ:
🔹 अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ (2008)सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्रीमी लेयर सिद्धांत को समाप्त नहीं किया जा सकता

 

8. क्या राज्य सरकारें OBC क्रीमी लेयर की आय सीमा बदल सकती हैं?

 

हाँ, राज्य सरकारें अपनी OBC सूची के लिए अलग क्रीमी लेयर सीमा निर्धारित कर सकती हैं।
लेकिन केंद्र सरकार की वर्तमान सीमा ₹8 लाख प्रति वर्ष बनी हुई है।

 

न्यायिक संदर्भ:

🔹 नवीन श्रम संस्थान बनाम भारत संघ (2015)न्यायालय ने कहा कि OBC क्रीमी लेयर सीमा को राज्य सरकारें संशोधित कर सकती हैं

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