कुछ आधारों पर भेदभाव का निषेध: अनुच्छेद 15 का विश्लेषण।
परिचय
भारतीय संविधान का
अनुच्छेद 15 (Article 15) समानता के अधिकार (Right
to Equality) का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित
करता है कि राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या वंश (Race) के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
यह अनुच्छेद भारत
को एक समतामूलक समाज बनाने की दिशा में एक मजबूत कानूनी आधार प्रदान करता है। यह न
केवल भेदभाव को रोकता है बल्कि कुछ वर्गों को न्यायसंगत लाभ देने की अनुमति भी
देता है,
ताकि ऐतिहासिक रूप से शोषित वर्ग समाज की मुख्यधारा में आ सकें।
भारतीय न्यायपालिका
ने भी अपने विभिन्न निर्णयों में अनुच्छेद 15 की
व्याख्या की है और इसके महत्व को स्पष्ट किया है। इस लेख में हम अनुच्छेद 15
के विभिन्न प्रावधानों, न्यायिक निर्णयों और
इसके अपवादों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
अनुच्छेद 15:
संविधान का मूल पाठ
अनुच्छेद 15
भारतीय संविधान के भाग III (मौलिक अधिकार) के
अंतर्गत आता है। यह निम्नलिखित उपखंडों में विभाजित है:
(1) अनुच्छेद 15(1): भेदभाव का निषेध
➡ राज्य किसी
भी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या वंश के आधार पर कोई भेदभाव नहीं
करेगा।
(2) अनुच्छेद 15(2): सार्वजनिक स्थानों तक समान पहुँच
➡ राज्य या
कोई भी व्यक्ति किसी भी नागरिक को होटल, दुकान, सार्वजनिक भोजनालय, कुएँ, जलाशय,
सड़क आदि सार्वजनिक सुविधाओं के उपयोग से नहीं रोक सकता।
(3) अनुच्छेद 15(3):
महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान
➡ राज्य को
महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष सुविधाएँ और आरक्षण देने का अधिकार प्राप्त है।
(4) अनुच्छेद 15(4): पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान
➡ अनुसूचित
जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और
अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए विशेष योजनाएँ और आरक्षण की
अनुमति दी गई है।
(5) अनुच्छेद 15(5): निजी शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण
➡ गैर-सरकारी
सहायता प्राप्त और निजी शिक्षण संस्थानों में भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की अनुमति दी गई है
(अल्पसंख्यक संस्थान इससे मुक्त हैं)।
(6) अनुच्छेद 15(6):
आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए
आरक्षण
➡ 2019 के 103वें संविधान संशोधन के तहत, आर्थिक रूप से कमजोर
वर्गों (EWS) को भी 10% आरक्षण देने की
व्यवस्था की गई।
अनुच्छेद 15
का महत्व
✅ यह सामाजिक समानता (Social
Equality) की गारंटी देता है।
✅ यह जाति,
धर्म, लिंग, भाषा और
जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
✅ यह पिछड़े
वर्गों और कमजोर तबकों के उत्थान के लिए सरकार को विशेष उपाय करने की अनुमति देता
है।
✅ यह
सार्वजनिक सेवाओं और सुविधाओं तक सभी नागरिकों की समान पहुँच सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 15
पर भारतीय न्यायपालिका के महत्वपूर्ण निर्णय
🔹 चम्पकम
दोराईराजन बनाम मद्रास राज्य (1951)
➡ इस फैसले
में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य केवल धर्म, जाति,
लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर आरक्षण नहीं
दे सकता।
➡ इसके बाद
संविधान में पहला संशोधन (1951) करके अनुच्छेद 15(4) जोड़ा गया।
🔹 इंदिरा
साहनी बनाम भारत संघ (1992) – मंडल आयोग केस
➡ इस केस में
सुप्रीम कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27% आरक्षण देने की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
➡ लेकिन
आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% निर्धारित की गई।
🔹 नागराज
बनाम भारत संघ (2006)
➡ न्यायालय
ने कहा कि अनुसूचित जाति/जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण तभी मिलेगा जब सरकार यह
साबित कर सके कि वे प्रतिनिधित्व में पर्याप्त रूप से पिछड़े हैं।
🔹 अभय नाथ
बनाम भारत संघ (2009)
➡ सुप्रीम
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 15(5) के तहत निजी
शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण संवैधानिक रूप से वैध है।
🔹 जनहित
अभियान बनाम भारत संघ (2022)
➡ सुप्रीम
कोर्ट ने अनुच्छेद 15(6) के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों
(EWS) को 10% आरक्षण को वैध ठहराया।
अनुच्छेद 15
के अपवाद (Exceptions to Article 15)
(1) महिलाओं और
बच्चों के लिए विशेष प्रावधान (अनुच्छेद 15(3))
➡ महिलाओं और
बच्चों के कल्याण के लिए विशेष कानून बनाए जा सकते हैं।
➡ महिलाओं के
लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण।
➡ बच्चों के
लिए बाल श्रम निषेध कानून, मुफ्त शिक्षा आदि।
(2) अनुसूचित
जाति/जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण (अनुच्छेद 15(4))
➡ अनुसूचित
जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा
में आरक्षण।
(3) आर्थिक रूप से
कमजोर वर्गों (EWS) के लिए आरक्षण (अनुच्छेद 15(6))
➡ 2019 के 103वें संशोधन के तहत, सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से
कमजोर लोगों के लिए 10% आरक्षण लागू किया गया।
(4) निजी शिक्षण
संस्थानों में आरक्षण (अनुच्छेद 15(5))
➡ गैर-सरकारी
शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और
अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण दिया जा सकता है।
(5) धार्मिक और
शैक्षणिक अल्पसंख्यक संस्थानों को छूट
➡ अनुच्छेद 15(5)
के तहत अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को आरक्षण नीति से छूट दी गई
है।
निष्कर्ष
✅ अनुच्छेद 15 भारतीय संविधान में एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है, जो
सामाजिक समानता और न्याय को सुनिश्चित करता है।
✅ यह जाति,
धर्म, लिंग, जन्म स्थान
या वंश के आधार पर भेदभाव को रोकता है और कमजोर वर्गों
के उत्थान के लिए विशेष प्रावधानों की अनुमति देता है।
✅ भारतीय न्यायपालिका
ने कई ऐतिहासिक फैसलों में इस अनुच्छेद की व्याख्या की और इसे एक न्यायसंगत और
संवैधानिक व्यवस्था बनाने का आधार बनाया।
✅ हालाँकि,
कुछ अपवादों को तर्कसंगत वर्गीकरण (Reasonable
Classification) के आधार पर स्वीकार किया गया है, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को लाभ पहुँचाया जा सके।
"समानता का अर्थ सभी को समान बनाना नहीं, बल्कि सभी
के साथ न्याय करना है।"
अनुच्छेद 15
से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
1. अनुच्छेद 15 क्या कहता है?
✅ अनुच्छेद 15 भारतीय संविधान का एक मौलिक अधिकार है, जो राज्य को
यह आदेश देता है कि वह किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या वंश के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
2. अनुच्छेद 15 किस मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है?
✅ अनुच्छेद 15 समानता के अधिकार (Right to Equality) के
अंतर्गत आता है, जिसे भारतीय संविधान के भाग III में शामिल किया गया है।
3. क्या अनुच्छेद 15
केवल राज्य पर लागू होता है या निजी व्यक्तियों पर भी?
✅ अनुच्छेद 15(1) राज्य पर लागू होता है, अर्थात
राज्य किसी भी नागरिक के विरुद्ध भेदभाव नहीं कर सकता।
✅ अनुच्छेद 15(2)
निजी व्यक्तियों और संस्थाओं पर भी
लागू होता है, जिससे कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को
सार्वजनिक सुविधाओं के उपयोग से वंचित नहीं कर सकता।
4. अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 14 में क्या अंतर है?
✅ अनुच्छेद 14: यह विधि के समक्ष समानता (Equality before Law) की बात करता है, यानी सभी नागरिकों को कानून के
सामने समान माना जाएगा।
✅ अनुच्छेद
15: यह कुछ विशेष आधारों पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता
है, जैसे धर्म, जाति,
लिंग, जन्म स्थान या वंश।
5. क्या राज्य महिलाओं
और बच्चों के लिए विशेष कानून बना सकता है?
✅ हाँ। अनुच्छेद 15(3)
राज्य को यह अधिकार देता है कि वह महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष
कानून बना सकता है।
➡ उदाहरण: मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (Maternity Benefit Act, 1961)।
6. अनुसूचित जाति,
अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किस
अनुच्छेद में किया गया है?
✅ अनुच्छेद 15(4)
और 15(5) के तहत अनुसूचित जाति (SC),
अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC)
के लिए शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में आरक्षण की अनुमति दी गई है।
7. क्या निजी संस्थानों
में आरक्षण लागू होता है?
✅ अनुच्छेद 15(5)
के तहत गैर-सरकारी सहायता प्राप्त और निजी शिक्षण संस्थानों में
अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए आरक्षण लागू
किया गया है।
➡ लेकिन
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर यह लागू नहीं होता।
8. क्या सामान्य वर्ग
के गरीब नागरिकों को भी आरक्षण मिलता है?
✅ हाँ। अनुच्छेद 15(6)
के तहत 2019 में 103वाँ
संविधान संशोधन किया गया, जिसके
द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के
लिए 10% आरक्षण लागू किया गया।
9. अनुच्छेद 15 के तहत कौन-कौन से महत्वपूर्ण न्यायिक फैसले दिए गए हैं?
🔹 चम्पकम
दोराईराजन बनाम मद्रास राज्य (1951) – इस
फैसले के बाद संविधान में पहला संशोधन (1951) करके
अनुच्छेद 15(4) जोड़ा गया।
🔹 इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) – मंडल आयोग केस
– आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% निर्धारित
की गई।
🔹 जनहित अभियान बनाम भारत संघ (2022)
– सुप्रीम कोर्ट ने EWS आरक्षण (10%)
को वैध ठहराया।
10. अनुच्छेद 15
के अपवाद क्या हैं?
✅ महिलाओं और बच्चों के लिए
विशेष प्रावधान (अनुच्छेद 15(3))।
✅ अनुसूचित
जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण
(अनुच्छेद 15(4))।
✅ आर्थिक
रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए आरक्षण (अनुच्छेद 15(6))।
✅ निजी
शिक्षण संस्थानों में आरक्षण (अनुच्छेद 15(5))।
✅ धार्मिक
और शैक्षणिक अल्पसंख्यक संस्थानों को छूट।
विशेष तथ्य
✅ अनुच्छेद 15 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो जाति,
धर्म, लिंग, जन्म स्थान
या वंश के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
✅ यह
अनुच्छेद सामाजिक समानता (Social Equality) और
न्याय (Justice) को बढ़ावा देता है।
✅ भारतीय
न्यायपालिका ने इस अनुच्छेद को समय-समय पर व्याख्या करके अधिक प्रभावी बनाया है।
✅ हालाँकि,
कुछ अपवादों को तर्कसंगत वर्गीकरण (Reasonable
Classification) के आधार पर स्वीकार किया गया है, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को लाभ पहुँचाया जा सके।
"समानता का अर्थ सभी को समान बनाना नहीं, बल्कि सभी के साथ न्याय करना है।"