भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल: भूमिका, शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ। President, Vice-President and Governors in India: Role, powers and responsibilities.


President, Vice-President and Governors in India: Role, powers and responsibilities.


 भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल: भूमिका, शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ।

 

भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल सरकार के कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहाँ उनकी भूमिकाओं और शक्तियों का अवलोकन दिया गया है:

 

🔷भारत के राष्ट्रपति
 

भारत का राष्ट्रपति औपचारिक राष्ट्राध्यक्ष और देश का सर्वोच्च संवैधानिक अधिकारी है। हालाँकि राष्ट्रपति की अधिकांश शक्तियाँ मंत्रिपरिषद की सलाह पर प्रयोग की जाती हैं, लेकिन कुछ विवेकाधीन शक्तियाँ भी हैं। राष्ट्रपति की भूमिकाएँ और शक्तियाँ इस प्रकार हैं:

 

 

औपचारिक प्रमुख: राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है और औपचारिक कर्तव्यों का निर्वहन करता है, जैसे पुरस्कार प्रदान करना, विदेशी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत करना और महत्वपूर्ण अवसरों पर राष्ट्र को संबोधित करना।

 

 

कार्यकारी शक्तियाँ: राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति उन्हें पद से हटा भी सकता है।

 

 

विधायी शक्तियाँ: राष्ट्रपति संसद के सत्र बुलाता है और स्थगित करता है तथा यदि सरकार सदन का विश्वास खो देती है तो वह लोक सभा (लोक सभा) को भंग कर सकता है। राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देता है, तथा कुछ विधेयकों, जैसे धन विधेयक, के लिए राष्ट्रपति की संस्तुति की आवश्यकता होती है।

 

 

विवेकाधीन शक्तियाँ: राष्ट्रपति के पास कुछ विवेकाधीन शक्तियाँ हैं, जैसे कि सज़ा माफ़ करने या उसे कम करने की शक्ति, पुनर्विचार के लिए विधेयक वापस करने की शक्ति और प्रधानमंत्री से जानकारी माँगने की शक्ति। हालाँकि, इन शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर किया जाता है।

 

 

अंतर्राष्ट्रीय संबंध: राष्ट्रपति अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, राजनयिकों को मान्यता प्रदान करते हैं, तथा विदेशी राजदूतों एवं दूतों का स्वागत करते हैं।

 

🔷भारत के उपराष्ट्रपति
 

भारत के उपराष्ट्रपति देश में दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक अधिकारी है और वह काफी हद तक औपचारिक क्षमता में कार्य करता है। उपराष्ट्रपति की भूमिकाएँ और शक्तियाँ इस प्रकार हैं:

 

 

पीठासीन अधिकारी: उपराष्ट्रपति संसद के ऊपरी सदन राज्य सभा (राज्य परिषद) के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं। इस भूमिका में, वे सत्रों की अध्यक्षता करते हैं, व्यवस्था बनाए रखते हैं और बराबरी की स्थिति में निर्णायक मत देते हैं।

 

 

कार्यवाहक राष्ट्रपति: राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में या जब राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हों, तो उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका निभाता है।

 

🔷राज्यपाल

 

प्रत्येक भारतीय राज्य की कार्यकारी शाखा का नेतृत्व करने के लिए राज्यपालों की नियुक्ति की जाती है। उनकी भूमिकाएँ और शक्तियाँ इस प्रकार हैं:

 

 

राज्य के प्रमुख: राज्यपाल अपने-अपने राज्यों के औपचारिक प्रमुख होते हैं तथा राज्य स्तर पर राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व करते हैं।

 

 

कार्यकारी शक्तियां: राज्यपाल राज्य के भीतर कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करते हैं, जैसे मुख्यमंत्री की नियुक्ति करना, कुछ मामलों पर मुख्यमंत्री को सलाह देना, तथा राज्य विधानमंडल के सत्र में न होने पर अध्यादेश जारी करना।

 

 

विधायी शक्तियां: राज्यपाल राज्य विधानमंडल के सत्र बुलाते और स्थगित करते हैं, राज्यपाल का अभिभाषण देते हैं, तथा राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देते हैं।

 

 

विवेकाधीन शक्तियाँ: राष्ट्रपति की तरह राज्यपालों के पास भी कुछ विवेकाधीन शक्तियाँ होती हैं। वे राज्य में संवैधानिक संकट के बारे में राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेज सकते हैं, राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक सुरक्षित रख सकते हैं और मुख्यमंत्री से जानकारी माँग सकते हैं।

 

राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपालों की भूमिकाएँ मुख्य रूप से संवैधानिक और औपचारिक होती हैं, और वे संसदीय शासन प्रणाली के ढांचे के भीतर काम करते हैं। हालाँकि उनकी शक्तियाँ सीमित हैं, लेकिन वे संवैधानिक ढांचे में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं, सरकार के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करते हैं, कानून का शासन बनाए रखते हैं और संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखते हैं।

 

🔷 भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल की भूमिका और महत्व

 

भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल संवैधानिक व्यवस्था के आधारभूत स्तंभ हैं। ये तीनों पद देश की लोकतांत्रिक और संघीय शासन प्रणाली में संतुलन बनाए रखते हैं और विभिन्न संवैधानिक कार्यों का निर्वहन करते हैं। हालांकि ये पद अधिकतर औपचारिक और सांविधानिक प्रकृति के होते हैं, लेकिन कई परिस्थितियों में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।

 

🔶 राष्ट्रपति: भारतीय गणराज्य का संरक्षक और संवैधानिक प्रमुख

 

संवैधानिक प्रमुख: राष्ट्रपति सरकार की निरंतरता और स्थिरता बनाए रखने के लिए कार्य करता है।
विधायी प्रक्रिया में भूमिका: राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देता है और आवश्यकतानुसार संसद का सत्र बुला सकता है।
माफ़ी देने की शक्ति: अनुच्छेद 72 के तहत, राष्ट्रपति को दया याचिका पर निर्णय लेने की शक्ति है।
राष्ट्रपति शासन: अनुच्छेद 356 के तहत, यदि किसी राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न होता है, तो राष्ट्रपति राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय


🔹
के. शंकरनारायणन बनाम भारत संघ (2010): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति को अपने सभी कार्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर करने होते हैं, लेकिन वह सलाह के पुनर्विचार के लिए अनुरोध कर सकते हैं।


🔶 उपराष्ट्रपति: संसद के उच्च सदन का नेतृत्वकर्ता
 

राज्यसभा के अध्यक्ष: उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पीठासीन अधिकारी होते हैं और सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं।
कार्यवाहक राष्ट्रपति: यदि राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ होते हैं, तो उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बनते हैं।
निर्णायक मत की शक्ति: यदि राज्यसभा में किसी मुद्दे पर मतों की समानता होती है, तो उपराष्ट्रपति को निर्णायक मत देने का अधिकार होता है।

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय


🔹 एन. कृष्णप्पा बनाम भारत संघ (2005): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उपराष्ट्रपति का राज्यसभा अध्यक्ष के रूप में कार्य न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं होता जब तक कि वह संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन न करें।

 

🔶 राज्यपाल: राज्यों में राष्ट्रपति के प्रतिनिधि

 

राज्य सरकार के प्रमुख: राज्यपाल मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति करता है और राज्य के कार्यपालिका प्रमुख के रूप में कार्य करता है।
विवेकाधीन शक्तियाँ: राज्यपाल राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेज सकता है और संवैधानिक संकट की स्थिति में अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकता है।
विधायी भूमिका: राज्यपाल राज्य विधानमंडल के सत्र बुला सकता है और विधेयकों को मंजूरी दे सकता है।
विशेष जिम्मेदारी: कुछ राज्यों जैसे नागालैंड, मिज़ोरम और असम में राज्यपाल को विशेष ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गई हैं

 

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:


🔹 शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य (1974): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को कार्यपालिका की शक्तियाँ राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह से प्रयोग करनी चाहिए।

 

🔷 संवैधानिक संतुलन और भविष्य की चुनौतियाँ
 

🔹 कार्यकारी शक्तियों की सीमाएँ: राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल के पास सीधे कार्यकारी शक्तियाँ नहीं होतीं, लेकिन वे संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखते हैं।
🔹 संघीय व्यवस्था का संतुलन: राज्यपाल केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संवैधानिक समन्वयक के रूप में कार्य करते हैं।
🔹 लोकतंत्र की रक्षा: राष्ट्रपति और राज्यपाल की भूमिका संसदीय लोकतंत्र में तटस्थता और निष्पक्षता बनाए रखने में सहायक होती है।
🔹 संवैधानिक अनुशासन: सुप्रीम कोर्ट कई फैसलों में यह स्पष्ट कर चुका है कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को अपनी शक्तियों का उपयोग संवैधानिक मर्यादाओं के तहत ही करना चाहिए।

 

📌 महत्वपूर्ण सुझाव


संवैधानिक सुधारों की आवश्यकता: राज्यपाल की नियुक्ति और बर्खास्तगी की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए।
राजनीतिक हस्तक्षेप को रोकना: राष्ट्रपति और राज्यपालों की भूमिका को राजनीतिक प्रभावों से मुक्त रखा जाना चाहिए ताकि वे निष्पक्ष रूप से कार्य कर सकें।
न्यायिक समीक्षा को मजबूत करना: राष्ट्रपति और राज्यपाल के निर्णयों की समीक्षा करने के लिए संवैधानिक तंत्र को और प्रभावी बनाने की जरूरत है।

 

🔷 निष्कर्ष

 

भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल संविधान के संरक्षक हैं और संसदीय प्रणाली के अंतर्गत संतुलन बनाए रखते हैं। इनकी भूमिका मुख्यतः औपचारिक होती है, लेकिन संवैधानिक संकट या असाधारण परिस्थितियों में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।

राष्ट्रपति भारत का संवैधानिक प्रमुख और सर्वोच्च कार्यकारी अधिकारी होते हैं।
उपराष्ट्रपति राज्यसभा का अध्यक्ष होने के नाते विधायी प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित करते हैं।
राज्यपाल राज्य स्तर पर केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं और राज्य प्रशासन में संतुलन बनाए रखते हैं।

📌 "संविधान का सफल संचालन केवल विधायिका और कार्यपालिका पर निर्भर नहीं करता, बल्कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल की निष्पक्षता और संवैधानिक मर्यादा के पालन पर भी निर्भर करता है।" 🚩

 

🔷 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – 

 

1. भारत में राष्ट्रपति की क्या भूमिका है, और वह किन शक्तियों का प्रयोग करता है?

🔹 उत्तर:
भारत के राष्ट्रपति देश के संवैधानिक प्रमुख और कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं। राष्ट्रपति की शक्तियाँ इस प्रकार हैं:

कार्यकारी शक्ति: राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति करता है।
विधायी शक्ति: संसद का सत्र बुलाने, स्थगित करने और विधेयकों को मंजूरी देने की शक्ति।
न्यायिक शक्ति: अनुच्छेद 72 के तहत दया याचिका पर निर्णय लेने की शक्ति।
अंतर्राष्ट्रीय भूमिका: राजदूतों की नियुक्ति और अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर करने की शक्ति।
राष्ट्रपति शासन: अनुच्छेद 356 के तहत, यदि किसी राज्य में संवैधानिक संकट हो, तो राष्ट्रपति वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति को कार्यपालिका की सभी शक्तियाँ मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही प्रयोग करनी चाहिए।

 

2. भारत के उपराष्ट्रपति की क्या भूमिका और शक्तियाँ हैं?

🔹 उत्तर:

राज्यसभा के अध्यक्ष: उपराष्ट्रपति भारत के उच्च सदन (राज्यसभा) के पदेन अध्यक्ष होते हैं।
निर्णायक मत: यदि राज्यसभा में किसी प्रस्ताव पर बराबर मत आते हैं, तो उपराष्ट्रपति निर्णायक मत देते हैं।
कार्यवाहक राष्ट्रपति: यदि राष्ट्रपति अनुपस्थित हैं या असमर्थ हैं, तो उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बनते हैं।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 एन. कृष्णप्पा बनाम भारत संघ (2005): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपराष्ट्रपति का राज्यसभा अध्यक्ष के रूप में कार्य न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं होता।

 

3. भारत के राज्यपाल की भूमिका और शक्तियाँ क्या हैं?

🔹 उत्तर:

राज्य का संवैधानिक प्रमुख: राज्यपाल राज्य स्तर पर केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करता है।
कार्यकारी शक्ति: मुख्यमंत्री और मंत्रियों की नियुक्ति करने की शक्ति।
विधायी शक्ति: राज्य विधानमंडल के सत्र बुलाने, स्थगित करने और विधेयकों को मंजूरी देने की शक्ति।
विवेकाधीन शक्ति: संवैधानिक संकट के समय अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने की शक्ति।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य (1974): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कार्य करना चाहिए।

 

4. राष्ट्रपति और राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ क्या हैं?

🔹 उत्तर:
हालांकि राष्ट्रपति और राज्यपाल सामान्यतः मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हैं, लेकिन कुछ स्थितियों में वे विवेकाधीन शक्तियाँ प्रयोग कर सकते हैं।

राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियाँ:
📌 प्रधानमंत्री की नियुक्ति (यदि कोई स्पष्ट बहुमत न हो)।
📌 किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को लौटाना।
📌 अनुच्छेद 72 के तहत दया याचिका पर निर्णय लेना।

राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ:
📌 मुख्यमंत्री की नियुक्ति (यदि स्पष्ट बहुमत न हो)।
📌 राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करना।
📌 किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना।

📌 महत्वपूर्ण निर्णय:
🔹 एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लागू करने के राज्यपाल की सिफारिश न्यायिक समीक्षा के अधीन होगी।

 

5. क्या राष्ट्रपति या राज्यपाल किसी कानून को अस्वीकार कर सकते हैं?

🔹 उत्तर:

राष्ट्रपति के पास किसी भी साधारण विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को लौटाने का अधिकार है।
यदि संसद उस विधेयक को पुनः पारित कर देती है, तो राष्ट्रपति को इसे मंजूरी देनी होती है।
धन विधेयक (Money Bill) को अस्वीकार करने का कोई अधिकार नहीं है।
राज्यपाल को भी किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधानमंडल को वापस भेजने का अधिकार होता है।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 के. शंकरनारायणन बनाम भारत संघ (2010): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होती है, लेकिन वे इसे पुनर्विचार के लिए भेज सकते हैं।

 

6. क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के निर्णयों को न्यायिक समीक्षा में चुनौती दी जा सकती है?

🔹 उत्तर:

हां, राष्ट्रपति और राज्यपाल के निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन होते हैं।
यदि कोई निर्णय संविधान के विपरीत हो, तो सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट उसमें हस्तक्षेप कर सकते हैं।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 मारुति श्रीराम बनाम भारत संघ (2017): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के विवेकाधीन निर्णय भी न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं।

 

7. क्या राष्ट्रपति या राज्यपाल के खिलाफ मुकदमा दायर किया जा सकता है?

🔹 उत्तर:

अनुच्छेद 361 के अनुसार, राष्ट्रपति और राज्यपाल को उनके कार्यकाल के दौरान किसी न्यायालय में उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
हालांकि, उनके कार्यकाल की समाप्ति के बाद उन पर मुकदमा दायर किया जा सकता है।

📌 महत्वपूर्ण निर्णय:
🔹 राम जेठमलानी बनाम भारत संघ (2003): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को सिविल और आपराधिक कार्यवाही से संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है।

 

8. क्या राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है?

🔹 उत्तर:

हां, अनुच्छेद 156 के तहत राष्ट्रपति राज्यपाल को हटा सकते हैं।
हालाँकि, राज्यपाल को कोई निश्चित कार्यकाल नहीं दिया गया है।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 बोम्मई केस (1994): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को राजनीतिक लाभ के लिए नहीं हटाया जाना चाहिए।

 

9. क्या भारत का राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर सकता है?

🔹 उत्तर:

नहीं, राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को बर्खास्त नहीं कर सकते।
यदि प्रधानमंत्री लोकसभा में बहुमत खो देता है, तो राष्ट्रपति उसे इस्तीफा देने का निर्देश दे सकते हैं।

📌 महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🔹 एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री को हटाने का निर्णय संसद में बहुमत परीक्षण के आधार पर होगा।

 

विशेष तथ्य

भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल संवैधानिक तंत्र के महत्वपूर्ण अंग हैं और सरकार की कार्यप्रणाली में संतुलन बनाए रखते हैं।

राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख और राष्ट्रीय एकता के प्रतीक होते हैं।
उपराष्ट्रपति राज्यसभा का नेतृत्व करते हैं और कार्यवाहक राष्ट्रपति बन सकते हैं।
राज्यपाल राज्य प्रशासन में संवैधानिक समन्वयक के रूप में कार्य करते हैं।

📌 "संविधान का सफल संचालन केवल विधायिका और कार्यपालिका पर निर्भर नहीं करता, बल्कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल की निष्पक्षता और संवैधानिक मर्यादा के पालन पर भी निर्भर करता है।" 🚩

 

 

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