भारत में किशोर न्याय अधिनियम: प्रमुख प्रावधान और किशोर अपराधियों के प्रति न्याय प्रणाली का दृष्टिकोण।
किशोर न्याय
(बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015, भारत
में किशोर अपराधियों के उपचार को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कानून है। इसे
कानून के साथ संघर्ष करने वाले बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताओं और अधिकारों को
संबोधित करने के लिए अधिनियमित किया गया था। भारत में किशोर न्याय अधिनियम के
प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:
किशोर की परिभाषा:
किशोर न्याय
(बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के
अनुसार, किशोर (Juvenile) वह
व्यक्ति होता है जिसकी आयु 18 वर्ष से कम होती है। इसका
तात्पर्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपराध करता है और उसकी आयु 18 वर्ष से कम है, तो उसे वयस्क अपराधी के रूप में नहीं
बल्कि एक विशेष प्रक्रिया के तहत देखा जाएगा।
औपचारिक न्यायिक प्रणाली से विचलन
अधिनियम में
डायवर्सन पर जोर दिया गया है, जिसमें औपचारिक अदालती
कार्यवाही के बजाय काउंसलिंग, परिवीक्षा या सामुदायिक सेवा
जैसे अनौपचारिक तरीकों से छोटे अपराधों को संभालना शामिल है। इस दृष्टिकोण का
उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली के सामने कलंक और जोखिम को रोकना है।
किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी)
किशोर अपराधियों के
मामलों को संभालने के लिए जिला स्तर पर जेजेबी की स्थापना की जाती है। ये बोर्ड
किशोर अपराधियों के लिए पुनर्वास सहित उचित कार्रवाई का तरीका तय करते हैं।
किशोर अपराधियों के लिए विशेष प्रक्रियाएँ
यह अधिनियम किशोर
अपराधियों के मुकदमे के लिए विशेष प्रक्रियाओं की रूपरेखा तैयार करता है,
यह सुनिश्चित करता है कि उनके साथ संवेदनशीलता और बच्चों के अनुकूल
तरीके से व्यवहार किया जाए। यह उनके पुनर्वास और समाज में पुनः एकीकरण पर ध्यान
केंद्रित करता है।
आयु निर्धारण
अधिनियम में किसी
किशोर की आयु के बारे में विवाद होने पर उसकी आयु निर्धारित करने के लिए कठोर एवं
वैज्ञानिक प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है।
किशोर अपराधियों के लिए सजा
अपराध के दोषी पाए
गए किशोर अपराधियों को वयस्कों के समान दंड नहीं दिया जाता। उन्हें विशेष गृह में
भेजा जा सकता है, और उनके रहने की अवधि आमतौर
पर वयस्कों की सजा से कम होती है।
पुनर्वास और पुनः एकीकरण
यह अधिनियम किशोर
अपराधियों के पुनर्वास और सामाजिक एकीकरण पर जोर देता है। यह उन्हें रिहा होने के
बाद उत्पादक जीवन जीने में मदद करने के लिए शिक्षा, व्यावसायिक
प्रशिक्षण और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने पर केंद्रित है।
गैर-संस्थागत देखभाल
यह अधिनियम किशोर
अपराधियों के लिए गैर-संस्थागत देखभाल विकल्पों को बढ़ावा देता है,
जिसमें पालन-पोषण देखभाल और प्रायोजन कार्यक्रम शामिल हैं, ताकि उनके विकास के लिए अधिक परिवार जैसा वातावरण प्रदान किया जा सके।
शारीरिक दंड और एकान्त कारावास का निषेध
यह अधिनियम किशोर
अपराधियों के लिए शारीरिक दंड और एकान्त कारावास पर सख्त प्रतिबन्ध लगाता है।
अधिकारों का संरक्षण
यह अधिनियम यह
सुनिश्चित करता है कि किशोर अपराधियों के अधिकारों की रक्षा की जाए,
जिसमें कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार, आत्म-दोषी
ठहराए जाने के विरुद्ध संरक्षण तथा उनकी पहचान की गोपनीयता शामिल है।
अभिलेखों को मिटाना
अधिनियम में 21
वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद किशोर अपराधियों के रिकार्ड को
मिटाने की अनुमति दी गई है, बशर्ते कि उनका पुनर्वास हो चुका
हो और उन्होंने आगे कोई अपराध न किया हो।
निगरानी और
रिपोर्टिंग
यह अधिनियम किशोर
अपराधियों के कल्याण की निगरानी करने तथा जेजेबी को सिफारिशें देने के लिए बाल
कल्याण समितियों की भूमिका स्थापित करता है।
निष्कर्ष
भारत में किशोर
न्याय अधिनियम, 2015, एक संवेदनशील और सुधारात्मक
दृष्टिकोण को अपनाते हुए यह सुनिश्चित करता है कि 18 वर्ष से
कम आयु के अपराधियों के साथ मानवीय और न्यायसंगत व्यवहार किया जाए। यह अधिनियम सजा
के बजाय पुनर्वास और पुनः एकीकरण को प्राथमिकता देता है, ताकि
किशोर अपराधियों को समाज में सकारात्मक भूमिका निभाने का अवसर मिल सके।
न्यायिक दृष्टांत और उदाहरण:
1. शाह
नवाज बनाम भारत सरकार (2018)
– इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि किशोर अपराधियों को
सुधारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए, न कि उन्हें कठोर
सजा दी जानी चाहिए।
2. निर्भया
केस (2012) – इस
बहुचर्चित मामले में एक किशोर आरोपी को जेजेबी के तहत अधिकतम सुधारात्मक अवधि दी
गई, जिससे किशोर अपराधियों की पुनर्वास नीति पर देशव्यापी
बहस छिड़ गई।
कानूनी और नैतिक प्रभाव:
- अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि
किशोरों को वयस्क अपराधियों के समान दंड न दिया जाए।
- यह अपराध की गंभीरता के आधार पर
किशोर न्याय बोर्ड को विवेकाधिकार प्रदान करता है।
- पुनर्वास योजनाओं को लागू करने से
समाज में किशोर अपराधियों का पुनः एकीकरण आसान होता है।
हालांकि,
बढ़ते किशोर अपराधों के मामलों को देखते हुए इस अधिनियम में कुछ
संशोधन और कठोरता की मांग की जाती रही है। न्यायपालिका और विधायिका को संतुलन बनाए
रखते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि समाज की सुरक्षा और किशोरों के अधिकार दोनों
सुरक्षित रहें।
अक्सर पूछे जाने
वाले प्रश्न (FAQs)
1. किशोर
न्याय अधिनियम, 2015 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
किशोर न्याय
अधिनियम,
2015 का मुख्य उद्देश्य 18 वर्ष से कम आयु के
अपराधियों के प्रति सुधारात्मक और पुनर्वास केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना है। यह
कानून किशोरों को अपराध के बाद दूसरा मौका देकर उन्हें समाज का एक जिम्मेदार
नागरिक बनाने पर बल देता है।
2. किशोर
अपराधियों को वयस्क अपराधियों से अलग क्यों रखा जाता है?
किशोर अपराधियों को
वयस्क अपराधियों से अलग रखने का कारण यह है कि वे मानसिक और भावनात्मक रूप से
परिपक्व नहीं होते। कानून यह मानता है कि किशोरों में सुधार की संभावना अधिक होती
है,
इसलिए उन्हें पुनर्वास और शिक्षा के अवसर दिए जाने चाहिए।
3. क्या
किशोर अपराधियों को गंभीर अपराधों के लिए वयस्क के रूप में दंडित किया जा सकता है?
हाँ,
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत यदि कोई 16
से 18 वर्ष का किशोर गंभीर अपराध (जैसे हत्या,
बलात्कार आदि) करता है, तो किशोर न्याय बोर्ड
की सिफारिश पर उसे वयस्क की तरह मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है। (उदाहरण: निर्भया केस, 2012 में एक आरोपी को किशोर
न्याय बोर्ड द्वारा अधिकतम सुधारात्मक सजा दी गई थी।)
4. किशोर
न्याय बोर्ड (JJB) क्या है और इसका क्या कार्य है?
किशोर न्याय बोर्ड
(JJB)
एक विशेष निकाय है जो 18 वर्ष से कम उम्र के
अपराधियों के मामलों की सुनवाई करता है। इसका उद्देश्य दंड देने के बजाय किशोर
अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने की प्रक्रिया सुनिश्चित करना है।
5. क्या
किशोर अपराधियों का आपराधिक रिकॉर्ड मिटाया जा सकता है?
हाँ,
यदि कोई किशोर 21 वर्ष की आयु प्राप्त करने के
बाद कोई नया अपराध नहीं करता और पुनर्वास की प्रक्रिया पूरी कर चुका होता है,
तो उसका आपराधिक रिकॉर्ड मिटाया जा सकता है। यह व्यवस्था उसे समाज
में पुनः एकीकृत करने के लिए की गई है।
6. किशोर
अपराधियों को दी जाने वाली सजा वयस्क अपराधियों से कैसे भिन्न होती है?
किशोर अपराधियों को
वयस्क अपराधियों की तरह कठोर दंड नहीं दिया जाता। उन्हें विशेष गृहों में भेजा
जाता है,
जहां उन्हें शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और
मानसिक परामर्श जैसी सुविधाएँ दी जाती हैं ताकि वे एक बेहतर जीवन जी सकें।
7. किशोर
अपराध के मामलों में पीड़िता की सुरक्षा और गोपनीयता को कैसे सुनिश्चित किया जाता
है?
किशोर न्याय
अधिनियम,
2015 के तहत पीड़ितों की पहचान सार्वजनिक करने पर रोक लगाई गई है।
मीडिया और अन्य संस्थानों को भी किशोर अपराधियों और पीड़ितों की गोपनीयता बनाए
रखने के निर्देश दिए गए हैं।
8. क्या
किशोर अपराधियों को शारीरिक दंड दिया जा सकता है?
नहीं,
किशोर न्याय अधिनियम के तहत किसी भी किशोर अपराधी को शारीरिक दंड
देने की अनुमति नहीं है। यह अधिनियम एकान्त कारावास और अन्य कठोर दंडों पर भी
प्रतिबंध लगाता है।
9. क्या
किशोर अपराधों की रोकथाम के लिए कोई विशेष प्रावधान है?
हाँ,
अधिनियम किशोरों के सुधार और समाज में पुनः एकीकरण के लिए शिक्षा,
परामर्श और गैर-संस्थागत देखभाल (जैसे पालन-पोषण योजना) को बढ़ावा
देता है। इसके अलावा, सरकार और गैर-सरकारी संगठन किशोर
अपराधों को रोकने के लिए जागरूकता कार्यक्रम भी चलाते हैं।
10. क्या
किशोर न्याय अधिनियम में कोई महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय हुआ है?
हाँ,
शाह नवाज बनाम भारत सरकार (2018) मामले
में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि किशोर अपराधियों को सुधारात्मक दृष्टिकोण से
देखा जाना चाहिए, न कि उन्हें कठोर सजा दी जानी चाहिए।
11. यदि
किसी किशोर की आयु को लेकर विवाद हो, तो उसकी आयु कैसे
निर्धारित की जाती है?
यदि किसी किशोर की
आयु को लेकर विवाद हो, तो अधिनियम के अनुसार जन्म
प्रमाणपत्र, स्कूल रिकॉर्ड या चिकित्सा परीक्षण के आधार पर
उसकी आयु का निर्धारण किया जाता है।
12. भारत
में किशोर अपराधों की संख्या क्यों बढ़ रही है, और इसे रोकने
के लिए क्या किया जाना चाहिए?
किशोर अपराधों की
वृद्धि का कारण सामाजिक असमानता, पारिवारिक तनाव,
गरीबी, इंटरनेट का दुरुपयोग और गलत संगति हो
सकते हैं। इसे रोकने के लिए सरकार को शिक्षा, रोजगार और
नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
विशेष
"भारत में किशोर
न्याय अधिनियम एक सुधारात्मक और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाते हुए यह सुनिश्चित करता
है कि किशोर अपराधियों को पुनर्वास और सामाजिक पुनः एकीकरण का अवसर मिले। हालाँकि,
अपराध की गंभीरता के आधार पर कानून में लचीलापन भी दिया गया है,
ताकि समाज की सुरक्षा और किशोरों के अधिकारों में संतुलन बना रहे।"