भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली और मानवाधिकार: कैदियों के अधिकार एवं पुलिस आचरण की चुनौतियाँ। Criminal justice system and human rights in India: Challenges of prisoners' rights and police conduct.


भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली में मानवाधिकारों की भूमिका


भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली और मानवाधिकार: कैदियों के अधिकार एवं पुलिस आचरण की चुनौतियाँ।


मानवाधिकार भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो अभियुक्तों, कैदियों सहित प्रणाली में शामिल व्यक्तियों के साथ व्यवहार और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के आचरण का मार्गदर्शन करते हैं। ये अधिकार भारतीय संविधान, विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों और केस लॉ में निहित हैं। यहाँ बताया गया है कि भारत में कैदियों के अधिकारों और पुलिस के आचरण के मुद्दों के साथ मानवाधिकार कैसे जुड़े हैं:


अभियुक्त व्यक्ति और मानवाधिकार:

 

निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार: 

 

अभियुक्तों को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। इसमें कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार, उनके खिलाफ़ लगे आरोपों के बारे में जानकारी पाने का अधिकार और समय पर सुनवाई का अधिकार शामिल है। इन अधिकारों के उल्लंघन के परिणामस्वरूप न्याय में चूक हो सकती है।


निर्दोषता की धारणा: 

 

निर्दोषता की धारणा एक मौलिक मानव अधिकार है। आरोपी व्यक्तियों को तब तक निर्दोष माना जाना चाहिए जब तक कि उन्हें न्यायालय में दोषी साबित न कर दिया जाए, और उन्हें अमानवीय व्यवहार या मुकदमे से पहले सज़ा नहीं दी जानी चाहिए।


यातना का निषेध: 

 

अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कानून के तहत आरोपी व्यक्तियों को यातना देना या उनके साथ दुर्व्यवहार करना सख्त वर्जित है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की है कि हिरासत में हिंसा मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है।

कैदी अधिकार और मानव अधिकार:


गरिमा का अधिकार: 

 

कैदियों को गरिमा और सम्मान के साथ व्यवहार किए जाने का अधिकार है। उन्हें क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सज़ा नहीं दी जानी चाहिए।

मानवीय वातावरण का अधिकार: 

 

जेलों में रहने की स्थिति बुनियादी मानवाधिकार मानकों के अनुरूप होनी चाहिए, जिसमें स्वच्छ जल, स्वच्छता और चिकित्सा देखभाल तक पहुंच शामिल है।

पुनर्वास का अधिकार: 

 

कैदियों को रिहाई के बाद समाज में पुनः एकीकरण के लिए पुनर्वास कार्यक्रमों, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण तक पहुंच का अधिकार है।

पुलिस आचरण और मानवाधिकार:



जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार: पुलिस को व्यक्तियों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करना चाहिए। न्यायेतर हत्याएं या हिरासत में मौतें इन अधिकारों का उल्लंघन हैं।

निष्पक्ष जांच का अधिकार: 

 

कानून प्रवर्तन एजेंसियों को उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए निष्पक्ष जांच करनी चाहिए तथा संदिग्धों, गवाहों और पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।



यातना का पूर्ण निषेध: 

 

जैसा कि पहले बताया गया है, पुलिस द्वारा यातना या दुर्व्यवहार का प्रयोग सख्त वर्जित है, तथा ऐसे व्यवहार के शिकार व्यक्तियों के पास कानूनी सहारा है।

निजता का अधिकार: 

निजता के अधिकार को भारत में एक मौलिक मानव अधिकार माना जाता है। यह राज्य और निजी दोनों पक्षों द्वारा अनुचित निगरानी और निजता के उल्लंघन के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।

कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार: 

 

आरोपी व्यक्तियों को कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार है। राज्य को उन लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करना आवश्यक है जो कानूनी सहायता का खर्च वहन नहीं कर सकते।

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानक: 

 

भारत विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों का हस्ताक्षरकर्ता है, जैसे कि नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा (ICCPR) और यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या दंड के विरुद्ध अभिसमय। ये संधियाँ भारत सरकार पर आपराधिक न्याय प्रणाली में मानवाधिकारों को बनाए रखने के लिए दायित्व डालती हैं।


जबकि भारत ने आपराधिक न्याय प्रणाली के भीतर मानवाधिकारों को मान्यता देने और उनकी रक्षा करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है, फिर भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। हिरासत में यातना, भीड़भाड़ वाली जेलें और मुकदमों में देरी जैसे मुद्दे मानवाधिकारों के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह मानवाधिकार मानकों का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करने, जवाबदेही को बढ़ावा देने और इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिए अपने कानूनी और संस्थागत ढांचे को मजबूत करना जारी रखे।

 

निष्कर्ष

 

भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली और मानवाधिकारों के बीच गहरा संबंध है। यह प्रणाली केवल अपराधियों को दंडित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की भी जिम्मेदारी लेती है कि प्रत्येक व्यक्ति – चाहे वह अभियुक्त हो, कैदी हो या कोई भी नागरिक – उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा की जाए। निष्पक्ष सुनवाई, गरिमा के साथ व्यवहार, और यातना व अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध सुरक्षा जैसे अधिकार न्याय और मानवता के मूल स्तंभ हैं।

 

हालांकि, व्यावहारिक स्तर पर कई चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। हिरासत में यातना, न्यायेतर हत्याएं, जेलों में अमानवीय स्थिति और लंबित मुकदमों की अधिकता जैसी समस्याएं हमारी न्याय प्रणाली को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की माँग करती हैं। पुलिस सुधारों की आवश्यकता है ताकि वे कानून लागू करने के साथ-साथ नागरिक अधिकारों का सम्मान भी करें।

 

मानवाधिकार केवल एक वैधानिक या संवैधानिक अवधारणा नहीं है, बल्कि यह सभ्य समाज की पहचान भी है। जब एक लोकतांत्रिक व्यवस्था अपराधियों को भी उनके मूल अधिकारों से वंचित नहीं करती, तो यह उसके न्यायिक और नैतिक मूल्यों की परिपक्वता को दर्शाता है। भारत को एक ऐसी आपराधिक न्याय प्रणाली की ओर बढ़ना चाहिए जो न केवल अपराध पर अंकुश लगाए, बल्कि प्रत्येक नागरिक के अधिकारों और गरिमा की रक्षा भी सुनिश्चित करे।

 

भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली और मानवाधिकार: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

 

1. भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में मानवाधिकारों की क्या भूमिका है?

 

मानवाधिकार आपराधिक न्याय प्रणाली का मूल आधार हैं। यह सुनिश्चित करता है कि आरोपी, कैदी और आम नागरिकों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार हो। निष्पक्ष सुनवाई, यातना से बचाव, गरिमा के साथ जीवन और कानूनी सहायता का अधिकार इन्हीं मानवाधिकारों का हिस्सा हैं।

 

2. क्या किसी अभियुक्त को भी मानवाधिकार प्राप्त होते हैं?

 

हाँ, हर अभियुक्त को जब तक दोषी सिद्ध नहीं किया जाता, तब तक निर्दोष माना जाता है। उसे निष्पक्ष सुनवाई, कानूनी सहायता और सम्मानजनक व्यवहार का अधिकार होता है। पुलिस या न्यायालय आरोपी के साथ अमानवीय व्यवहार नहीं कर सकते।

 

3. कैदियों के कौन-कौन से अधिकार होते हैं?

 

कैदियों को भी मानवाधिकार प्राप्त हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

 

  • गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार
  • स्वच्छ जल, भोजन और चिकित्सा सहायता का अधिकार
  • कानूनी सहायता का अधिकार
  • पुनर्वास और समाज में फिर से शामिल होने का अधिकार

4. क्या पुलिस हिरासत में यातना देना कानूनी है?

 

बिल्कुल नहीं। भारत में यातना देना गैरकानूनी है और सुप्रीम कोर्ट इसे मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन मानता है। हिरासत में यातना के खिलाफ पीड़ितों के पास कानूनी सहारा लेने का अधिकार है।

 

5. क्या पुलिस को किसी को भी गिरफ्तार करने का असीमित अधिकार है?

 

नहीं, पुलिस को किसी भी व्यक्ति को कानून के दायरे में रहकर ही गिरफ्तार करना होता है। गिरफ्तारी के समय व्यक्ति को उसके अधिकारों के बारे में बताया जाना चाहिए, और उसे कानूनी सहायता लेने का अवसर मिलना चाहिए।

 

6. हिरासत में मौतों या फर्जी मुठभेड़ों पर कानून क्या कहता है?

 

न्यायेतर हत्याएँ या फर्जी मुठभेड़ संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करती हैं। सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) इस तरह के मामलों की जाँच के लिए दिशा-निर्देश जारी कर चुके हैं।

 

7. जेलों में अमानवीय स्थिति को सुधारने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

 

भारत में जेल सुधार की आवश्यकता है। भीड़भाड़ कम करने, कैदियों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने, न्याय प्रक्रिया को तेज करने और पुनर्वास कार्यक्रमों को लागू करने से जेलों की स्थिति सुधर सकती है।

 

8. क्या गरीब आरोपी को मुफ्त कानूनी सहायता मिलती है?

 

हाँ, यदि कोई व्यक्ति कानूनी सहायता का खर्च नहीं उठा सकता, तो उसे निःशुल्क कानूनी सहायता दी जाती है। यह संविधान और विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत एक मौलिक अधिकार है।

 

9. क्या भारत अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों का पालन करता है?

 

हाँ, भारत कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों का सदस्य है, जैसे ICCPR (नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा) और यातना विरोधी अभिसमय। हालांकि, कुछ मामलों में सुधार की जरूरत बनी हुई है।

 

10. क्या आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार की जरूरत है?
 

बिल्कुल, मुकदमों में देरी, हिरासत में यातना, पुलिस सुधारों की जरूरत और कैदियों के अधिकारों की रक्षा जैसे मुद्दों पर सुधार किए जाने चाहिए। न्यायिक प्रक्रियाओं को तेज और अधिक पारदर्शी बनाना भी आवश्यक है।

 

विशेष:-

 "भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए मानवाधिकारों की रक्षा करना अनिवार्य है। एक संतुलित और न्यायपूर्ण प्रणाली ही कानून के प्रति विश्वास बनाए रख सकती है।"

 

 

 

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